आरक्षण पर बवाल : मांगें पूरी नहीं होने पर आदिवासी विधायकों के घरों के बाहर धरने का ऐलान
सुकमा जिला मुख्यालय में आंदोलन के दौरान शहर की सभी प्रतिष्ठानें बंद रहीं, बस स्टैण्ड में किया गया धरना प्रदर्शन, बड़ी संख्या में शामिल हुए सर्व आदिवासी समाज के लोग। पढ़िए पूरी खबर...;
सुकमा। छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर मंगलवार को सर्व आदिवासी समाज के प्रदेशव्यापी आर्थिक नाकेबंदी के आह्वान का असर सुकमा में भी अच्छा खासा देखा गया। यहां प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में सर्व आदिवासी समाज ने कहा है कि, तीनों मांगों पर राज्य सरकार शीघ्र विधिक पहल करे, अन्यथा समाज अनुसूचित जनजाति के विधायकों से सामूहिक त्यागपत्र मांगने के लिए उनके निवास और कार्यालय में अनिश्चिकालीन आंदोलन करेगा।
सर्व आदिवासी समाज सुकमा के अध्यक्ष पोज्जा राम मरकाम और युवा प्रभाग सर्व आदिवासी समाज सुकमा के अध्यक्ष रामदेव बघेल ने कहा कि सुकमा जिला मुख्यालय में सर्व आदिवासी समाज द्वारा आयोजित एक दिवसीय बंद व धरना प्रदर्शन सफल रहा। इस दौरान शहर की सभी प्रतिष्ठानें बंद रहीं, तो दूसरी ओर स्थानीय बस स्टैण्ड में आयोजित धरने में सभी दल के प्रमुख जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। इस दौरान आयोजित सभा को पोज्जाराम मरकाम, वैको हुंगा, महेश कुंजाम, रामा सोढ़ी ने भी संबोधित किया। सर्व आदिवासी समाज ने कहा कि छत्तीसगढ़ का मध्यप्रदेश से पृथक होने का प्रमुख कारण ही बस्तर और सरगुजा क्षेत्र का पिछड़ापन रहा है, क्योंकि यह दोनों संभाग आदिवासी बाहुल्य होने के कारण सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक रूप से अति पिछड़े रहे हैं।
आरक्षण दिलाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी
वक्ताओं ने मंच से कहा कि, राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को इस आदिवासी राज्य में विशेष सुविधा उपलब्ध करवाए। लेकिन आज हम ऐसी स्थिति में हैं कि, इस आदिवासी राज्य में शासन के 32 विधायक अनुसूचित जनजाति वर्ग से निर्वाचित होने के बावजूद आदिवासी समाज सड़क पर अपने हक की लड़ाई के लिए जद्दोजहद कर रहा है। इसके पूर्व भी सन 2012 में अनुसूचित जनजाति समाज को 32 फीसदी आरक्षण के लिए सड़क की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। उसके बावजूद भी आदिवासियों को सन 2000 से लेकर सन 2012 तक की बैकलॉग की भर्ती का नुकसान उठाना पड़ा था।