प्रदूषण लेवल 19 फीसदी डाउन, पर्यावरण ने ली सांस
कोरोनाकाल में भले ही जीवन अस्त-व्यस्त रहा हो, लेकिन इस बीमारी से बचने के जतन ने पर्यावरण काे काफी फायदा पहुंचाया है। कई महीनों तक वाहनों के पहिए थमने और फिर कारखानों के बंद रहने के कारण ताजी हवा में घुलने वाले प्रदूषण के कणों ने इस बार दम तोड़ा है।;
कोरोनाकाल में भले ही जीवन अस्त-व्यस्त रहा हो, लेकिन इस बीमारी से बचने के जतन ने पर्यावरण काे काफी फायदा पहुंचाया है। कई महीनों तक वाहनों के पहिए थमने और फिर कारखानों के बंद रहने के कारण ताजी हवा में घुलने वाले प्रदूषण के कणों ने इस बार दम तोड़ा है। पर्यावरण की रिपोर्ट में वायु प्रदूषित करने वाले कण पीएम-10 और पीएम-2.5 की मात्र बेहद कम रही है जिससे प्रदूषण का स्तर 19 फीसदी नीचे लुढ़का है।
औद्याेगिक क्षेत्र से लेकर शहर के बीचों-बीच पर्यावरण ने राहत की सांस ली है। प्रदूषण विभाग की ओर से जारी किए गए रिपोर्ट में कंटिन्यू एम्बी एयर मॉनिटरिंग सिस्टम में पीएम-10 और पीएम-2.5 की स्थिति काफी सुधरी है। उद्याेग बंद रहने की अवधि में पीएम-10 की मात्रा में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है यही कारण है कि हवा में घुलने वाले धूल के बड़े कण कम होने से ऑक्सीजन का स्तर भी सुधरा है।
एनआईटी और कलेक्टोरेट परिसर में लगाई गई एयर क्वालिटी तकनीक में हर एक दिन का ब्योरा दर्ज है। मई 2020 में दर्ज रिपोर्ट में प्रदूषण लेवल 58.01 प्रतिशत तक रहा था लेकिन इस साल आंकड़ा 39.15 प्रतिशत है। प्रदेश की राजधानी में पंद्रह लाख से ज्यादा वाहनों का दबाव रहता है। कंडम और अनफिट वाहनों से निकलने वाले धुंए से प्रदूषण बढ़ता है। इसके बाद कारखानों की चिमनी की स्थिति है जो बड़े दायरे में काली परत जमा करती है।
7 साल पहले की घातक स्थिति से निकले
पर्यावरण विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में वर्ष 2014 में स्थिति बहुत घातक रही है। इस वर्ष पीएम-10 यानी हवा में धूल के बड़े कणों की मात्रा सबसे अधिक 320 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक थी। 2016 में कण कम हुए और मात्रा 160 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पर आ गई। 5 साल बाद हालात अब इससे भी बेहतर हैं जहां बड़े कणों की मात्रा 10 फीसदी तक है। यही कारण है कि ग्राफ तेजी से सुधरा है।
प्रदूषण रुकने की बड़ी वजह
कोविड काल में ज्यादातर कारखानें बंद रहे। चिमनियों से काले धुंओं के गुबार नहीं निकले। इससे पर्यावरण को राहत मिली। लॉकडाउन में रायपुर शहर में वाहनों का परिचालन कम, पहिए थमने से वायु में घुलने वाले प्रदूषित तत्व कम निकले। त्योहारी सीजन और शादी-ब्याह के मौके पर आतिशबाजी पर रोक, इससे प्रदूषण स्तर में सुधार। पटाखों के गंध और धुंए से प्रदूषण लेवल 3 प्रतिशत हर साल ज्यादा। जरूरत की सामग्रियों में प्लास्टिक, पॉलिथीन और थर्माकोल का इस्तेमाल कम होने की वजह से भी ऑक्सीजन में प्रदूषण का स्तर पहले से घटा।
पहले से बेहतर स्थिति
स्थिति पहले से बेहतर है। निश्चित तौर पर कारखानें बंद रहने और गाड़ियों की रफ्तार पर ब्रेक लगने से पर्यावरण पर बड़ा असर पड़ा है। प्रदूषण के स्तर में काफी कमी आई है।