CG Election : आधा दर्जन सीटों पर कभी नहीं जीती भाजपा, इस बार नए प्रत्याशियों से चमत्कार की उम्मीद

दोनों पार्टियों भाजपा (BJP)और कांग्रेस (Congress)ने अपने सभी प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। प्रदेश में 15 साल तक राज करने वाली भाजपा को छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आधा दर्जन सीटों पर कभी जीत नहीं मिली है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-10-27 05:35 GMT
  • राज्य बनने के पहले पाली तानाखार, मरवाही में भाजपा को मिल चुकी है जीत
  • कोटा में रेणु जोगी के मैदान में आने से अब दिलचस्प होगा मुकाबला

राजकुमार ग्वालानी- रायपुर। विधानसभा चुनाव (assembly elections)को लेकर अब बिसात पूरी तरह से बिछ चुकी है। दोनों पार्टियों भाजपा (BJP)और कांग्रेस (Congress)ने अपने सभी प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। प्रदेश में 15 साल तक राज करने वाली भाजपा को छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आधा दर्जन सीटों पर कभी जीत नहीं मिली है। इस बार इन सीटों कोटा पाली तानाखार (Kota Pali Tanakhar), खरसिया (Kharsia), सीतापुर (Sitapur), मरवाही (Marwahi) और कोटा (Kota)में नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया है। भाजपा ने रणनीति के तहत यहां पर काफी पहले प्रत्याशी भी तय किए। भाजपा को इस बार उम्मीद है कि किसी न किसी सीट पर जरूर नए प्रत्याशी चमत्कार करके भाजपा का सपना पूरा करेंगे। कोटा में एक बार फिर से जोगी कांग्रेस की रेणु जोगी के मैदान में आने से मुकाबला तगड़ा और दिलचस्प हो गया है।

छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद भाजपा ने 2003 से 2018 तक 15 साल तक लगातार जीत प्राप्त करके सरकार बनाने का काम किया। लेकिन यह भाजपा के लिए दुर्भाग्यजनक रहा है कि उसके प्रत्याशी छह सीटों पर कभी भी भाजपा का खाता नहीं खोल पाए हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ बनने के पहले जरूर पाली तानाखार और मरवाही में भाजपा को जीत मिली, लेकिन बाकी चार सीटों पर भाजपा राज्य बनने के पहले भी नहीं जीती है। इन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी लगातार जीत प्राप्त करते रहे हैं।

पाली तानाखार में पंजा कायम

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पाली तानाखार की सीट पर पिछले चार बार से कांग्रेस का ही कब्जा है। 1957 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुआ था। इस सीट पर भाजपा को 1985 और 1990 में जीत मिली थी। लेकिन इसके बाद से यह सीट भाजपा के हाथ से ऐसे फिसली की फिर कभी इस पर भाजपा को जीत नहीं मिल सकी। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से इस सीट पर पंजा कायम है। इस बार यहां से मैदान में कांग्रेस ने जिला पंचायत की सदस्य महिला प्रत्याशी दुलेश्वरी सिदार को मैदान में उतारा है। भाजपा ने 1998 में मरवाही से जीतने वाले रामदयाल उइके पर इस उम्मीद से दांव खेला है कि वे भाजपा की नैया पार लगा देंगे।

कोटा में त्रिकोणीय मुकाबला

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कोटा की सीट भी ऐसी है जिस पर भाजपा को कभी जीत नहीं मिली है। यहां से लगातार कांग्रेस को जीत मिली है। 1972 में पहली बार यहां के कांग्रेस के मथुरा प्रसाद जीते। राज्य बनने के बाद यहां से राजेंद्र प्रसाद शुक्ल जीते। उनके निधन के बाद 2006 के उपचुनाव में कांग्रेस से रेणु जोगी जीती । पिछले चुनाव में रेणु जोगी कांग्रेस के स्थान पर जोगी कांग्रेस से जीती। अब फिर से रेणु जोगी जोगी कांग्रेस से ही मैदान में हैं। जहां कांग्रेस ने इस बार अटल श्रीवास्तव पर दांव खेला है, वहीं भाजपा ने युवा प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को मैदान में उतारा है। रेणु जोगी के रहते कांग्रेस और भाजपा के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी लेकिन यह तय है कि इस  बार मुकाबला त्रिकोणीय होगा।

खरसिया में पटेल परिवार का कब्जा

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खरसिया की सीट पर पटेल परिवार का कब्जा है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 1977 में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुआ था, तब से लेकर अब तक इस पर कांग्रेस का ही कब्जा है। जहां पहले यहां से तीन बार कांग्रेस की लक्ष्मी पटेल जीती, इसके बाद से इस सीट पर नंदकुमार पटेल के परिवार का कब्जा है। पहले नंद कुमार पटेल पांच बार यहां पर जीते, इसके बाद से यहां पर उनके बेटे उमेश पटेल जीत रहे हैं। वे जीत की हैट्रिक लगाने मैदान में हैं। उनको हराने के लिए भाजपा ने साहू समाज के जिलाध्यक्ष महेश साहू को मैदान में उतारा है।

मरवाही भी कांग्रेस का गढ़

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मरवाही भी कांग्रेस का गढ़ है। 1967 से यहां पर चुनाव हो रहा है। यहां पर भाजपा को छत्तीसगढ़ बनने से पहले 1990 और 1998 में जीत मिली। इसके बाद से यहां पर कांग्रेस का ही राज है। इस बार कांग्रेस ने जीत का जिम्मा सरकारी नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए केके ध्रुव को सौंपा है। वे उप चुनाव जीत चुके हैं। भाजपा ने एक बार फिर से यहां कमल खिलाने के लिए भारतीय सेना में रहे प्रणव कुमार मरपच्ची को मैदान में उतारा है।

'कोंटा में कवासी का राज

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बस्तर की कोटा की सीट की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस के कवासी लखमा का राज रहा है। इसके पहले भी इस सीट पर कांग्रेस के ही प्रत्याशी जीतते रहे। हैं। इस सीट पर भाजपा 25 सालों में कभी जीत नहीं पाई है। एक बार 1972 में इस सीट से जनसंघ के प्रत्याशी को जीत मिली थी। 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद कभी यहां से भाजपा नहीं जीती है। 1998 से लगातार यहां पर कवासी लखमा जीत रहे है। इस बार उनको चुनौती देने के लिए भाजपा ने सोयम मुका पर दाव खेला है। माना जा रहा है भाजपा इस बार इस सीट पर जीत कर कवासी का तिलिस्म तोड़ने का काम करेगी।

सीतापुर में अब तक भगत की

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अंबिकापुर संभाग की सीतापुर सीट यानी अमरजीत भगत 2003 से श्री भगत की यहां पर अमर जीत हो रही है। वे इस समय प्रदेश के मंत्री हैं। इस बार भी वे मैदान में हैं। उनको हार का स्वाद चखाने का जिम्मा भाजपा ने सीआरपीएफ की नौकरी छोड़ कर भाजपा का दामन थामने वाले रामकुमार टोप्पो को दिया है। भाजपा को यहां से कभी जीत नहीं मिली है। यहां से एक बार 1998 में निर्दलीय प्रो गोपाल राम जरूर जीते हैं।
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