एक्सक्लूसिव : रसोड़ा में अनसुलझा अनुवांशिक बीमारी, परिवार के कई लोगों की हो गई मौत लेकिन न इलाज का पता न मर्ज का नाम मालूम...

रसोड़ा गांव में भी कुछ ऐसा है जो आज भी अनसुलझा है. रसोड़ा का एक परिवार रहस्मयी बीमारी से जूझ रहा है. रसोड़ा का साहू परिवार एक अनसुलझा अनुवांशिक बीमारी से ग्रस्त है. इस अनुवांशिक बीमारी से परिवार के कई लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन अब तक इस अनुवांशिक बीमारी के नाम का पता नहीं चल पाया है. और ना ही इस बीमारी के समुचित इलाज का पता चल पाया है.;

Update: 2021-12-07 15:06 GMT

मनहरण सोनवानी. महासमुंद(बसना). रसोड़े में कौन था...? का मजाक आपने सोशल मीडिया में खूब देखा होगा. पिछले साल कोकिला बेन और गोपी बहू का रसोड़े में कौन था...? वाला मजाकिया वीडियो जमकर वायरल हुआ था. बाहुबली को किसने मारा टाइप का रसोड़े में कौन था, ये सवाल भी हर किसी की जुबां पर था. बाहुबली-2 रिलीज होने के बाद बाहुबली को किसने मारा का सवाल तो सुलझ गया, लेकिन रसोड़े में कौन था...? सवाल आज भी अनसुलझा है. 

रसोड़ा गांव में भी कुछ ऐसा है जो आज भी अनसुलझा है. रसोड़ा का एक परिवार रहस्मयी बीमारी से जूझ रहा है. रसोड़ा का साहू परिवार एक अनसुलझा अनुवांशिक बीमारी से ग्रस्त है. इस अनुवांशिक बीमारी से परिवार के कई लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन अब तक इस अनुवांशिक बीमारी के नाम का पता नहीं चल पाया है. और ना ही इस बीमारी के समुचित इलाज का पता चल पाया है. 

'रसोड़ा' की बात सुनकर आप रसोड़े में कौन था का मजाक ही भूल जाएंगे. महासमुंद जिला के विकासखंड बसना से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा गांव रसोड़ा के साहू परिवार में अजीबोगरीब अनुवांशिक विकलांगता सामने आई है. जिसे ओडिशा और छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में बहुत इलाज करवाने के बाद भी इस बीमारी का नाम एवं कारण किसी भी डॉक्टर ने अब तक नहीं बता पाए हैं. ये बीमारी परिवार में बढ़ता ही जा रहा है. परिजनों ने बताया कि पहले विकलांगता की इस बीमारी से पीड़िताओं की मां और मामा की मौत हुई है. अब इसका दंश परिवार के दो पुत्री निष्ठा साहू (30 वर्ष) एवं रूबी साहू (28 वर्ष) झेल रही है. यह परिवार पूरी तरह टूट चुका है. इनके इलाज में 3 एकड़ जमीन बेचकर भी स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो सका. अब परिवार गरीबी में बड़ी मुश्किल से जीवनयापन कर रहै हैं. जिसके कारण आगे का इलाज करा पाना संभव नहीं हो पा रहा है. इतना सब कुछ होने के बाद भी ये परिवार भगवान के कुदरती मार को मजबूर है लेकिन परिवार को किसी तरह की कोई शासकीय मदद नहीं मिल पा रहा है.

परिवार के मुखिया गंगाधर साहू ने बताया कि 1986 में 35 वर्ष पूर्व चंदेली गांव के सीरिया साहू से विवाह हुआ था. जो वर्ष 1990 में निष्ठा साहू, 1992 में रूबी साहू और 1994 विश्वास साहू को स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया था. लेकिन वर्ष 2005 में गंगाधर साहू की पत्नी को सीरिया साहू को विकलांगता की बीमारी शुरू हुई जो कुछ ही दिन बाद शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूरी तरह विकलांग हो गई जिसे बहुत इलाज कराने के बाद भी वर्ष 2007 में इनकी मृत्यु हो गई कुछ ही दिन बाद चंदेली के उनके भाई बरनलाल की भी इसी बीमारी से मृत्यु होना बताया. गंगाधर की पुत्री श्रेया साहू 2007 में सीतापुर विद्यालय 10 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 11 वीं पढ़ाई के लिये पिथौरा के परसवानी स्कूल गई इसी दौरान श्रेया साहू को विकलांगता की बीमारी की शुरुआत हुई जिसके कारण पढ़ाई को छोड़कर वापस घर आना पड़ा और देखते ही देखते उसकी छोटी बहन रूबी साहू भी इसी बीमारी की चपेट में आ गई. इस बीमारी के कारण दोनों बहनों को पढ़ाई छोड़ना पड़ा. देखते देखते दोनों बहनों में यह बीमारी बढ़ता गया जो शारीरिक एवं मानसिक रूप विकलांग करता जा रहा है. इनका इलाज उड़ीसा के त्रिपाठी नर्सिंग होम एवं स्थानीय डॉक्टरों से करवाया. गंगाधर द्वारा अपनी बेटियों का इलाज में 3 एकड़ जमीन  को बेच दिया लेकिन इस बीमारी का नाम एवं कारण किसी भी डॉक्टर ने अब नही बता पाया और ना ही दोनो बच्चियों के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आया. अब परिवार 1 एकड़ जमीन में किसानी करता है और गंगाधर का बेटा रायपुर के दुकान में काम करता है जिसके सहारे से ये परिवार बड़ी कठिनाइयों के बीच जीवन यापन कर रहे हैं. और चाह कर भी इसके पिता पैसे की कमी से अपनी बेटियों का इलाज नहीं करा पा रहे हैं.

भगवान की कुदरती मार झेलने के बाद भी ये परिवार शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित है और न कभी स्वास्थ्य विभाग ना ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इस परिवार की सुध ली है. जब ये परिवार 2016 में प्रमाण पत्र के लिए महासमुंद जिला अस्पताल गए तो निष्ठा साहू का 55 प्रतिशत एवं रूबी साहू का 50 प्रतिशत विकलांगता प्रमाण पत्र बना कर दिया गया. समय के साथ बढ़ते बीमारी के कारण विकलांगता बढ़ता जा रहा है. लेकिन 2021 में जब विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने के लिए महासमुंद गए तो उनका प्रतिशत बढ़ने के बजाय 50 प्रतिशत हो गया. ये परिवार जैसे तैसे करके बड़ी मुश्किल से जीवनयापन कर दोनो बहनों के लिये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांग पेंशन सहित इलाज के लिये शासन प्रशासन से हाथ फैलाए बैठा है लेकिन अभी तक किसी भी प्रकार की कोई भी शासकीय योजनाओं का लाभ इस परिवार को नहीं मिल पाई है.

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