CG Election : पलायन सबसे बड़ा मुद्दा, लगातार बदल रहा समीकरण

बिलासपुर चुनावी( Bilaspur election)रंग में पूरी तरह रंगे मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं नेताओं से लेकर क्षेत्र की जनता तक सियासी बातचीत में मशगूल है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए बैठाए जा रहे समीकरणों के लिए कौन-क्या जिले में आने वाली इस सीट के सियासी मूड को भांपना आसान नहीं है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-11-15 07:27 GMT

विकास चौबे - बिलासपुर। चुनावी(election)रंग में पूरी तरह रंगे मस्तूरी विधानसभा (Masturi Assembly)क्षेत्र में कार्यकर्ताओं नेताओं से लेकर क्षेत्र की जनता तक सियासी बातचीत में मशगूल है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए बैठाए जा रहे समीकरणों के लिए कौन-क्या रणनीति बनाने में जुटा है, इस पर चर्चाएं हो रही हैं। दरअसल बिलासपुर चुनावी( Bilaspur election)रंग में पूरी तरह रंगे मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं नेताओं से लेकर क्षेत्र की जनता तक सियासी बातचीत में मशगूल है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए बैठाए जा रहे समीकरणों के लिए कौन-क्या जिले में आने वाली इस सीट के सियासी मूड को भांपना आसान नहीं है 120 किलोमीटर के इलाके में फैले इस चुनाव क्षेत्र के सियासी समीकरण बदलते रहे हैं। 2018 के चुनाव की बात करें तो यहां भाजपा-कांग्रेस (BJP-Congress)के साथ ही बसपा (BSP)की जंग देखने को मिली थी।

इस साल प्रदेश का सियासी माहौल बदला हुआ है। ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी की ओर यहां के मतदाताओं का रुझान होगा, यह दिलचस्प रहेगा।  खोंदरा से जौंधरा तक, मस्तूरी विधानसभा का नाम आते ही यही जुमला इस्तेमाल किया जाता है। दअसल खोंदरा और जौंधरा गांवों के बीच का करीब 120 किलोमीटर का इलाका इस विधानसभा क्षेत्र में आता है। मस्तूरी संभवत प्रदेश का सबसे लंबा विधानसभा क्षेत्र है । अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व इस सीट की शक्ल 2008 के परिसीमन के बाद काफी बदल गई है और सीपत विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा इसमें शामिल कर लिया गया है।

मध्यप्रदेश के समय से ही महत्वपूर्ण सीट

कांग्रेस के वर्चस्व वाली इस सीट से गणेश राम अनंत, बंशीलाल घृतलहरे जैसे बड़े लीडर चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री बने । 1998 में पहली बार यह सीट भाजपा के कब्जे में आई । मदन सिंह डहरिया यहां से चुनाव जीते, लेकिन • 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 2003 में मदन सिंह डहरिया को भाजपा के डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी ने हराया और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बने। 2008 में भी डॉ बांधी फिर चुनाव जीते, लेकिन 2013 में उन्हें दिलीप सिंह लहरिया ने हरा दिया। जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां एससी और एसटी वोटर का बड़ा वर्ग मौजूद है। यही वजह है कि सीट पर बीएसपी का भी प्रभाव रहा है। बीएसपी को पिछले तीन चुनाव से यहां करीब 20 हजार वोट मिलते रहे हैं।

चेहरे और कामों के आधार पर प्रत्याशियों में मुकाबला

यह क्षेत्र अनुसूचित जाति की सीट है, इसलिए अधिकांश वोटर यहां अनुसूचित जाति से हैं। वे अपने उम्मीदवारों को ही वोट करते हैं। क्षेत्र के वर्तमान विधायक भाजपा के डॉ कृष्णमूर्ति बांधी हैं। वह पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का काफी काम हुआ है। इसके साथ ही क्षेत्र औद्योगिक रूप से काफी विकसित है। यहां कोयला, क्रशर, रेत, सीमेंट और इस्पात के उद्योग स्थापित हैं। क्षेत्र में सीपत में एनटीपीसी पावर प्लांट स्थित है। यहां रोजगार बड़ा विषय है।

मतदाताओं का गणित

कुल वोटर - 239328

पुरुष - 124265

महिला - 115063

पोलिंग बूथ - 296

भाजपा और बसपा के बागी के कारण दलों की बढ़ी परेशानी

विधानसभा से बसपा की ओर से दाऊराम रत्नाकर भी इस बार मैदान में है। जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले रत्नाकर के अपने अलग वोट बैंक भी हैं। वहीं आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी मोहतरा सरपंच धरम भार्गव सामाजिक एवं युवाओं में अपनी अलग पहचान और पैठ बनाऐ हुऐ हैं। कुछ दिनों पहले तक भाजपा नेत्री रही चांदनी भारद्वाज जो मस्तूरी जनपद की अध्यक्ष रह चुकी है और जिला पंचायत सदस्य ने अब जोगी कांग्रेस का दामन थाम लिया है। जाहिर है वह भाजपा के वोट बैंक को ही प्रभावित करेंगी।

पलायन बड़ी समस्या, भ्रष्टाचार की गूंज भी

क्षेत्र में रोजगार की कमी है। काम नहीं होने के कारण जिले में सर्वाधिक पलायन मस्तूरी विधानसभा से ही हर बार दर्ज किया जाता है। प्रधानमंत्री आवास योजना और स्वच्छता अभियान के तहत गांव-गांव में बनने वाले शौचालय निर्माण में सर्वाधिक भ्रष्टाचार की गूंज इसी ब्लॉक में सुनाई दी है। चर्चित पेंशन घोटाले में भी नाम है। ओखर के सुकेश कुमार कहते हैं कि आबादी का बड़ा हिस्सा खेती किसानी पर निर्भर है। इसके बावजूद सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के लिए कुछ नहीं किया गया है। क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में स्कूल है, लेकिन वहां शिक्षकों की कमी है। कॉलेज में भी प्रोफेसरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। सीपत के अतीक अहमद के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर केवल सरकारी भवन हैं, लोगों को इलाज के लिए बिलासपुर की दौड़ लगानी पड़ती है। मनरेगा मजदूरी का भुगतान तो अटका ही है, पेंशन वाले भी भटक रहे हैं।

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