आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के निजी मोबाइल नंबर सार्वजनिक हुए, नतीजा- कहीं ऑनलाइन ठगी, तो कहीं कॉल पर बदतमीजी

छत्तीसगढ़ सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने कुपोषण के खिलाफ जागरुकता लाने के लिए कवायदें तो तमाम शुरू कर रखी हैं, लेकिन उसमें से कुछ के नतीजे राहत देने वाले नहीं, उल्टे परेशानी और मुसीबतें पैदा करने वाले हैं। अब पोषण ट्रैकर एप्प को ही ले लें। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न तो पहले ट्रेनिंग दी गई, न उन्हें मोबाइल दिया गया, लेकिन पोषण ट्रैकर एप्प बनाकर उस पर जानकारी अपलोड करने की अनिवार्यता तय कर दी गई। नौकरी से निकाल दिए जाने और मानदेय रोक दिए जाने की लगातार धमकियों के बाद अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता दबाव में आकर अपने निजी मोबाइल नंबर से एप्प पर अपने केन्द्र का पंजीयन करा चुकी हैं। यहीं से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की परेशानी की शुरुआत होती है। यह परेशानी कैसे शुरू हुई, परेशानी किस-किस तरह से सामने आ रही है और इसके लिए वास्तविक में जिम्मेदार कौन है, जानने के लिए विस्तार से पढ़िए पूरी खबर-;

Update: 2021-08-18 13:33 GMT

रायपुर। कुछ सालों पहले महिला एवं बाल विकास विभाग ने तय किया कि आंगनबाड़ी केन्द्रों से पोषण संबंधी तमाम डेटा मोबाइल एप्प के जरिए अपलोड किए जाएं। इस पर अमल के लिए विभाग ने कुछ जिलों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्ट फोन का वितरण भी किया। इसके साथ ही, यह अनिवार्यता जारी कर दी गई, कि अब से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मोबाइल एप्प के जरिए ही डेली रिपोर्ट अपलोड करेंगी।

ताज्जूब की बात यह है कि न तो सभी जिलों में इसके लिए ट्रेनिंग दी गई, न ही मोबाइल का वितरण किया गया, न ही यह जानने का प्रयास किया गया कि किस-किस जिले के कौन-कौन से सेक्टर मोबाइल नेटवर्क के दायरे में हैं, और कौन-कौन नेटवर्क की दिक्कतों से जुझ रहे हैं। जमीनी हकीकत को जाने बिना विभाग ने अपने सुपरवाइजर्स के जरिए छह माह पहले से ही आंगनबाड़ीकर्मियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे पोषण ट्रैकर एप्प पर ही डेली रिपोर्ट अपलोड करेंगी। हाथ से काम छूट जाने के भय से और मानदेय रोक दिए जाने की धमकी से परेशान होकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपने निजी मोबाइल नंबर से एप्प को इंस्टाल किया और उसमें जैसे-तैसे डेली रिपोर्ट अपलोड करना शुरू कर दिया। अब हालत ये है कि मोबाइल वितरण की मांग जारी है, लेकिन विभाग की तरफ से इस पर कोई जवाब नहीं मिल रहा है। सुपरवाइजरों को भी पता है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को विभाग से मोबाइल नहीं मिला है, लेकिन इसके बावजूद सुपरवाइजर ऊपर का निर्देश मानते हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाने पर अमादा हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के निजी मोबाइल हैंडसेट्स पर यह एप्प डाउनलोड और इंस्टाल किया गया, तो उनके निजी नंबरों को उनके केन्द्र के नाम से रजिस्टर करके नंबर को ही यूजर आईडी बनाया गया और पासवर्ड कॉमन रखा गया। यानी, कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल हैंडसेट में पोषण ट्रैकर एप्प को डाउनलोड और इंस्टाल करके किसी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के मोबाइल नंबर को यूजर आईडी के रूप में इस्तेमाल करते हुए पासवर्ड डालकर (क्योंकि पासवर्ड कॉमन है) एप्प को न केवल एक्सेस कर सकता है, बल्कि उसमें डाली गई तमाम जानकारियों को देख सकता है और उसका दुरुपयोग भी कर सकता है। इस एप्प से न केवल संबंधित आंगनबाड़ी केन्द्र की जानकारी देखी जा सकती है, बल्कि उसमें हितग्राही महिलाओं, किशोरियों, अभिभावकों के मोबाइल नंबर आदि भी आसानी से निकाली जा सकती है। इतना असुरक्षित और जोखिम भरा होने के बावजूद उस एप्प के जरिए ही डेली रिपोर्ट अपलोड करने का दबाव बना हुआ है। आपको याद होगा, कुछ ही दिनों पहले कवर्धा में एक शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार किया। कवर्धा की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने पुलिस से शिकायत की थी, अनेक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मोबाइल पर अश्लील मैसेज और कॉल्स आ रहे हैं। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया, लेकिन विभाग ने अब तक यह जानने की कोशिश नहीं की, एक व्यक्ति तक इतने सारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मोबाइल नंबर आखिर कैसे एक शख्स तक पहुंचा? एक अन्य मामला राजनांदगांव जिले के छुरिया ब्लॉक में सामने आया है, जिसमें एक अज्ञात कॉलर ने बागद्वार की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को कॉल किया। उसने खुद को विभागीय अफसर बताते हुए कई जानकारियां मांगी। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से उसने आधार कार्ड मांगे। फोन पर अज्ञात कॉलर की बातचीत जैसे ही खत्म हुई, उसके दो मिनट के भीतर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के बैंक अकाउंट से 9 हजार रुपए साफ हो चुके थे। धमतरी के पुरी सेक्टर में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है। अज्ञात कॉलर ने एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को कॉल करके लगभग 48 मिनट तक बातचीत की। तमाम जानकारी मांगी ही, हितग्राहियों से कॉन्फ्रेंस टॉक कराने के लिए भी कहा। फोन की बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी, इधर उस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के बैंक अकाउंट से तीन ट्रांजेक्शन हुए और अकाउंट से 12 हजार रुपए सफाचट हो गए। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने इसकी लिखित सूचना बाकायदा अपने परियोजना अधिकारी को भी दी है, लेकिन अभी तक पोषण एप्प की अनिवार्यता को खत्म करने संबंधी कोई निर्देश सामने आया है, न ही इसकी रोकथाम के लिए विभाग की तरफ से कोई पहल दिखी है। इतना सब कुछ होने के बावजूद, आए दिन के झंझटों से मुक्ति दिलाने के लिए विभाग ने अपनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को विभागीय काम के लिए मोबाइल हैंडसेट और सिम देना मुनासिब नहीं समझा। आपको बता दें कि मानदेय पर गुजारा करने वाली छत्तीसगढ़ की शत-प्रतिशत आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्मार्ट फोन फ्रेंडली नहीं हैं। कई तो स्मार्ट फोन के सामान्य उपयोग में भी सहज नहीं हैं। कुछ के पास मोबाइल नहीं है। कई के पास मोबाइल है, लेकिन वह स्मार्टफोन नहीं, बल्कि कीपैड मोबाइल है। यह सब तो बाद की बात है, ताज्जूब यह कि इस पर काम कैसे करना है, इसकी भी विधिवत ट्रेनिंग पहले नहीं दी गई। यानी, पहले इसकी अनिवार्यता तय की गई, उसके बाद अब हास्यास्पद तरीके से छह माह गुजरने पर कुछ कुछ जिले में प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के निजी मोबाइल नंबर सार्वजनिक हो जाने के कारण मुसीबतों का सामना कर रहीं सारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं अभी सामने आई भी नहीं हैं। कई तो डर और संकोच के कारण सार्वजनिक रूप से नहीं बता पा रही हैं, कि उनके अकाउंट से रुपए कट गए हैं। कई ऐसे हैं जिनके पास आपत्तिजनक फोन और मैसेज आने के कारण उनके घरेलू जीवन में आए दिन झंझट और क्लेश की नौबत है। इन सबके बावजूद, महिला एवं बाल विकास विभाग का फोकस इस पर ज्यादा दिख रहा है कि कुपोषण को दूर करने का अभियान कागजों और आंकड़ों में सफल दिख सके, इसीलिए एप्प पर जानकारी अपलोड करने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन हर कार्यकर्ता इस काम को बगैर दिक्कतों के पूरा कर सके, इस पर किसी का ध्यान नहीं है। आपको बता दें, कि छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका कल्याण संघ की राजनांदगांव जिला अध्यक्ष लता तिवारी ने कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा और जिला कार्यक्रम अधिकारी रेणु प्रकाश को पत्र लिखकर इस बाबत सूचना दी है। उन्होंने अधिकारियों को लिखा है कि विभाग के द्वारा मोबाइल वितरण न किए जाने और निजी मोबाइल इस्तेमाल करने के दबाव के कारण जो मुसीबतें पैदा हो रही हैं, वह एक दिन गंभीर रूप ले सकती है। उन्होंने जिला प्रशासन और विभाग से मांग की है कि इस समस्या को अपने संज्ञान में लेकर गंभीरतापूर्वक इसका निराकरण करें। लेकिन, महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के लिए ध्यान देने और सोचने की बात यह है कि यह समस्या केवल राजनांदगांव, धमतरी और कवर्धा भर की नहीं है, लगभग पूरे छत्तीसगढ़ की है। 🔹 रिपोर्ट - विनोद डोंगरे.

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