छत्तीसगढ़ः कब्र के लिए नहीं बची जमीन, अब ईसाइयों का होगा दाह संस्कार

क्रिश्चियन समाज कब्रिस्तान की कमी से लगातार जूझ रहा है।;

Update: 2015-09-27 00:00 GMT
रायपुर. ईसाई समाज जमीन की कमी को देखते हुए अंतिम संस्कार का तरीका बदलने जा रहा है। वह तरीका जो धर्म गुरुओं के मुताबिक बाइबिल में भी नहीं है। यह तरीका होगा दाह संस्कार का। धर्म गुरुओं ने इसकी अनुमति भी दे दी है। छत्तीसगढ़ में ऐसा कभी नहीं हुआ है। लेकिन आने वाले पीढ़ी को परेशानियों से बचाने के लिए नई परंपरा शुरू होने जा रही है।
 
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उल्लेखनीय है कि क्रिश्चियन समाज कब्रिस्तान की कमी से लगातार जूझ रहा है। आमतौर पर एक व्यक्ति की कब्र को पूरी तरह डिस्पोज होने में 10 से 12 वर्ष लगते हैं। उससे पहले उस स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं दफनाया जा सकता। छत्तीसगढ़ में प्रारंभिक तौर पर इस पर सहमति बनी है कि मृतकों को दफनाने के साथ-साथ दाह संस्कार का भी विकल्प रखा जाए। जमीन की अनुपलब्धता की स्थिति में यह विकल्प होगा। आपको बता दें कि अमेरिका में ईसाई समाज दाह संस्कार का तरीका अपनाता है। वहीं भारत देश में केरल राज्य में इसकी शुरूआत की गई है। केरल का मार्थोमाइट चर्च दाह संस्कार की अनुमति देता है।
 
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छत्तीसगढ़ में ईसाई समाज की जनसंख्या लाखों में है। समाज के प्रोटेस्टेट के उप पंत 400 हैं। जिनमें से 43 पंत रायपुर में ही हैं। अलग-अलग कब्रिस्तानों में जगह की बेहद कमी है। पहले भी इस समस्या से निपटने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया गया था। कब्रिस्तान में एक लंबी दीवार तैयार की जाएगी। जिसमें कॉपर प्लेट लगाया जाएगा। इस प्लेट में मरने वाले लोगों के नाम लिखे जाएंगे। परिवार वाले मृतकों को श्रद्धांजली भी दे सकेंगे।
 
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