हसदेव अरण्य के बहाने टीएस ने सरकार को याद दिलाई राम-रावण की कहानी : 'नो गो एरिया' का वादा याद दिलाते हुए कहा-सरकार राम रूपी कार्य करे
जो लकीर खिंच गई, वह लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। लक्ष्मण रेखा पार करने पर क्या होता है वह रामायण की कथा में हम सब ने देखा- पढ़ा है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा पार न हो और सीता हरण जैसी स्थिति न बने। उन्होंने कहा कि अभी सरकार के पास पूरा अवसर है। उसकी मानसिकता भी यही होगी कि वह राम रूपी कार्य करे। मंत्री टीएस सिंहदेव के इस कथन के क्या हैं मायने... पढ़िए;
रायपुर। हसदेव अरण्य को बचाने के लिए 300 किलोमीटर पैदल चलकर राजधानी रायपुर पहुंचे ग्रामीणों से बुधवार की रात पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने चर्चा कर उनकी भी बात सुनी। बुधवार देर रात टिकरापारा के साहू भवन में सिंहदेव ने सरकार को नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा याद दिलाई। सिंहदेव ने कहा कि, जो इस लाइन को पार करेगा वह 10 सिर वाला कहा जाएगा। उन्होंने ग्रामीणों से कहा, आपकी मांगे जिन कानों तक पहुंचेगी, वे सोच-समझकर कदम उठाएंगे, ताकि आपके हित सुरक्षित हों।
सिंहदेव ने कहा, मैं भी अपनी तरफ से आपकी मांगों के साथ मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखूंगा। उस समय जो नो गो एरिया घोषित हो गया उससे आगे जाते हैं तो मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि मेरा भी विरोध है। जो लकीर खिंच गई, वह लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। लक्ष्मण रेखा पार करने पर क्या होता है वह रामायण की कथा में हम सब ने देखा- पढ़ा है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा पार न हो और सीता हरण जैसी स्थिति न बने। उन्होंने कहा कि अभी सरकार के पास पूरा अवसर है। उसकी मानसिकता भी यही होगी कि वह राम रूपी कार्य करे। आपके हितों की रक्षा करे, आपके साथ रहे। जो जायज बात है, उसके तहत आपकी मांगों को सुनें और पूरा करें। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ बिलासपुर विधायक शैलेश पाण्डेय भी ग्रामीणों के बीच पहुंचे थे।
ग्रामसभा ही सर्वोपरि हो : सिंहदेव
ग्रामीणों से मिलकर लौटते वक्त टीएस सिंहदेव ने मीडिया से कहा, ग्रामीण उस क्षेत्र में खनन का विरोध कर रहे हैं। हम लोगों का शुरू से मानना रहा है कि ग्राम सभा जो तय करे उसी के हिसाब से काम होना चाहिए। उन पर दबाव डालकर अथवा दूसरे तरीकों से खदान की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
2010 में नो गो एरिया घोषित हुआ
सरगुजा से लेकर कोरबा जिले तक फैले हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध और पुराने जंगलों में गिना जाता है। पर्यावरण के जानकार इसे "छत्तीसगढ़ का फेफड़ा" कहते हैं। 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया था। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया, जब जयराम रमेश केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री थे तो वे नो गो एरिया का कॉन्सेप्ट लाए थे। यानी इस सीमा के आगे खदानों को अनुमति नहीं दी जाएगी। उस लक्ष्मण रेखा का पालन करना जरूरी है।
ग्रामीण आदिवासियों की मूल मांगें
हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए। बिना ग्रामसभा की सहमति के कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान लागू किए जाएं। परसा कोल ब्लाक के लिए ग्राम सभा फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए और ऐसा करने वाले अधिकारी और कम्पनी पर FIR दर्ज हो। घाटबर्रा गांव के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांवों में सामुदायिक वन अधिकार और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दी जाए। अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून का पालन कराया जाए।
हसदेव अरण्य पर क्या है संकट
नो-गो एरिया घोषित होने के बाद वहां हालात सामान्य थे। लेकिन केंद्र में सरकार बदली तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ। ग्रामीण इसके विरोध में आंदोलन करने लगे। 2015 में राहुल गांधी इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया। कहा - इस क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे। छत्तीसगढ़ में सरकार बदली लेकिन इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई।
हाथी-मानव द्वंद बढ़ने की चेतावनी
हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है। इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है।