Raipur: एसी-कूलर ने बिजली खपत को पहुंचाया 4,500 मेगावाट के पार, क्या कोयले के स्टॉक में आएगी कमी

Chhattisgarh News: प्रदेश में मानसून पूरी तरह सक्रिय न होने की वजह से उमस हो रही है। इसके कारण प्रदेश में बिजली (Electricity) की खपत 4500 मेगावाट पार हो गई है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-07-24 10:33 GMT

Chhattisgarh News: प्रदेश में मानसून पूरी तरह सक्रिय न होने की वजह से उमस हो रही है। इसके कारण प्रदेश में बिजली की खपत 4500 मेगावाट पार हो गई है। आमतौर पर बारिश होने के बाद बिजली की खपत चार हजार मेगावाट से कम हो जाती है, लेकिन उमस के कारण लोग अब भी एसी और कूलर चला रहे हैं। जिसके कारण बिजली (Electricity) की खपत ज्यादा हो रही है। प्रदेश में एक तो मानसून पहले ही विलंब से आया और अब बारिश (Rain) तो हो रही है, लेकिन यह बारिश लगातार न होने के कारण उमस ने लोगों को परेशान कर दिया है। आमतौर पर जुलाई के माह में उमस के कारण बिजली की खपत (Power Consumption) बढ़ जाती है। इस साल भी यही हो रहा है। उमस के कारण बिजली की खपत लगातार कम से ज्यादा हो रही है। इस समय खपत 45 से 46 सौ मेगावाट तक जा रही है।

कृषि पंप बंद होने से थोड़ी राहत

मानसून (Monsoon) के समय बिजली की खपत लगातार बारिश होने पर 35 सौ से चार हजार मेगावाट के बीच रहती है। इस समय कृषि पंप न चलने से जरूर राहत है। कृषि पंपों (Agricultural Pumps) पर ही हर रोज करीब सात सौ मेगावाट बिजली लग जाती है। गर्मी के समय में इस बार खपत 59 सौ मेगावाट के करीब पहुंची थी।

Also Read: आकाशीय बिजली से हुई मौत: आकाशीय बिजली गिरने से हुई मौत....मछली पकड़ने गया था युवक

कोयले की कमी नहीं

मानसून के लिए उत्पादन संयंत्रों में कम से कम 15 दिनों का स्टॉक रखना पड़ता है। कई बार बारिश में जब खदानों में पानी भर जाता है, तो कोयला नहीं मिल पाता है। ऐसे समय में बिजली का उत्पादन प्रभावित हो जाता है। यही वजह है कि पावर कंपनी (Power Company) बारिश से पहले जितना ज्यादा से ज्यादा स्टॉक संभव होता है, वह अपने संयंत्रों रखने का काम करती है। पावर कंपनी के कोरबा वेस्ट में 120 मेगावाट की चार और पांच सौ मेगावाट की एक यूनिट है। इस संयंत्र में एसईसीएल की खदान (SECL Mines) से कोयला सीधे कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से आता है। यही वजह है कि यहां के संयंत्र में परेशानी नहीं होती है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी संयंत्र में 250 मेगावाट की दो यूनिट है। इसमें रोज 8 हजार टन कोयला लगता है। इस संयंत्र में भी भरपूर स्टॉक है। मड़वा में 500 मेगावाट की दो यूनिट है। यहां पर कोयला पावर कंपनी (Coal Power Company) की खुद की गारे पेलमा की खदान से आता है। यहां पर रोज 15 हजार टन कोयला लगता है। यहां भी पर्याप्त स्टॉक है।

Tags:    

Similar News