साहब ! खाने को कुछ मिल नहीं रहा, मकान मालिक डालता है किराये का दबाव, इसलिए पैदल ही निकलना पड़ा

लॉकडाउन के बीच पैदल ही बरवाला से चलकर सोनीपत पहुंचे मजदूरों को पुलिस ने हल्दाना बॉर्डर पर रोक की पूछताछ तो उन्होंने अपनी व्याथा बताई इसके बाद पुलिस ने सभी को शेल्टर होम भिजवाया। नौ दिन में 241 किलोमीटर का सफर तय करने वाले सभी मजदूर यूपी के अलग-अलग जिलों के निवासी है।;

Update: 2020-04-19 07:50 GMT

सोनीपत। कोरोना महामारी के बीच घोषित लॉकडाउन में प्रवासी मजदूर वर्ग को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा रहा है। इन्हें रोजाना खाने से लेकर रहने तक के लिए जुझना पड़ रहा है। पेट की आग शांत न होने और रहने का ठिकाना न मिलने के कारण रोजाना बड़ी संख्या में लोग अब भी पैदल ही अपने घरों का रुख कर रहे हैं। सोनीपत के हल्दाना बॉर्डर पर पुलिस ने ऐसे ही करीब नौ मजदूरों को रुकवाया और पूछताछ की। सभी मजदूरों ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि साहब...खाने को कुछ मिल नहीं रहा और ऊपर से मकान मालिक भी रोजाना किराया देने का दबाव डालने लगा था। इसलिए मजबूर होकर उत्तर प्रदेश स्थित अपने घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े।

बता दें कि देश में फैली कोरोना महामारी के बीच सभी प्रदेश सरकारों को निर्देश दिए गए थे कि वे अपने यहां ठहरे प्रवासी श्रमिकों के लिए खाने व रहने की व्यवस्था करें, ताकि ये वर्ग पेट भरने के लिए पैदल ही सड़कों पर ना निकलें। लॉकडाउन की पूरी तरह पालना करवाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं। इसके बावजूद भी अनेक लोग ऐसे मिल रहे हैं, जिन्हें खाने के लिए लॉकडाउन की अवहेलना करनी पड़ रही है।

पुलिस ने ट्रक में बैठाया

हल्दाना बॉर्डर पर पुलिस पूछताछ में श्रमिकों ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं। पंजाब के बरनाला में काम करते हैं और वहीं किराये के मकान में रहते थे। लॉकडाउन के कारण काम नहीं मिला। ऊपर से मकान मालिक भी रोजाना किराया मांगता था। जिस कारण मजबूरी में नौ दिन पहले मकान को छोड़कर पैदल ही घर को निकलना पड़ा। रास्ते में पूलिस ने रोका और हमारी बात सुनने के बाद एक ट्रक को रुकवाकर उसमें बैठा दिया। काफी दूर तक ट्रक में सफर किया, उसके बाद पैदल चलते हुए यहां पहुंचे हैं।

कभी खाना मिला तो कभी भूखे पेट ही तय किया सफर

प्रवासी श्रमिकाें ने बताया कि रास्ते में कभी खाना मिल जाता तो कभी खाली पेट ही सफर तय करने लग जाते। थकान होती तो बीच रास्ते में ही रुक जाते थे। रास्ते में लगने वाले नाकों पर अनेक जगह पुलिस ने रोका और पूछताछ की। हमारी बात सुनने के बाद जाने की इजाजत मिल जाती थी। 

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