Bach Farming : पादप बोर्ड की पहल से छत्तीसगढ़ के किसान होंगे मालामाल, ‘बच’ की खेती से मोटी कमाई की राह हुई आसान
बच की खेती करने के लिए पौधों की चिंता की आवश्यकता नहीं है। पहले वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधे राज्य शासन की योजना अंतर्गत पादप बोर्ड के माध्यम से मुफ्त दिया जाता है। पढ़िए पूरी खबर...;
रायपुर: Bach Farming छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा बच की खेती की शुरुआत कर दी गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड की पहल से बच की खेती की शुरुआत हो पाई है। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 108 एकड़ में प्रायोगिक तौर पर बच की खेती की जा रही है, जिससे प्रति एकड़ 80 हजार रुपए से 1.00 लाख रुपए तक आय की प्राप्ति किसानों को होगी। प्रयोग सफल होने पर बच उत्पादन से धान की अपेक्षा किसानों की आय में कई गुना वृद्धि की संभावना जताई जा रही है।
Bach Farming विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, बच एक औषधीय पौधा है, बेंगलोर के टूंकूर गांव के किसानों ने इसकी खेती में आने वाले समस्याओं के कारण इसका कृषिकरण कम कर दिया है। वहीं छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे पेण्ड्रा जिले के गांव खटोला, अनवरपुर, तुपकबोरा, मुरली और तेन्दुपारा के किसानों ने बच की खेती का तरीका सीख लिया है। इन्हें पादप बोर्ड द्वारा निःशुल्क औषधीय पौधे एवं मार्गदर्शन दिया गया है। इधर महासमुंद जिले के बागबाहरा, तेन्दुकोना क्षेत्र के ओमकारबंध के किसानों ने भी बच के कृषिकरण का काम शुरू कर दिया है। अब तक लगभग छत्तीसगढ़ के 108 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में बच की खेती की जा रही है। इन किसानों ने सकारात्मक रूप से बच को अपनाया है, क्योंकि बहुत ही कम लागत में बच की खेती से अधिक लाभ की संभावना है।
आसान है बच की खेती की विधि
बच को धान की फसल के समान ही वानिकी खेती के रूप में अपनाया जा सकता है। इसकी बुआई धान की फसल की तरह ही जुलाई से सितंबर माह तक की जाती है। एक एकड़ में रोपण के लिए 25 से 30 हजार पौधों की आवश्यकता होती है। इसकी फसल 8 से 9 माह में तैयार हो जाती है। फसल की कटाई अप्रैल से जून माह के बीच किया जाता है। एक एकड़ से लगभग 1 से 3 टन तक उपज का उत्पादन होता है। बच की वर्तमान बाजार कीमत 50 से 60 रुपया प्रति किलो तक है। इस हिसाब से किसानों को एक एकड़ में 1 लाख से भी अधिक की आय मिल जाती है।
मशीन से होती है पालिशिंग
बच के प्रकंद के 3 से 4 इंच के टुकड़ों में काटकर आशिक छाया क्षेत्र में सुखा लिया जाता है। इसके पश्चात् इसकी पालिशिंग मशीन से कराई जाती है, जिससे उत्पाद बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाता है। बोर्ड द्वारा मार्केटिंग के लिए भी सुविधा दी जाती है। जिससे किसानों को 15 दिनों में ही उपज का पैसा मिल जाता है।
पहले साल मुफ्त में मिलेंगे पौधे
बच की खेती करने के लिए पौधों की चिंता की आवश्यकता नहीं है। पहले वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधे राज्य शासन की योजना अंतर्गत पादप बोर्ड के माध्यम से मुफ्त दिया जाता है। पहले साल में आवश्यकतानुसार 10 से 15 प्रतिशत पौधों को छोड़ दिया जाता है, जो कि 40 दिन में फिर से पौधा तैयार हो जाता है, जिसे रोपण सामग्री नर्सरी के रूप में अगले वर्ष रोपण के लिए उपयोग किया जाता है। शेष का संग्रहण कर लिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधों की उपलब्धता बनी रहती है। बच को छत्तीसगढ़ी में घोड़बंध या भूतनाशक के नाम से भी जाना जाता है। जिसका उपयोग त्वचा रोग, न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर, पेट संबंधी बीमारी, हृदय रोग संबंधी दवा बनाने में की जाती है। इसे कई रोगों में उपयोग किये जाने के कारण इसकी बाजार में मांग काफी है।