15 अगस्त पर जानें क्या है महिलाओं की आजादी का महत्व

Happy Independence Day 2019 देश की आजादी में महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब देश आजाद हुआ और तरक्की की राह पर आगे बढ़ा तो महिलाएं भी इसमें भागीदार बनीं, समय के साथ आधी आबादी ने बहुत तरक्की की, वे हर क्षेत्र में अपने लिए अलग मुकाम बनाती गईं, लेकिन क्या असल मायनों में महिलाओं ने आजादी का महत्व समझा है?;

Update: 2019-08-14 07:25 GMT

Happy Independence Day 2019 : एक स्त्री की आजादी के असल मायने क्या हैं? उच्च शिक्षा प्राप्त करना, घर से बाहर निकलकर काम करना, अपनी मर्जी से जीना और रहना, पसंद का पहनावा चुनना, मन-मर्जी से किसी भी समय किसी जगह पर जाना, इन बातों से ही एक स्त्री की स्वतंत्रता को आंका जाता है। हालांकि ये सब बातें अपनी जगह पर सही हैं। लेकिन सवाल है कि इन सब चुनावों के बाद भी क्या सच में स्त्री स्वतंत्र है? सच्चे अर्थों में उन्होंने अपनी आजादी के मायने समझे हैं, उसे अपने जीवन में लागू किया है? क्या उसके विचारों में आजादी का समावेश हुआ है? अगर ऐसा नहीं है तो जो कुछ महिलाओं ने आज तक हासिल किया है, वह सब निरर्थक है। ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं पहले आजादी के असल मायने को समझें और सबल-सशक्त बनें। 




दूर करें मानसिक पिछड़ापन

शिक्षित होना और उस शिक्षा को जीवन में सही रूपों में ढालना ही, स्त्री की मानसिक आजादी को प्रकट करता है। लेकिन बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर भी अगर आप रूढ़िवादी हैं तो ऐसी शिक्षा किस काम की! अगर आज की स्त्री वास्तव में शिक्षित हो रही है तो फिर क्यों वह कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध में अपनी सहमति देती है?

बहुत सारे ऐसे उदाहरण हैं, जो हमारे सामने नहीं आते हैं लेकिन ऐसा हो रहा है, जहां पढ़ी-लिखी, साधन संपन्न महिलाएं भी अपने परिवार में कन्या भ्रूण हत्या का विरोध नहीं करती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण आपको अपने आस-पास ही देखने को मिल जाएंगे, जहां आज भी दहेज के लिए महिला ही महिला को प्रताड़ित करती है।

ऐसे कई केस सामने आ रहे हैं, जहां घरेलू हिंसा की शिकार पढ़ी-लिखी महिलाएं हो रही हैं। क्यों हो रहा है ऐसा? तात्पर्य यही है कि बहुत-सी महिलाएं भले ही आधुनिक होने की बात करें, जागरूक होने का नारा लगा लें, लेकिन हकीकत में उनकी मानसिकता पिछड़ी हुई है। ऐसे में सबसे पहले महिलाओं को इस मानसिक पिछड़ेपन से आजाद होना होगा, तभी वे आजादी की राह पर आगे बढ़ पाएंगी। 




अपने लिए आवाज उठाएं

यह सच है कि अपने देश में महिलाएं अनेक क्षेत्रों में लगातार सफलता और प्रगति का परचम देश-विदेश में लहरा रही हैं। जब इस तरह के उदाहरण दिए जाते हैं तो कुछ गिनी-चुनी महिलाओं के नाम ही सामने आते हैं। लेकिन भारत जैसे विशाल देश में बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं को इन उदाहरणों में अपने नाम को शामिल करवाना होगा, तब लगेगा कि महिलाओं को वास्तविक आजादी मिली है।

आज भी आमतौर पर लड़कियों के लिए शिक्षा का लक्ष्य अच्छा वर प्राप्त करना माना जाता है। इसलिए ही केवल 15 प्रतिशत लड़कियां ही अपनी शिक्षा को लेकर गंभीर होती हैं, महत्वाकांक्षी होती हैं और उनमें से भी 5 प्रतिशत ही अपने लक्ष्य को हासिल कर पाती हैं। इस वजह से ही अधिकतर महिलाएं अपने प्रोफेशन को लेकर कमिटेड नहीं हो पातीं।

85 प्रतिशत महिलाएं परिवार और पति की जरूरतों, असहयोग या पूर्वाग्रहों के कारण नौकरी छोड़ देती हैं, यहां तक कि उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त महिलाएं भी अपने लिए ऐसे मामलों में कोई स्टैंड नहीं ले पातीं। यह ठीक है कि कुछ निर्णय ऐसे होते हैं, जो पारिवारिक सहमति से लिए जाना चाहिए, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि गलत फैसलों के विरोध में भी महिलाएं मुंह नहीं खोल पाती हैं।

वे अपने सामने अन्याय होता देखती रहती हैं लेकिन कुछ कर नहीं पाती हैं। इस डर से उन्हें आजाद होना चाहिए कि जो बात सच है और अगर उसके लिए उन्हें चाहे जिससे लड़ना पड़े, वो लड़ें। अगर महिलाओ में भीड़ में झंडे लेकर ऊंची आवाज में आंदोलन करने की शक्ति है तो फिर हर उस गलत बात का विरोध करने की ताकत भी होनी चाहिए, जो उनके साथ हो रही है या किसी दूसरी महिला के साथ हो रही है। 




ऐसे निकलेगी बदलाव की राह

यह बहुत बड़ा सच है कि स्त्री के लिए समाज, धर्म और संस्कृति तीनों तब उसके विरोधी हो जाते हैं, जब उसके सामने कोई बड़ा और कठोर निर्णय लेने का समय आता है। ऐसा इसलिए है कि आज भी समाज और परिवार स्त्री की परंपरागत छवि से मुक्त नहीं हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. निर्मला जैन का कहना है, 'नारी स्वतंत्रता का प्रश्न सापेक्ष और जटिल सवाल है।

यह दो चीजों पर आधारित है सामाजिक स्थिति और आर्थिक स्वावलंबन। जब तक स्त्री आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगी, तब तक स्वतंत्रता का सवाल ही नहीं उठता। इसके अलावा स्त्री स्वतंत्रता का मतलब है कि उसे घर और बाहर अपने निर्णय लेने का अधिकार हो। उसे पूरा सम्मान मिले।

वह घर की व्यवस्था का हिस्सा हो। साथ ही स्त्री की उपलब्धियों के प्रति परिवार का दृष्टिकोण दमन का नहीं सम्मान का और गौरव का हो। तभी बदलाव की राह निकल सकती है, महिलाएं सही मायनों में आजाद हो सकती हैं।' कहने का सार यही है कि जब तक महिलाएं विचारों की आजादी का महत्व नहीं समझेंगी, इन्हें अपने व्यवहार में शामिल नहीं करेंगी, तब तक असल आजादी से दूर ही रहेंगी। 





बदलें अपनी सोच

जब महिलाओं के सशक्त होने की बात आती है तो हम एक महिला को तब सशक्त मानते हैं, जब वह उच्च शिक्षित हो, संस्थानों में ऊंचे पद पर कार्य कर रही हो, आर्थिक रूप से संपन्न हो, तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त हो, आर्थिक रूप से पूर्ण स्वावलंबी और जागरूक हो। लेकिन सवाल है कि क्या ऐसी महिलाएं सही अर्थों में सशक्त, स्वतंत्र हैं? इसका उत्तर यही है कि यथार्थ कुछ और है।

वास्तव में ऐसी महिलाओं की भी योग्यता, कार्य और निष्ठा पर अकसर अंगुली उठाई जाती है। अफवाह फैलाई जाती है कि इतना बड़ा मुकाम उन्होंने कोई कीमत देकर पाई है। इस मानसिकता का भाव कई बार एक महिला ही दूसरी महिला के प्रति रखती है।

ऐसे में समझ नहीं आता है कि जहां एक तरफ महिलाएं, पुरुषों के समकक्ष कार्यरत हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के लिए ही वे अपनी सोच नहीं बदल पाई हैं। जब तक इस सोच से महिलाएं आजाद नहीं होंगी, न वह स्वयं आगे बढ़ पाएंगी, न ही दूसरी महिलाओं के लिए राह बना पाएंगी।

लेखिका - संध्या रायचौधरी 

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