देश का दूसरा 'राष्ट्रपति भवन' छत्तीसगढ़ में, यहाँ आज पहली बार राज्यपाल अनुसुइया उइके जाएंगी, पंडो जनजाति के लोगों से करेंगी मुलाकात
सूरजपुर जिले के पंडो नगर में देश का दूसरा 'राष्ट्रपति भवन' है. यहाँ आज पहली बार राज्यपाल अनुसुइया उइके जाएंगी. राष्ट्रपति भवन में राज्यपाल अनुसुइया उइके पंडो जनजाति के लोगों से मुलाकात करेंगी. वे आधा घंटा पंडो समाज के लोगों के साथ रहकर उनके परिवेश से रूबरू होंगी.;
सूरजपुर. सूरजपुर जिले के पंडो नगर में देश का दूसरा 'राष्ट्रपति भवन' है. यहाँ आज पहली बार राज्यपाल अनुसुइया उइके जाएंगी. राष्ट्रपति भवन में राज्यपाल अनुसुइया उइके पंडो जनजाति के लोगों से मुलाकात करेंगी. वे आधा घंटा पंडो समाज के लोगों के साथ रहकर उनके परिवेश से रूबरू होंगी.
बता दें कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का 1952 में छत्तीसगढ़ आगमन हुआ था. छत्तीसगढ़ आने पर उन्होंने सरगुजा में पंडो आदिवासियों के बीच जाकर कुछ समय रहने की इच्छा जाहिर की थी. वे अपनी पुरानी यादों को संजोना चाहते थे. 22 नवंबर 1952 को वे तत्कालीन सरगुजा महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के साथ पंडोनगर पहुंचे थे. जहां राष्ट्रपति के प्रवास के लिए राष्ट्रपति भवन तैयार किया गया था. इसी भवन में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद रहे और पंडो व कोरवा जनजाति के आदिवासियों को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था. हालांकि यह बात करीब 70 साल पुरानी हो गई है, लेकिन इस राष्ट्रपति भवन की गरिमा आज भी बरकरार है.
पंडो समुदाय के उस वक्त के जिन लोगों ने राष्ट्रपति का आगमन और प्रवास देखा. उनका स्वागत-सत्कार किया और सानिध्य हासिल किया था, उनमें से कोई भी अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उस पल की सुनहरी यादें पीढ़ी दर पीढ़ी इस भवन के माध्यम में उनके समक्ष जीवित हैं. पंडो आदिवासी इसे गर्व की बात मानते हैं कि उनके गांव में देश के राष्ट्रपति का अधिकारिक निवास है.
राज्यपाल अनुसूईया उइके आज दोपहर सूरजपुर जिले के पंडोनगर पहुंचेंगी. यहां विशेष सरंक्षित पंडो समाज के लोगों से मुलाकात कर उनकी जीवन शैली और आजीविका के साधनों पर चर्चा करेंगी. यहां के राष्ट्रपति भवन का भी वे अवलोकन करेंगी. अंबिकापुर से कार द्वारा ही राज्यपाल पंडोनगर पहुंचेंगी. पंडोनगर में सर्व पिछड़ी जनजाति समाज की ओर से 12 सूत्रीय मांग पत्र राज्यपाल को सौंपा जाएगा. जिसमें आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाओं की जरूरत तथा आदिवासियों की जमीन पर गैर आदिवासियों के कब्जे की शिकायत भी शामिल है.