फैंकनी पड़ी लाखों की मिठाई, 34 दिनों से मिठाई की दुकानों के शटर बंद
कोराेना के कहर के चलते लॉकडाउन में प्रदेश की 50 हजार से ज्यादा मिठाई दुकानों पर भी ताला लग गया है। साथ ही लॉकडाउन से पहले बनाई गई लाखों रुपए की मिठाई खराब होने की वजह से उसे फेंकना पड़ गया। मिठाई कारोबारियाें का करोड़ों का कारोबार भी प्रभावित हो गया है। इन्हें राेज 50 करोड़ का फटका लग रहा है।;
कोराेना के कहर के चलते लॉकडाउन में प्रदेश की 50 हजार से ज्यादा मिठाई दुकानों पर भी ताला लग गया है। साथ ही लॉकडाउन से पहले बनाई गई लाखों रुपए की मिठाई खराब होने की वजह से उसे फेंकना पड़ गया। मिठाई कारोबारियाें का करोड़ों का कारोबार भी प्रभावित हो गया है। इन्हें राेज 50 करोड़ का फटका लग रहा है। इन दुकानों में काम करने वाले तीन लाख से ज्यादा कामगारों का रोजगार भी ठप हो गया है। दुकानें खुलने के बाद ही इन्हें काम मिलेगा तब इनका जीवनयापन सही तरीके से हो सकेगा। बड़ी मिठाई दुकानों का धंधा ज्यादा प्रभावित हुआ है। कई दुकानों में रोज दो लाख तक का गल्ला होता था। अब तक लॉकडाउन में डेढ़ हजार करोड़ से ज्यादा का कारोबार प्रभावित हो चुका है।
लॉकडाउन के चलते 34 दिनों से मिठाई दुकानों के शटर बंद हैं। शहर से लेकर गांवों तक मिठाई दुकानों में बड़ा कारोबार होता है। छोटी मिठाई दुकानों में तो मिठाई के साथ चाय-नाश्ते का भी धंधा चलता है, लेकिन लॉकडाउन में पूरी तरह से धंधा बंद हो गया है। कहीं कोई काम नहीं चल रहा है। इन दुकानों में दो से लेकर दर्जनों कामगार मेहनत करते हैं। ये सब भी खाली हो गए हैं। इनके सामने घर चलाने का संकट पैदा हो गया है। दुकानदार इन्हें जितनी हो सके, मदद तो कर रहे हैं लेकिन हर दुकानदार की इतनी हैसियत नहीं है कि वह अपने कामगारों की लगातार मदद कर सके।
फेंकनी पड़ी मिठाई
मिठाई दुकानों के संचालक कहते हैं कि लॉकडाउन लगने से पहले हालांकि तीन दिनों का समय मिला था, लेकिन इन दिनों में ज्यादा धंधा हुआ ही नहीं। आमतौर पर हर छोटा और बड़ा दुकानदार तीन से चार दिनों का स्टॉक बनाकर रखता है। छोटी दुकानों में करीब एक लाख की तो बड़ी दुकानों में चार से पांच लाख की मिठाई का स्टॉक रहता है। इसी के साथ करीब एक सप्ताह का रॉ-मेटिरयल भी रहता है। जहां सभी दुकानदारों की मिठाई खराब हो गई, वहीं राॅ-मेटिरयल भी काम का नहीं रह गया। ज्यादातर दुकानदारों ने अपनी मिठाई और राॅ-मटेरियल को कूड़े में फेंक दिया है।
25 हजार से दो लाख तक रोज का धंधा
मिठाई दुकानों में शहरों की बात करें तो यहां पर छोटी से लेकर बड़ी दुकानों में 25 हजार से लेकर दो लाख तक का गल्ला होता है। राजधानी रायपुर में ही 50 ऐसी नामी दुकानें हैं जहां पर रोज एक लाख से ज्यादा का गल्ला होता है। इसी तरह से प्रदेश के और कई बड़े शहरों बिलासपुर, भिलाई, कोरबा, राजनांदगांव, रायगढ़, अंबिकापुर और जगदलपुर में भी कई नामी दुकानें हैं, जहां पर रोज का धंधा एक लाख से ज्यादा का हो जाता है।
जहां तक शहरों की छोटी दुकानों का सवाल है तो उनका भी धंधा रोज 20-25 हजार तक हो ही जाता है। शहर के मोहल्लों की दुकानों में ही रोज का पांच-दस हजार तक कारोबार होता है। ग्रामीण क्षेत्र में वहां की आबादी के हिसाब से धंधा होता है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक गांव की मिठाई दुकानों में भी रोज पांच हजार का धंधा हो जाता है।
राजधानी में 50 बड़ी दुकानें
मिठाई दुकान चलाने वालों की मानें राजधानी रायपुर में पांच सौ से ज्यादा दुकानें हैं। इनमें बड़ी दुकानें 50 के करीब हैं। बाकी छोटी दुकानें हैं। प्रदेश में 20 हजार गांव हैं हर गांव में एक-दो दुकान होती ही है। गांवों से लेकर शहरों तक दुकानों की संख्या देखें तो एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा दुकानें प्रदेश में हैं। एक दुकान का औसत एक दिन का धंधा दस हजार माना जाए तो एक दिन में 50 करोड़ का धंधा हो जाता है।