महादेव घाट : आस्था पर सियासी रंग, महज़ डेढ़ किलोमीटर में टंगे 354 पोस्टर
बड़ी संख्या में अवैध पोस्टर भी लगे हैं;
रायपुर। आस्था पर सियासत का रंग किस कदर चढ़ा हुआ है, यह देखना हो तो इन दिनों आप राजधानी के महादेव घाट रोड का एक चक्कर लगा सकते हैं। खारुन नदी के किनारे महादेव घाट पर इन दिनों कार्तिक पूर्णिमा मेले का माहौल है। महादेव घाट न केवल एक पर्यटन स्थल है, बल्कि यहाँ ऐतिहासिक मंदिर होने के कारण लोगों के आस्था का भी केंद्र है। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ के कार्तिक पूर्णिमा मेले में शामिल होने पहुँचते हैं।
कुछ ही दिनों में नगरीय निकाय चुनाव भी है। यही कारण है कि पार्षद पद के संभावित उम्मीदवारों की नज़र इन दिनों अपने वार्ड की जनता के साथ-साथ महादेव घाट के मेले में पहुँचने वाली बड़ी आबादी पर भी है।
वैसे नवरात्र, गणेश चतुर्थी, ईद, क्रिसमस, प्रकाश पर्व, छठ जैसे अवसरों पर आस्था को राजनीती से जोड़ने की कवायद और इसे राजनीतिक रूप से भूना लेने की कोशिशें कोई नई बात नहीं है, लेकिन लाखेनगर चौक और महादेव घाट मेला स्थल के बीच टंगे शुभकामनाओं वाले बैनर-पोस्टर्स इसे खास बना रहे हैं। जानकर हैरानी होगी की मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी में 354 पोस्टर और बैनर टंगे हैं। इसमें से 294 पोस्टर तो मेला स्थल पहुँचने से पहले ही आपको बिजली के खंभों और भवनों में दिख जायेंगे। इसके अलावा लगभग 59 पोस्टर्स मेले के भीतर अलग-अलग पॉइंट्स पर मिलेंगे।
मतदाताओं को रिझाने के लिए न सिर्फ बैनर-पोस्टर्स लगाए गए हैं, बल्कि वार्डों से मेला स्थल तक पहुँचने के लिए कुछ संभावित उम्मीदवार गाड़ी, प्रसाद और नास्ते आदि की व्यवस्था भी कर रहे हैं। कुछ उम्मीदवारों ने सीधे तौर पर व्यवस्था करने की बजाय सामाजिक संगठनों को भी जरिया बनाया है। नगर निगम के सूत्रों का कहना है कि बैनर-पोस्टर लगाने वाले कुछ लोगों ने इसकी अनुमति ली है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे अवैध पोस्टर भी लगे हैं, जिनकी अनुमति नहीं ली गयी है।
कार्तिक पूर्णिमा मेले में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जाना भी तय था, वे गए भी और डूबकी भी लगायी। इसी तरह बीजेपी और दूसरी पार्टियों के बड़े नेताओं का भी इन दिनों महादेव घाट में आमदरफ्त बना हुआ है। अपने आला नेताओं को प्रभावित करने के लिए भी महादेव घाट रोड पर बैनर-पोस्टर टांगना पार्षद प्रत्याशियों को मुफीद लग रहा है, क्योंकि टिकट पाने के लिए नेताओं को साधना भी ज़रूरी है। शायद यही कारण है कि बमुश्किल डेढ़ किलोमीटर की दूरी के बीच 354 पोस्टर टंग गए हैं।
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