आरक्षण का मसला : मुख्य सचिव अमिताभ जैन और सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह के खिलाफ हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर

याचिकाकाकर्ता ने कहा है कि, दोनों अफसरों ने उच्च न्यायालय के फैसले के उलट रिजर्वेशन रोस्टर चलाया। इसके जरिये अनुसूचित जाति को 16%, अनुसूचित जनजाति को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण देने की बात कही गई थी। उनकी समझ में यह रोस्टर गैर-कानूनी है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2022-11-01 07:51 GMT

रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण में कटौती सियासत दिन पर दिन गरमा रही है। इस मामले में रोज एक नया विवाद खड़ा हो रहा है। वहीं, अब इस मामले में आदिवासी समाज के एक सदस्य ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन और सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह के खिलाफ हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी है। आदिवासी समाज के मनोज कुमार मरावी ने इन दोनों अफसरों पर न्यायालय की अवमानना के मामले में याचिका दायर की है। अभी यह तय नहीं हो पाया है कि हाई कोर्ट इस मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार करेगा अथवा नहीं।

दरअसल याचिकाकाकर्ता ने बताया कि दोनों अफसरों ने उच्च न्यायालय के फैसले के उलट रिजर्वेशन रोस्टर चलाया। इसके जरिये अनुसूचित जाति को 16%, अनुसूचित जनजाति को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण देने की बात कही गई थी। उनकी समझ में यह रोस्टर गैर-कानूनी है। इसके चलते उन्होंने सोमवार को अधिवक्ता प्रियासदीप सिंह के जरिये हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। वहीं, चिकित्सा शिक्षा संचालक ने 9 अक्टूबर को नया रोस्टर जारी किया था। जानकारी के अनुसार यह रोस्टर मेडिकल में प्रवेश के लिए दिया गया था। इससे पहले भी उच्चतम न्यायालय में आरक्षण फैसले के खिलाफ गये योगेश ठाकुर ने राज्य सरकार को अवमानना का लीगल नोटिस भेजा था।

सामान्य प्रशासन विभाग ने जारी किया था सर्कुलर

इससे पहले योगेश ठाकुर ने अधिवक्ता जॉर्ज थॉमस के जरिये मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और विधि एवं विधायी कार्य विभाग के सचिव काे लीगल नोटिस भेजा था। इसमें साफ था कि बिलासपुर उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर के फैसले से फिलहाल नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो गया है लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 सितम्बर को जो सर्कुलर जारी किया उसमें यह बात स्पष्ट नहीं की गई थी। विभागों को केवल उच्च न्यायालय के आदेश की कॉपी देकर आवश्यक कार्यवाही को कहा था।

नोटिस में कही थी ये बात

मिली जानकारी के अनुसार इस नोटिस में कहा गया था कि GAD और दूसरे विभागाें को तत्काल बताना होगा कि राज्य सरकार की ओर से कोई नया अधिनियम, अध्यादेश अथवा सर्कुलर जारी होने तक लोक सेवाओं एवं शैक्षणिक संस्थाओं में कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। अगर एक सप्ताह के भीतर सरकार ने ऐसा नहीं किया तो वह न्यायालय की अवमानना का केस दायर करेंगे। वहीं, पिछले सप्ताह अफसरों को भेजे गए नोटिस में यागेश ठाकुर के वकील ने भ्रम दूर करने की भी कोशिश की थी। इसमें 19 सितम्बर के फैसले से प्रदेश में आरक्षण खत्म हाेने की बात कही गई थी।

पुरानी व्यवस्था बहाल करने की गई थी कोशिश

वहीं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितम्बर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियमों की उस धारा को रद्द कर दिया, जिसमें आरक्षण का अनुपात बताया गया है। इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। परीक्षाएं टाल दी गईं। वहीं, इस पर सरकार ने कामचलाऊ रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की थी, लेकिन इस बीच आदिवासी समाज के कुछ लोग उच्चतम न्यायालय पहुंचे। कोर्ट ने स्थगन देने से इन्कार कर दिया। इसके बाद सबसे आखिर में राज्य सरकार ने अपील दायर की। वहीं, सर्व आदिवासी समाज ने राज्योत्सव का भी बहिष्कार किया है।

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