CG Election : वनांचल के वर्तमान 7 विधायकों को चुनाव जीतने बहाना पड़ेगा पसीना
नवरात्र के पहले दिन कांग्रेस ने बस्तर के 12 में से जगदलपुर सामान्य सीट को छोड़ 11 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। जिसमें 7 को फिर से मैदान में उतारा गया है। वहीं बस्तर टाईगर महेन्द्र कर्मा के पुत्र छविन्द्र कर्मा पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। दंतेवाड़ा सीट से पिता महेन्द्र कर्मा और माता देवती कर्मा विधायक बन चुके हैं। पढ़िए पूरी खबर...;
सुरेश रावल - जगदलपुर। 10 साल पहले 25 मई 2013 को झीरम कांड (Jheeram incident)में शहीद हुए महेन्द्र कर्मा की शहादत के बाद अचानक पत्नी देवती कर्मा को राजनीतिक विरासत संभालनी पड़ी। पहले चुनाव में सहानुभूति लहर ने उन्हें विधायक बना दिया। पिछले 2018 के चुनाव (elections)में बस्तर के 12 में से केवल दंतेवाड़ा (Dantewada) में कांग्रेस (Congress)को हार का सामना करना पड़ा था । भीमा मंडावी (Bhima Mandavi)से देवती कर्मा (Devati Karma)चुनाव हार गई थीं। इस बार कर्मा परिवार को ही टिकट मिली है लेकिन माता-पिता के विधायक रहने का विशेष लाभ छविन्द्र कर्मा को मिलेगा ऐसा नहीं लगता। अब सहानुभूति लहर भी नहीं है वहीं 2018 के चुनाव की तरह भाजपा के खिलाफ माहौल भी नहीं है। कुल मिलाकर छविन्द्र को अपनी राजनीतिक छवि के बल पर चुनावी वैतरणी पार करनी होगी। वैसे वे जिला पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं। जिन 7 प्रत्याशियों को टिकट देकर कांग्रेस ने दुबारा दांव खेला है उनमें सबसे अधिक अनुभवी कोंटा सीट से पांच बार विधायक रहे कवासी लखमा हैं। उनके सामने पार्टी के अंदर किसी तरह की चुनौती और नाराजगी नहीं है। वे एकमात्र प्रत्याशी रहे जिनके खिलाफ किसी भी कांग्रेसी ने कोंटा सीट से चुनावलड़ने के लिए आवेदन नहीं दिया। वैसे भी पिछले चुनाव तक वे केवल विधायक रहे लेकिन पांच साल तक मंत्री रहने से उनका कद बढ़ा और वे अधिक काम क्षेत्र में करा पाने में सफल हुए हैं।
बीजापुर सीट से विक्रम शाह मंडावी के खिलाफ उनके ही गृह क्षेत्र भैरमगढ़ से वरिष्ठ कांग्रेसी अजय सिंह ने मोर्चा खोल दिया है। लगातार वे विधायक पर आरोप लगा रहे हैं। अब देखना है यहां इसका कितना असर दिखाई पड़ता है। बस्तर सीट से दो बार विधायक रहे लखेश्वर बघेल के खिलाफ भी पार्टी के भीतर किसी तरह का असंतोष जैसी बात कार्यकर्ताओं में नहीं दिख रही है। कार्यकर्ताओं और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बरकरार है। नारायणपुर सीट में चंदन कश्यप को दुबारा विधायक बनने के लिए अपने दल के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना होगा। यह सीट बस्तर, नारायणपुर और कोण्डागांव तीन जिलों को टच करती है। अतिसंवेदनशील अबुझमाड़ का इलाका भी इसी में है।
बस्तर और नारायणपुर की दूरी भी अपने आप में जनता और कार्यकर्ताओं को दो भाग में विभाजित करती है इसलिए चंदन को संतुलन बनाकर जीत का मार्ग तलाशना होगा। कोण्डागांव सीट में मोहन मरकाम के सामने भी पार्टी के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को साधना बड़ी चुनौती है। केशकाल से संतराम नेताम दो बार विधायक हैं उन्हें तिकड़ी बनाने के लिए कोण्डागांव जिले में ही कलेक्टर रहे नए प्रत्याशी नीलकंठ टेकाम को हराना होगा। अंतागढ़ क्षेत्र के निवासी नीलकंठ टेकाम कोण्डागांव कलेक्टर रहते केशकाल क्षेत्र में विकास के काफी काम कराने में सफल रहे । अब देखना होगा उन्हें इसका कितना लाभ मिल पाता है। संतराम को भाजपा के स्थानीय नेताओं के भाजपा प्रत्याशी को बाहरी मानकर विरोध का कुछ हद तक लाभ भी मिल सकता है। अब यह असंतोष कितना कारगर होगा यह चुनाव प्रचार के दौरान साफ हो जाएगा।
रिपीट किए गए प्रत्याशियों को जीत हासिल करने मिलेगी अधिक चुनौती
अफसर से नेता बने, पर कार्यकर्ता नाखुश
उत्तर बस्तर के दो सीट अंतागढ़ और कांकेर के विधायकों का टिकट काट दिया गया है। शिशुपाल सोरी कलेक्टर रहे और अनुप नाग थानेदार रहे दोनों ने अपनी सरकारी नौकरी की पारी पूरी की और राजनीति के मंच पर सफल भी हुए । 2018 के चुनाव में जनादेश पाकर वे विधायक भी बन गए थे लेकिन कार्यकर्ताओं को साधने में वे चुक गए। टिकट कटने का यह एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। कांकेर से टिकट पाने वाले शंकर धुरवा पूर्व विधायक हैं वहीं अंतागढ़ से पहली बार रूपसिंह पोटाई चुनाव मैदान में भाग्य आजमाएंगे।
दीपक के जिद से राजमन आउट
चित्रकोट से दो बार विधायक रहे पीसीसी चीफ दीपक बैज के लिए चित्रकोट विधानसभा खुद का गृह क्षेत्र है। 2018 के चुनाव में उन्होंने चित्रकोट से ही जीत हासिल की थी लेकिन अगले साल 2019 में होने व लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें विधायकी पद छोड़ना पड़ा था। तीसरी बार विधायक बनकर प्रदेश में ही राजनीति करेंगे यह उद्देश्य उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से नज़र आ रहा है। बहरहाल वे राजमन बेंजाम को आउट करने में सफल हो गए।