Pay Discrepancy: काम करते हैं नियमित शिक्षकों से भी ज्यादा, लेकिन 13 साल बाद भी कहलाते हैं पार्ट टाइम टीचर, अब नाराज अनुदेशक पकड़ने वाले हैं आंदोलन की राह

वेतन विसंगति के विरोध में अनुदेशकों ने जिला शिक्षा विभाग में ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि, हमारा शोषण हो रहा है। अगर मांगें पूरी नहीं हुई तो जल्द ही वे बड़ा कदम उठाएंगे। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-08-07 11:45 GMT

पंकज भदौरिया-दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मी हर तरह से अपडेट हो गए, सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह आए दिन बढ़ रही है, कभी डीए में बढ़ोत्तरी हो रही है तो कभी गृह भाड़ा भत्ता में, लेकिन पिछले 13 साल से बस्तर संभाग के पोटा केबिनों में सेवाएं दे रहे राजीव गांधी शिक्षा मिशन के अनुदेशक आज भी केवल 10 हजार एकमुश्त वेतन पर ही काम करने को मजबूर हैं।

उल्लेखनीय है कि, नक्सल समस्या (naxal problem) को देखते हुए समग्र शिक्षा अभियान (overall education campaign) के तहत पोटा केबिन (बांस का घर) बनाकर अंदुरूनी क्षेत्र के नवप्रवेशी, शालात्यागी, अप्रवासी बच्चों को एक छत के नीचे रखकर गुरुकुल अवासीय पोटाकेबिन (gurukul residential potacabin)  बनाकर वर्ष 2009-10 से छतीसगढ़ सरकार बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिले के आदिवासी बच्चों को पढ़ा रही है।

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वेतन कुल 10 हजार, काम के घंटे तय नहीं

इन्हीं बच्चों को पढ़ाने और देख-रेख के लिए राजीव गांधी शिक्षा मिशन (Rajiv gandhi education mission) के तहत अनुदेशकों की नियुक्ति की गई थी। जिन्हें आज एकमुश्त 10 हजार रुपये का वेतन थमाकर 24 घण्टे इनसे शैक्षणिक, मेडिकल और संस्था की देख-रेख का काम लिया जाता है। जिससे आज की बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए अनुदेशक जिन्हें पार्ट टाइम शिक्षक कहा जाता है, वे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

जिला शिक्षा अधिकारी को सौंपा ज्ञापन

ऐसे ही दंतेवाड़ा जिले में संचालित 17 पोटाकेबिन के 119 अनुदेशक सोमवार को सामूहिक अवकाश लेकर जिला शिक्षा विभाग में डीएमसी श्यामलाल शोरी और डीईओ प्रमोद ठाकुर से मिलकर उन्हें वेतन विसंगति का ज्ञापन सौंपते हुए अपनी 5 सूत्रीय मांग रखी। जिसमें अनुदेशकों ने मांग की है कि उन्हें...

1. अनुदेशकों से विगत 14 वर्षो से 24 घण्टे का कार्य जिस आधार से लिया जा रहा है, उसके समतुल्य मानदेय दिया जाए।

2. संचालक राज्य परियोजना कार्यालय के द्वारा पार्ट टाईम टीचर के नाम से ही मानदेय दिया जा रहा है। किन्तु हमसे जिला स्तर पर 24 घण्टे का सेवा लिया जा रहा है। हमे पार्ट टाईम टीचर का आदेश दिया जाए।

3. संचालक राज्य परियोजना कार्यालय के द्वारा हमे चतुर्थ श्रेणी में रखा गया है। वर्ष 2009-10 से आज पर्यान्त तक निरंतर शैक्षणिक कार्य कर रहे है। कार्यानुभव एवं डी.एल.एड. प्रशिक्षित के आधार पर प्राथमिकता देते हुए हमे तृतीय श्रेणी में रखा जाए।

4. वर्ष 2019-20 से मौखिक आदेश के तहत् कार्य कराया जा रहा है। हमें कार्य करने का आदेश दिया जाए।

5. हम अनुदेशकों के द्वारा आज पर्यान्त तक किया गया कार्य को संचालक समग्र शिक्षा राज्य परियोजना कार्यालय तक आपके माध्यम से अवगत कराया जाए।

आखिर ये पार्ट टाइम टीचर क्यों नाम रखा गया?

दरअसल, जिला शिक्षा कार्यालय पहुंचे अनुदेशकों ने डीएमसी के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा कि, हमे पार्ट टाइम शिक्षक के नाम से संस्था में रखकर जब काम लिया जाता है, तो अधीक्षक किस आधार हमें 24 घण्टे काम करने के लिए आदेशित करते हैं। वहीं दूसरी तरफ योग्यता के आधार पर प्रत्येक अनुदेशक 12 वीं, डीएड कर पढ़ाने का काम कर रहा है। उसके बावजूद भी आज चौंकीदार को 12000 एकमुश्त वेतन, मुख्य रसोईया को 14500 वेतन दिया जा रहा है और हम अनुदेशकों को मात्र 10 हजार वेतन देकर 24 घण्टे काम लेना शोषण से कम नहीं है।

संभाग के अनुदेशक जल्द ही कोई बड़ा कदम उठाएंगे

अनुदेशकों ने अपना ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि, जल्द ही बस्तर संभाग के सभी अनुदेशक अपने वेतन की मांग को लेकर बड़ा कदम उठाएंगे।

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