नागलोक : जहां पाई जाती हैं छत्तीसगढ़ में कुल सांपों की 80 फीसदी प्रजातियां... जानिए यहां कैसे कम होने लगा मौतों का सिलसिला...
प्रदेश में जितने भी प्रजाति के सांप पाए जाते हैं। उनमें से नागलोक कहे जाने वाले इस जिले में 80 फीसदी सांपों की प्रजाति मौजूद है। पढ़िए पूरी खबर...;
जशपुर। छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर में बसे जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील और इससे लगे इलाकों को नागलोक के नाम से जाना जाता है। प्रदेश को ओडिशा से जोड़ने वाली स्टेट हाईवे के किनारे स्थित तपकरा और इसके आसपास के गांव में किंग कोबरा, करैत जैसे विषैले सांप पाए जाते हैं। इस इलाके में सर्पदंश से अब तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन अब साल दर साल यहां मौतों का आंकड़ा कम होता जा रहा है। उसका बड़ा कारण यह है कि यहां वन विभाग सहित प्रशासन और युवाओं की साझा पहल से जन जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। इसके साथ ही अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। इस कारण सर्पदंश से मृत्य दर में कमी आई है।
जमीन पर सोने के कारण सर्पदंश की घटनाएं अधिक
सांप के जानकार और रेस्क्यू करने वाले केसर हुसैन का कहना है कि जशपुर क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में सांप पाए जाते हैं। लगभग छत्तीसगढ़ में जितने भी प्रजाति के सांप पाए जाते हैं। उनमें से जशपुर में 80 फीसदी सांपों की प्रजाति जशपुर में मौजूद है। उन्होंने सांपों के रेस्क्यू के दौरान 26 प्रजातियों के पाए जाने का दावा किया है। हुसैन ने बताया कि जशपुर में सांपों को लेकर कोई सर्वे नहीं किया गया है। अगर सर्वे हो तो और भी प्रजातियों के सांप मिल सकते हैं। जशपुर में कॉपरहेड ट्रीनकेड, वाईटलिट पिट वाइपर, बम्बू पिट वाइपर, इसके साथ ही एशिया में सबसे जहरीले सांप में कॉमन करैत सबसे अधिक पाए जाते हैं। साथ ही कोबरा भी पाया जाता है। इलाके में सर्पदंश के मामले सामने आने का मुख्य कारण जमीन पर सोना है, जिसके कारण ये घटनाएं होती है।
2005 से 962 लोगों की मौत
नागलोक के रूप में पहचान बना चुके जशपुर जिले में सर्पदंश से 2005 से 962 लोगों की मौत हुई है। पिछले वर्ष ही सर्पदंश से 52 लोगों की जान चली गई थी। सर्पदंश से अधिकांश मौतें पीड़ित को समय पर मेडिकल सहायता न मिलने की वजह से होती है। जागरुकता की कमी से लोग सर्पदंश पीड़ित को अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़-फूंक और जड़ी बूटी से इलाज भी कराते हैं। इससे जहर शरीर में फैल जाता है। सर्प विशेषज्ञ का कहना है कि इस अंचल के जंगलों में पलाश के पेड़ और भुरभुरी मिट्टी से सांपों के रहने और वृद्धि का मुख्य कारण है। उन्होंने बताया कि दीमक की बांबी में सांपों को रहने की अच्छी सुविधा मिल जाती है।
शुरू होगा सर्प ज्ञान केंद्र
जागरुकता अभियान को और कारगर बनाने के लिए ही राज्य सरकार ने तपकरा क्षेत्र में आबंटन के साथ सर्प ज्ञान केंद्र की भी स्वीकृति दे दी है। वन विभाग इस दिशा में अगले महीने से काम शुरू कर देगा। तीन चरणों में पूरी होने वाली इस योजना में सबसे पहले सर्प ज्ञान केंद्र में सांपों का रेस्क्यू ट्रेनिंग, घायल सांपों का उपचार के लिए अस्पताल और जिले के सभी स्कूलों में भी डेमो के माध्यम से सांपों को लेकर जागरुकता अभियान पर जोर दिया जाएगा। सर्प विशेषज्ञ डॉ. अजय शर्मा का कहना है कि सर्पदंश से मौतों के आंकड़ों में कमी लाने के लिए यह जागरुकता अभियान काफी लाभकारी सिद्ध हुआ है। देखिए वीडियो-