CG News - ठेकेदारों की मनमर्जी : इन्हें न अधिकारी का डर और लोगों की चिंता...राहगीरों को उठाना पड़ रहा खामियाजा

फोरलेन के काम को ठेकेदार अपने मनमर्जी से कर रहा है। जब उसकी मर्जी होती है, काम चालु करता है और जब मर्जी होती है, बंद कर देता है...पढ़े पूरी खबर;

Update: 2023-11-24 06:06 GMT

श्याम किशोर शर्मा/नवापारा-राजिम- शहर के बीच से बन रहे फोरलेन के काम को ठेकेदार अपने मनमर्जी से कर रहा है। जब उसकी मर्जी होती है, काम चालु करता है और जब मर्जी होती है, बंद कर देता है। ठेकेदार के सामने विभागीय अधिकारी असहाय और बेबस नजर आ रहे हैं। सड़को की हालत इस कदर खराब कर दी गई है कि, लोगों का आना-जाना दुर्भर हो गया है। गाड़ियों की तो हालत खराब हो रही है। जगह-जगह बिछाई गई गिट्टियां टायरो को चीर रही हैं। सड़क कहीं ऊपर है तो कहीं गढढेनुमा नीचे हैं।

वाहन चालकों को होती है दिक्कत...

दिन में ये उबड़-खाबड़ अप और डाऊन सड़के दिख जाती है, लेकिन रात को आने-जाने वाली गाड़ियों की चकाचौंध रोशनी से वाहन चालकों को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि रात में एक-दूसरे की गाड़ी की लाइट से सड़क नहीं दिखाई देती, कई गाड़ियों के चक्के ऊपर चढ़ जाते हैं तो कई गाड़ियों के चक्के नीचे उतर जाते हैं। चुनाव के दौर भी यह काम पूरा नहीं हुआ, क्योंकि राजनीतिक दल चुनाव में व्यस्त थे। अब जब चुनाव खत्म हो गया है तो सड़क बनाने वाले ठेकेदार गायब हो गए है।

लोगों में दिखा गुस्सा...

हर व्यक्ति सड़क निर्माण के कार्य को लेकर काफी आक्रोशित है। कुर्रा से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू पुल तक 4 किमी फोरलेन का काम शुरू तो किया गया, लेकिन काम अब तक पूरा नहीं हुआ है। अगर निर्माण कार्य की यही गति रही तो अगले साल 2024 तक भी पूरा नहीं हो पाएगा। अहम बात यह है कि, ठेकेदार को न तो शासन का भय है, न ही जनता की दिक्कतों से मतलब है। न ही ऊपर बैठे अफसरों का डर है।

कछुआ चाल से हो रहा काम...

सड़क निर्माण का ठेका लेने वाले खरसिया के रहने वाले हैं, कछुआ चाल से हो रहे काम को लेकर शहर के हर नागरिकों में आक्रोश का वातावरण बन चुका है। 29 करोड़ रूपए के भारी भरकम राशि से बनने वाले रोड चौड़ीकरण के काम में न तो क्वालिटी है और न ही इसे गंभीरता से किया जा रहा है। हर तरफ खोदे गए गढ्ढे जानलेवा भी बनते जा रहे हैं। ठेकेदार के स्टाफ इतने गैरजिम्मेदार हैं कि किस प्वाइंट को जल्दी करना है, इन्हें वो भी समझ नहीं है। छोटे से लेकर बड़े अधिकारी असहाय नजर आ रहे हैं।

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