दुनिया के सबसे विशाल वैक्सीनेशन पर विपक्ष फैला रहा भ्रम, जनता समझ रही है : डॉ. अनिल जैन

भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पार्टी के पूर्व महासचिव डॉ.अनिल जैन का कहना है कि विपक्ष ने वैक्सीनेशन को लेकर देश की जनता को भ्रमित कर रखा है। देश की जनता भी अब इस बात को समझ रही है। डा. जैन से हरिभूमि एवं आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने कोरोना के संदर्भ में देश के हालात पर विस्तार से चर्चा की। उनसे हुई बातचीत के चुनिंदा अंश।;

Update: 2021-05-19 02:28 GMT

रायपुर. देश में कोरोना को हराने के लिए चल रहे कोरोना टीकाकरण अभियान के बीच तरह तरह की बातें सामने आ रही है। जहां सरकार इसे कारगार दवा बता रही है। वहीं विपक्ष से लेकर कई लोग इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इसी को लेकर हरिभूमि एवं आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ हिमांशु द्विवेदी ने देश के हालात पर  भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद एवं पूर्व महासचिव डॉ जैन से चर्चा की। उनसे हुई बातचीत के चुनिंदा अंश।

जिस समय वैक्सीनेशन शुरु हुआ ये बताया गया कि ये दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। भारत का तजुर्बा सबसे बेहतर है, लेकिन चार माह हो गए, कुल आबादी का 3 या 4 प्रतिशत हिस्सा वैक्सीनेट हो पाया, क्या मानें इसे। सफलता या विफलता?

डा. अनिल जैन:- भारत की परिस्थिति, चिकित्सकीय निपुणता और 70 साल में हमने चिकित्सा की दृष्टि से कितना उन्नयन किया है। इन चीजों को अलग-अलग करके विचार करना होगा। तब आप चीजों को ठीक प्रकार से सही मायने में सार्थक बहस कर पाएंगे। एक साथ सारी चीजों को लेकर, पुरानी चीजों को भुलाकर भारत की परिस्थिति की चर्चा करेंगे तो पाएंगे कि हमारा ये वैक्सीनेशन कार्यक्रम एक बड़ा ड्राईव है। इसमें कुछ कमियां आईं तो क्यों यह, समझने की जरुरत है। हमारा वेक्सीनेशन कतई फेल नहीं है। सदी की सबसे बड़ी महामारी में भारत ने पहल की। दुनिया के देशों को दवा पंहुचाने में भी और अपने संसाधनों को जुटाने में भी पहल की। जहां एक पीपी 95 मास्क नहीं बनते थे, वह बनाना शुरु किया। हमने अपने सारे संसाधनों को जोड़ना शुरु किया। इसमें महारत भी हासिल की है। लॉकडाउन पीरियड में सरकार बैठी नहीं रही। इस महामारी के समय पर हमारे वैज्ञानिकों ने वैक्सीन तैयार की। दो प्रकार के वैक्सीन विकसित किए। वैक्सीनेशन ड्राइव प्रारंभ किया तो हमारे पास रॉ मटेरियल नहीं था। अमरीका ने आनाकानी की। जितनी क्षमता है उतना ही बन सकता है। विपक्षी जनता को भ्रमित कर रहे हैं। पोस्टर निकालते है, शर्म आनी चाहिए। जनता को सही स्थिति बतानी चाहिए। देश में 8 करोड़ वैक्सीन रोज बनाने की व्यवस्था की गई है।

वैक्सीन विदेशों को भेजने के संर्दभ में.. आपने तीन करोड़ फ्रंटलाईन वर्कर को वैक्सीन का पात्र बताया और साढ़े 6 करोड़ वैक्सीन विदेशों में बांट दी। लोगों का सवाल है 136 करोड़ के देश में लोगों को वैक्सीन नहीं मिली थी और आप दुनिया में मैत्री गांठने के लिए वैक्सीन बांट रहे थे?

डा. जैन:- जब वैक्सीनेशन शुरु हुआ तब 60 साल से उपर और फ्रंटलाईन वर्कर को प्राथमिकता थी। वह सुचारु रूप से चला। जब इन्हें लगेगी उसके बाद दूसरों को भी लगाने का काम करेंगे। हमने अन्य वर्गों के लिए भी काम किया। पूरे देश के सभी लोगों को एक साथ वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती थी। 3 करोड़ फ्रंट लाईन को वैक्सीन लगाने के लिए भी तैयार करना पड़ा। जो लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं। अपने कार्यकाल में इन्होंने क्या किया आप समझ सकते हैं। कम समय में हमने तैयार किया, देश में भी लगवाई दूसरों को भी दी। विदेशों को हमने विश्व बंधुत्व की भावना के तहत वैक्सीन बांटी।

-एक वैक्सीनेशन कार्यक्रम के बारे में शिकायत है कि भारत ने मंजूरी देने में देरी की। अमेरिका में यूरोप व दुनिया के तमाम देश में लग रही थी। आपने यह फैसला लेने में चार माह की देरी की कि भारत में आने दिया जाय या नहीं।

डा. जैन:- जो वैक्सीन हमारे देश में बन रही है। हमारे देश में बनने वाली वैक्सीन पर हम विश्वसनीयता जमाए या नहीं। हमें जो मिल रही है। किफायती मिल रही है। कोल्ड चैन को मेंटेन कर पाएंगे या नहीं ये समझने की आवश्यकता होती है। जो इफेक्टीव वैक्सीन प्रूव्ड वैक्सीन है जिसे रखने में भी समस्या नहीं है। उसे हम पहले प्रमोट करें। यह हमारी प्राथमिकता थी। जून में उपलब्धता बढ़ जाएगी।

भाजपा अतीत में लगातार कहती थी,युवा हमारी प्राथमिकता है,हमारा भविष्य हैं। यह भविष्य को कैसे इतना अनदेखा कर दिया केंद्र में बैठी सरकार ने। देश के 18 से 45 के व्यक्तियों के संदर्भ में पल्ला क्यों झाड़ लिया। ये सवाल जनता के जहन में है।

डा. जैन:- पहली लहर जो आई थी उसमें 89 प्रतिशत लोगों की मृत्यु 60 साल से उपर वालों की हुई थी। अभी आज तक 45 वर्ष से उपर वालों की 88 प्रतिशत मृत्यु हुई। जिसे पहले जरुरत है उसे लगाना चाहिए कि नहीं। ये ठीक है कि युवा भविष्य है। युवा में इम्युनिटी भी है क्षमता भी है। सहन शक्ति भी है। इसे ध्यान में रखने की जरुरत है। जो देश का डाटा कहता है कि सेकेंड वेव में भी 45 वर्ष से अधिक लोगों की मृत्यु दर 88 प्रतिशत रही है। जो प्राथमिकता थी उसे दी गई। अब 18 प्लस वाले प्रभावित हो रहे हैं तो इस वर्ग के लिए वैक्सीनेशन शुरु किया गया है।

45 साल से उपर वालों को वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने अपने उपर ली है। लेकिन 18 से 45 के मामले में केंद्र ने पल्ला झाड़ा, राज्यों पर छोड़ा कि वह अपने से खरीदें। प्रायवेट अस्पताल खरीदें , जो चाहे लगाएं। क्या देश के हालात इतने खराब हो गए कि केंद्र ने राज्य पर जिम्मेदारी छोड़ी। 35 हजार करोड़ के कोरोना बजट का क्या हुआ। इसलिए ये सवाल है।

डा. जैन:- जब वैक्सीनेशन शुरु हुआ विपक्षी दलों ने किस प्रकार भ्रम फैलाने की कोशिश की इसे नकार नहीं सकते हैं। जब विपक्षियों ने कहा था स्वायतता दें। प्रधानमंत्री जी ने इस बात को मानकर 45 से उपर वालों को वैक्सीन दे रहे हैं। 18 से 45 के लोगों को प्रदेश सरकारें अपनी हिसाब से प्रक्योर करें। अब केंद्र लगवाए कह रहे हैं। इनका मकसद शिगुफा खड़ा करना है। इनको कटघरे में खड़ा करने की कोई न कोई व्यवस्था चाहिए। लेकिन जनता समझ रही है।

दूसरी लहर का वर्तमान स्वरूप महसूस कर रहे हैं। गांव में ये बीमारी बड़े स्वरूप में फैल रही है। गांवों के वैक्सीनेशन के बारे में क्या सोचते हैं कि गांवों को कैसे बचाया जाए।

डा. जैन:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सभी मुख्यमंत्रियों से बात की। सबसे बड़ा फोकस इस बात पर रहा है कि गांवों के लोगों को कैसे बचाया जाए। गांवों के लोगो की इन्युनिटी भी अच्छी है। खुली हवा में रहते हैं तो दुष्प्रभाव भी कम होता है। गांवों के लिए अभियान चलाया जा रहा है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार अपने स्तर पर हर तरह के प्रयास कर रही है। हम इस महामारी से जल्द मुक्ति पा लेंगे, ऐसा मेरा मानना है।

जिस समय वैक्सीनेशन शुरु हुआ ये बताया गया कि ये दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। भारत का तजुर्बा सबसे बेहतर है ये बताया गया। लेकिन चार माह हो गए, कुल आबादी का 3 या 4 प्रतिशत हिस्सा वैक्सीनेट हो पाया, क्या मानें इसे। सफलता या विफलता?

भारत की परिस्थिति, चिकित्सकीय निपुणता और 70 साल में हमने चिकित्सा की दृष्टि से कितना उन्नयन किया है। इन चीजों को अलग-अलग करके विचार करना होगा। तब आप चीजों को ठीक प्रकार से सही मायने में सार्थक बहस कर पाएंगे। एक साथ सारी चीजों को लेकर, पुरानी चीजों को भुलाकर भारत की परिस्थिति की चर्चा करेंगे तो पाएंगे कि हमारा ये वैक्सीनेशन कार्यक्रम एक बड़ा ड्राईव है। इसमें कुछ कमियां आईं तो क्यों यह, समझने की जरुरत है। हमारा वेक्सीनेशन कतई फेल नहीं है। सदी की सबसे बड़ी महामारी में भारत ने पहल की। दुनिया के देशों को दवा पंहुचाने में भी और अपने संसाधनों को जुटाने में भी पहल की। जहां एक पीपी 95 मास्क नहीं बनते थे, वह बनाना शुरु किया। हमने अपने सारे संसाधनों को जोड़ना शुरु किया। इसमें महारत भी हासिल की है। लॉकडाउन पीरियड में सरकार बैठी नहीं रही। इस महामारी के समय पर हमारे वैज्ञानिकों ने वैक्सीन तैयार की। दो प्रकार के वैक्सीन विकसित किए। वैक्सीनेशन ड्राइव प्रारंभ किया तो हमारे पास रॉ मटेरियल नहीं था। अमरीका ने आनाकानी की। जितनी क्षमता है उतना ही बन सकता है। विपक्षी जनता को भ्रमित कर रहे हैं। पोस्टर निकालते है, शर्म आनी चाहिए। जनता को सही स्थिति बतानी चाहिए। देश में 8 करोड़ वैक्सीन रोज बनाने की व्यवस्था की गई है।

दूसरी लहर का वर्तमान स्वरूप महसूस कर रहे हैं। गांव में ये बीमारी बड़े स्वरूप में फैल रही है। गांवों के वैक्सीनेशन के बारे में क्या सोचते हैं कि गांवों को कैसे बचाया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सभी मुख्यमंत्रियों से बात की। सबसे बड़ा फोकस इस बात पर रहा है कि गांवों के लोगों को कैसे बचाया जाए। गांवों के लोगो की इन्युनिटी भी अच्छी है। खुली हवा में रहते हैं तो दुष्प्रभाव भी कम होता है। गांवों के लिए अभियान चलाया जा रहा है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार अपने स्तर पर हर तरह के प्रयास कर रही है। हम इस महामारी से जल्द मुक्ति पा लेंगे, ऐसा मेरा मानना है। एक वैक्सीनेशन कार्यक्रम के बारे में शिकायत है कि भारत ने मंजूरी देने में देरी की। अमेरिका में यूरोप व दुनिया के तमाम देश में लग रही थी। आपने यह फैसला लेने में चार माह की देरी की कि भारत में आने दिया जाय या नहीं।

जो वैक्सीन हमारे देश में बन रही है। हमारे देश में बनने वाली वैक्सीन पर हम विश्वसनीयता जमाए या नहीं। हमें जो मिल रही है। किफायती मिल रही है। कोल्ड चैन को मेंटेन कर पाएंगे या नहीं ये समझने की आवश्यकता होती है। जो इफेक्टीव वैक्सीन प्रूव्ड वैक्सीन है जिसे रखने में भी समस्या नहीं है। उसे हम पहले प्रमोट करें। यह हमारी प्राथमिकता थी। जून में उपलब्धता बढ़ जाएगी।

भाजपा अतीत में लगातार कहती थी,युवा हमारी प्राथमिकता है,हमारा भविष्य हैं। यह भविष्य को कैसे इतना अनदेखा कर दिया केंद्र में बैठी सरकार ने। देश के 18 से 45 के व्यक्तियों के संदर्भ में पल्ला क्यों झाड़ लिया। ये सवाल जनता के जहन में है।

पहली लहर जो आई थी उसमें 89 प्रतिशत लोगों की मृत्यु 60 साल से उपर वालों की हुई थी। अभी आज तक 45 वर्ष से उपर वालों की 88 प्रतिशत मृत्यु हुई। जिसे पहले जरुरत है उसे लगाना चाहिए कि नहीं। ये ठीक है कि युवा भविष्य है। युवा में इम्युनिटी भी है क्षमता भी है। सहन शक्ति भी है। इसे ध्यान में रखने की जरुरत है। जो देश का डाटा कहता है कि सेकेंड वेव में भी 45 वर्ष से अधिक लोगों की मृत्यु दर 88 प्रतिशत रही है। जो प्राथमिकता थी उसे दी गई। अब 18 प्लस वाले प्रभावित हो रहे हैं तो इस वर्ग के लिए वैक्सीनेशन शुरु किया गया है।

45 साल से उपर वालों को वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने अपने उपर ली है। लेकिन 18 से 45 के मामले में केंद्र ने पल्ला झाड़ा, राज्यों पर छोड़ा कि वह अपने से खरीदें। प्रायवेट अस्पताल खरीदें , जो चाहे लगाएं। क्या देश के हालात इतने खराब हो गए कि केंद्र ने राज्य पर जिम्मेदारी छोड़ी। 35 हजार करोड़ के कोरोना बजट का क्या हुआ। इसलिए ये सवाल है।

जब वैक्सीनेशन शुरु हुआ विपक्षी दलों ने किस प्रकार भ्रम फैलाने की कोशिश की इसे नकार नहीं सकते हैं। जब विपक्षियों ने कहा था स्वायतता दें। प्रधानमंत्री जी ने इस बात को मानकर 45 से उपर वालों को वैक्सीन दे रहे हैं। 18 से 45 के लोगों को प्रदेश सरकारें अपनी हिसाब से प्रक्योर करें। अब केंद्र लगवाए कह रहे हैं। इनका मकसद शिगुफा खड़ा करना है। इनको कटघरे में खड़ा करने की कोई न कोई व्यवस्था चाहिए। लेकिन जनता समझ रही है।

दूसरी लहर का वर्तमान स्वरूप महसूस कर रहे हैं। गांव में ये बीमारी बड़े स्वरूप में फैल रही है। गांवों के वैक्सीनेशन के बारे में क्या सोचते हैं कि गांवों को कैसे बचाया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सभी मुख्यमंत्रियों से बात की। सबसे बड़ा फोकस इस बात पर रहा है कि गांवों के लोगों को कैसे बचाया जाए। गांवों के लोगो की इन्युनिटी भी अच्छी है। खुली हवा में रहते हैं तो दुष्प्रभाव भी कम होता है। गांवों के लिए अभियान चलाया जा रहा है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार अपने स्तर पर हर तरह के प्रयास कर रही है। हम इस महामारी से जल्द मुक्ति पा लेंगे, ऐसा मेरा मानना है।

वैक्सीन विदेशों को भेजने के संदर्भ में.. आपने तीन करोड़ फ्रंटलाईन वर्कर को वैक्सीन का पात्र बताया और साढ़े 6 करोड़ वैक्सीन विदेशों में बांट दी। लोगों का सवाल है 136 करोड़ के देश में लोगों को वैक्सीन नहीं मिली थी और आप दुनिया में मैत्री गांठने के लिए वैक्सीन बांट रहे थे?

जब वैक्सीनेशन शुरु हुआ तब 60 साल से उपर और फ्रंटलाईन वर्कर को प्राथमिकता थी। वह सुचारु रूप से चला। जब इन्हें लगेगी उसके बाद दूसरों को भी लगाने का काम करेंगे। हमने अन्य वर्गों के लिए भी काम किया। पूरे देश के सभी लोगों को एक साथ वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती थी। 3 करोड़ फ्रंट लाईन को वैक्सीन लगाने के लिए भी तैयार करना पड़ा। जो लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं। अपने कार्यकाल में इन्होंने क्या किया आप समझ सकते हैं। कम समय में हमने तैयार किया, देश में भी लगवाई दूसरों को भी दी। विदेशों को हमने विश्व बंधुत्व की भावना के तहत वैक्सीन बांटी। 

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