Miyawaki Plantation: वृक्षारोपण की नई तकनीक, जानिए वेदांता ने क्या अपनाया...
भारत की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम उत्पादक वेदांता एल्यूमिनियम ने व्यापक वनीकरण की कोशिश शुरू की है, जो कि एक खास पद्धति ’मियावाकी’ पर आधारित है। पढ़िए पूरी खबर...;
रायपुर। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) (28 जुलाई) के मौके पर भारत की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम उत्पादक वेदांता एल्यूमिनियम (Vedanta Aluminum) ने व्यापक वनीकरण (Plantation) की कोशिश शुरू की है, जो कि एक खास पद्धति ’मियावाकी’ (Miyawaki) पर आधारित है। इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) (29 जुलाई) के अवसर पर समुदाय के सदस्यों के बीच इस शानदार वन्य जन्तु के संरक्षण की जरूरत के बारे में जागरुकता फैलाई गई। वेदांता एल्यूमिनियम प्रकृति संरक्षण के मुद्दे पर बड़े पैमाने जागरुकता प्रसार और गहन प्रयास कर रही है।
दरअसल, जापान के विख्यात वनस्पति विज्ञानी अकिरा मियावाकी (Akira Miyawaki) ने वृक्षारोपण का यह खास तरीका इजाद किया था, उन्हीं के नाम पर इसे मियावाकी पद्धति कहते हैं। इस पद्धति से बहुत कम अवधि में किसी जगह की स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का उपयोग करते हुए घना और कई परतों वाला वृक्षारोपण किया जाता है। जमखानी कोयला खदानों की परिधि में एक एकड़ भूमि पर यह पहल की गई है, कंपनी का इरादा है शीघ्रता से इसका पैमाना बढ़ाते हुए केवल दो वर्षों के भीतर 61 हैक्टेयर भूमि को हरियाली से ढक देना। परिणामस्वरूप लगभग 12,50,000 पौधे लगाए जाएंगे जो बाद में आत्मनिर्भर हो जाएंगे और इनमें कई फलों के पेड़ भी शामिल होंगे।
कार्यशाला और रैलियों के जरिए प्रकृति संरक्षण का दे रहे संदेश
वेदांता एल्यूमिनियम (Vedanta Aluminum) निरंतर वृक्षारोपण अभियान चलाती रही है जिनमें कर्मचारी वॉलंटियरों और स्थानीय समुदायों को सक्रियता से शामिल किया जाता है। कंपनी अपने सभी प्रचालनों में स्वच्छता अभियान (cleanliness drive) भी चलाती रहती है। इसके अलावा कंपनी ने ऑन-साईट आवागमन के लिए इलेक्ट्रिक वाहन भी चलाए हैं। प्रकृति के संरक्षण के लिए जानकारीपूर्ण सस्टेनेबल जीवनशैली विकल्पों के बारे में जन-जागरुकता के लिए कंपनी रैलियां और ऑनलाइन कार्यशालाएं भी आयोजित करती रहती है। कंपनी ने अपनी इकाईयों के आसपास के इलाकों में 40 से ज्यादा जलाशयों को नया जीवन दिया है। इससे जल पर निर्भर प्राणी भी फलफूल रहे हैं और स्थानीय समुदायों को अपनी आजीविका में भी मदद मिली है।