Independence Day : बीएनसी मिल के मजदूरों ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ किया था पहला प्रदर्शन

अपने संस्कारों की वजह से प्रदेश में संस्कारधानी की ख्याति रखने वाले राजनांदगांव जिले ने आजादी के संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-08-14 05:03 GMT

सचिन अग्रहरि रायपुर / राजनांदगांव। इस धरती में जन्म लेने वाले सैकड़ों वीर सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़कर आजादी की नींव ( foundation of freedom )को मजबूत रखने की दिशा में काम किया । इस संघर्ष की शुरुआत अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और निस्तारी के संकट से जूझ रहे राजनांदगांव जिले (Rajnandgaon district)की पांच रियासतों ने 1938 के दशक में एकजुट होकर असहयोग आंदोलन का आगाज किया था, हालांकि इसके पहले भी एक दफा बीएनसी मिल (BNC mill)में अंग्रेजों की प्रबंध व्यवस्था से नाराज मजदूरों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था।

स्वतंत्रता आंदोलन (independence movement)की शुरुआत राजनांदगांव में अलग तरीके से हुई। यहां 1920 के दशक में बीएनसी मिल (BNC Mill )के मजदूरों ने अंग्रेजों की प्रबंधन के खिलाफ लड़ाई की नींव रखी, जिसमें प्रमुख सूत्रधार ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डा. बल्देव प्रसाद मिश्र, त्रियोगीनारायण तिवारी और कन्हैया लाल अग्रवाल थे। वहीं तामस्कर और श्री गोमास्ता दुर्ग से यहां आकर आदोलनो में भाग लेते थे। इसके बाद 1938 में राजनांदगांव, खैरागढ़, कवर्धा, छुईखदान और छुरिया (Rajnandgaon, Khairagarh, Kawardha, Chhuikhadan and Churia )की बड़ी रिसायो ने एकजुट होकर अंग्रेजो की दमनकारी नीति, बेगारी प्रथा और निस्तारी संकट के खिलाफ लड़ाई का आगाज किया।

फौज पर लाठीचार्ज 

सन 1930 में दिल्ली से यहां फौज भेजी गई। जिसे हायर सेकेंडरी स्कूल में रूकवाया गया था। अंग्रेजो(the british )ने फौज पर लाठी चार्ज किया। जिसके विरोध में नगर पालिका के पार्षदो ने अपने पदो से इस्तीफा तक दे दिया था। राजनांदगांव के रेल्वे स्टेशन के प्लेटफार्म और मैदान में जंगल सत्याग्रह (Jungle Satyagraha)को लेकर सभा हुई थी।

162 सेनानियों ने संभाला था मोर्चा

राजनांदगांव जिले (Rajnandgaon district )की रियासतो ने अंग्रेजों (the British)के खिलाफ 1920 के आसपास राजनांदगांव, छुईखदान, छुरिया, बादराटोला, कौड़ीकसा, घोघरे, कवर्धा और खैरागढ़ (Rajnandgaon, Chhuikhadan, Churia, Badratola, Kaudiksa, Ghoghare, Kawardha and Khairagarh)में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो ने लगातार बैठके की और अंग्रेज हुकुमत के खात्मे की रणनीति तैयार की। जिले में 162 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इस लड़ाई में भाग लिया। 1930 में राजनांदगांव में स्टेट कांग्रेस की स्थापना आरएस रूईकर के मार्गदर्शन में हुई। जयस्तंभ चौक स्थित कांग्रेस भवन में ही इसकी स्थापना हुई थी। 1934 में हरिजन आदोलन की शुरुवात बंशीलाल रामटेके और त्रियोगी नारायण तिवारी के नेतृत्व में यहीं से की गई।


खादी का प्रचार कर सेनानियों ने रखी थी स्वदेशी आंदोलन की नींव

दुर्ग। दुर्ग जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ( freedom fighters )ने अंग्रेजों(the British )के खिलाफ जंग का ऐलान करने के लिए खादी (Khadi )को जरिया बनाया था। खादी के जरिए स्वदेशी आंदोलन की नींव रखकर उन्होंने अंग्रेज हुक्मरानों की नींद हराम कर दी थी। उस दौर में दुर्ग जिला आजादी की लड़ाई में सर्वाधिक सक्रिय और अग्रणी जिलो में पहचाना भी जाता था। दुर्ग जिले के राजनैतिक इतिहास में सन 1906 में दुर्ग जिले की एक रियासत राजनांदगांव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह, शिवलाल मास्टर और शंकरराव खरे ने मिलकर खादी के प्रचार के साथ स्वदेशी आदोलन का शुभारंभ किया था। 1915 में मध्यप्रदेश के मध्यप्रांत और बरार प्रादेशिक संघ में नलिनीकांत चौधरी और घनश्याम सिंह गुप्ता ने प्रतिनिधित्व किया था

आजादी की लड़ाई में सर्वाधिक सक्रिय और अग्रणी था दुर्ग

अंग्रेजो द्वारा रोलेट एक्ट को पास किए जाने के बाद दुर्ग में एक बड़े आदोलन का आगाज हुआ था। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने राजनांदगांव बीएनसी मिल के मजदूरो के साथ 37 दिनो तक हड़ताल कर अंग्रेजो से सीधी लड़ाई लड़ी थी । जलियावाला बाग हत्याकड के बाद दुर्ग में आदोंलन बेहद तेज हुआ। ठाकुर प्यारेला सिंह ने वकालत छोड़कर राजनांदगांव रिसायसत में डा. बल्देव प्रसाद मिश्र के सहयोग से क्षेत्रीय विद्यालय की स्थापना की। 1920 में बाल गंगाधर तिलक के निधन के बाद खैरागढ़ और डोंगरगढ़ में भी हड़ताल कर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई। लक्ष्मी बाई पर राजद्रोह का केस अंग्रेजो के खिलाफ चली जंग में दुर्ग जिले की लक्ष्मीबाई पति गुलाबचंद ने शौर्य का परिचय दिया। वे एकमात्र ऐसी महिला कार्यकत्र्ता थी। जिसके खिलाफ अंग्रेजो ने राजद्रोह का आरोप लगाया था। जिसके कारण उन्हें 1931-32 में जेल तक जाना पड़ा था।

पाटन से क्रांति का आगाज

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गृह ग्राम पाटन आजादी के दौर में भी क्रांतिकारियो का गढ़ रहा । यहां उदयराम, मधुमंगल प्रसाद सावर्णी, खिलावन सिंह बघेल जैसे कई देशभक्तो ने आजादी की लड़ाई लड़ी। वहीं बेमेतरा तहसील के नवागढ़ में विश्वनाथ यादव, बेमेतरा में लक्ष्मण प्रसाद वैद्य, दुर्ग से घनश्याम सिंह गुप्ता, पंडित रत्नाकर झा, विश्वनाथ यादव तामस्कर, नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, मोहनलाल बाकलीवाल, गेंदालाल बंछोर, वासुदेव राव, पांडुरंग रामराव दोनगांवकर, भंगूलाल श्रीवास्तव, रामरतन गुप्ता, रामप्रसाद देशमुख के नेतृत्व में स्वतंत्रता का संग्राम लड़ा गया।

झंडा सत्याग्रह की शुरुआत

1923 में दुर्ग जिले से झंडा सत्याग्रह की शुरूवात हुई। मार्च 1924 में दुर्ग और पाटन में तपस्वी सुंदरलाल की अध्यक्षता में जिला कांग्रेस अधिवेशन हुआ। जिसमें 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज्य दिवस घोषित करने के साथ ही गांधी जी की प्रसिद्ध यात्रा के साथ सविनय आदोंलन का सूत्रपात हुआ। जिसमें दुर्ग ने भी पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया था।

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