Mohdeshwar Dham : यहां 200 साल पहले जमीन से खुद निकली थी शिवलिंग, हर चार महीने में खुद बदल जाता है स्वरूप
Raipur: महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि मोहदेश्वर धाम मोहदा में स्थित मोहदेश्वर धाम ऐसा शिवालय है, जहां भू-फोड़ शिवलिंग से जुड़े कई रोचक तथ्यों की जानकारी मिलती है।;
Raipur News: वैसे तो प्रदेश में बड़ी संख्या में शिवालय हैं, जिनसे जुड़ी कई मान्यताएं और प्राचीन परंपराएं भी हैं। इनमें रायपुर जिले के मोहदा गांव में स्थित मोहदेश्वर धाम (mohdeshwar dham) ऐसा शिवालय है, जहां भू-फोड़ शिवलिंग से जुड़े कई रोचक तथ्य भी जुड़े हुए हैं। मंदिर में विद्यमान शिवलिंग का हर चार महीने में स्वत: स्वरूप बदल जाता है।
रायपुर-बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 33 किमी. चलने के बाद भक्त तरपोंगी पहुंचते हैं। यहां से 2 किमी. की दूरी पर मोहदा गांव है। यहां की तपोभूमि को मोहदेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। गांव के बाहर रानीसागर तालाब के किनारे 200 साल पहले लोगों ने भू-फोड़ शिवलिंग का स्वरूप देखा था, जो स्वत: ही जमीन से बाहर आने के बाद श्रद्धा का केंद्र बन गया। इसकी वजह ये है कि शिवलिंग हर चार महीने में स्वरूप बदलता है। इसकी पुष्टि गांव के सरपंच के साथ ही यहां के बुजुर्ग और युवा भी करते हैं। इस आस्था केंद्र में लोग वैसे तो हर मौसम में दर्शन के लिए आते और मनौती मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर होलिका दहन की रात दर्शन के लिए जाना पड़ता है। इसे देखते हुए लोगों की सुविधा के लिए करीब 60 साल से इस गांव में होलिका दहन की रात मेला लगता है।
60 साल से लग रहा मेला
गांव के 85 वर्षीय बुजुर्ग माखन लाल वर्मा ने बताया कि भू-फोड़ शिवलिंग कब निकला, इसे बता पाना मुश्किल है। हमने अपने दादा-परदाता से सुना है कि यह प्राचीन शिवलिंग है। इसका इतिहास 200 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहले मंदिर भी बहुत छोटा था। बताते हैं कि शिवलिंग की पूजा करने से स्व. किशन अग्रवाल को व्यापार में काफी फायदा हुआ, जिसके बाद उन्होंने मंदिर निर्माण में भी काफी मदद की। श्री वर्मा ने बताया कि लोगों की मन्नत पूरी होने से शिवलिंग के प्रति लोगों की आस्था बढ़ने से पिछले 60 साल से मेले का आयोजन किया जाने लगा है।
तीन नए स्वरूप का दर्शन
गांव के सरपंच भरत रात्रे ने बताया कि भू-फोड़ शिवलिंग साल में तीन बार स्वत: अपना स्वरूप बदलता है। गर्मी में भूरा, बारिश के दिनों में काला और ठंड के मौसम में शिवलिंग खुरदरा हो जाता है। यहां वैसे तो हर मौसम में लोग दर्शन के लिए आते हैं, जो मन्नत मांगते हैं, ऐसे लोग मनौती पूरी होने पर होलिका दहन की रात भोलेनाथ को जलाभिषेक करने आते हैं। अभिषेक करने के बाद मान्यता यह है कि जलाभिषेक के बाद उन्हें गांव की सरहद को पार करने के बाद ही पानी पीना होता है। गांव की सीमा में वे अन्न, जल भी ग्रहण नहीं करते।
शाम पांच बजे बंद होते हैं मंदिर के पट
स्थानीय रहवासी संतोष बिजौरा ने बताया कि रानीसागर तालाब के पास स्थित मंदिर के पट होलिका दहन के दिन शाम 5 बजे बंद कर दिए जाते हैं। जैसे ही होती जलती है, वैसे ही मंदिर का पट खोले जाते हैं। इसके बाद मनौती पूरी होने पर दर्शन के लिए पहुंंचे श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। मेले में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, इस कारण जलाभिषेक का दौर दूसरे दिन सुबह तक चलता है। इसे देखते हुए गांव में होलिका दहन की रात मेला लगता है। इस दौरान आसपास ही नहीं, बल्कि ओडिशा, झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश के श्रद्धालु भी यहां आकर भू-फोड़ शिवलिंग का दर्शन करते हैं।
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