अनोखा स्थल... यहां होता है देवी मां की मौजूदगी का अहसास : भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देती हैं धुंधी दाई, सबकी मुरादें होती हैं पूरी...

इस मंदिर में सौभाग्य वालों को देवी मां प्रत्यक्ष दर्शन देती है। भक्तों को मंदिर में मां के मौजूदगी का पूरा अहसास होता है। मां के दरबार में मिन्नतों के लिए कतार लगती है। पढ़िए पूरी खबर...;

Update: 2023-03-30 10:45 GMT

संदीप करिहार/बिलासपुर। इस मंदिर में सौभाग्य वालों को देवी मां प्रत्यक्ष दर्शन देती है। भक्तों को मंदिर में मां के मौजूदगी का पूरा अहसास होता है। मां के दरबार में मिन्नतों के लिए कतार लगती है। सबकी मुरादों को पूरा करके देवी मां खुशियों की बौछार कर देती है। धुंधी दाई के जयकारों से माता का दरबार गूंज उठता है।

मध्यप्रदेश के दतिया स्थित मां धूमावती के दरबार से तो हर कोई वाकिफ है और मां धूमावती के गुणगान की लोग अब गीत भी गाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की माता धूमावती की महिमा भी अपरम्पार है। यहां भक्तों की मुरादों को पूरा करने और उनके कानून प्रकरणों से मुक्ति दिलाने जैसे अनेकों वरदान की साक्षात देवी मां घने जंगलों के बीच में विराजमान है, तो चलिए आज आपको एक ऐसे ही अद्भुत दिव्य दरबार की कहानी से रूबरू कराते हैं।

घने जंगलों के बीच वन देवी के रूप में प्रकट हुई मां

छत्तीसगढ़ की माता धूमावती को स्थानीय और ग्रामवासी धुंधी दाई, धुन्धेश्वरी देवी के नाम के अलावा और भी कई नामों से आह्वान करते हैं। यहां देवी मां और भक्तों के अटूट प्रेम का प्रत्यक्ष उदाहरण भी देखने को मिलता है। माता धुंधी दाई ऊंचे पहाड़ों के दरबार को छोड़कर अपने भक्तों के नजदीक रहने के खातिर धरती का सीना चिर कर घने जंगलों के बीच वन देवी का रूप लेकर ऊंचे पहाड़ों से नीचे उतरकर पर्वत के तट में विशाल चट्टान रूपी स्वरूप में प्रकट हुई है और आज मंदिर परिसर में उनके प्रत्यक्ष अहसास होने का प्रमाणित दावा किया जाता है। इसी वजह से देवी मां अपने भक्तों के दिल पर राज करती है और पूरे छतीसगढ़ में धुंधी दाई के रूप में प्रचलित हो चुकी है। देवी माता के दर्शन मात्र से मन की मुरादें पूरी हो जाती है और देवी माता से प्रार्थना और वरदान मांगने से गुम हुई वस्तु, जानवर या व्यक्ति वापस लौट आते हैं। इनकी ख्याति इतनी प्रसिद्ध हो चुकी है कि समूचे छत्तीसगढ़ से लोग देवी मां का दर्शन करने और तीर्थ का अनुभव करने और पापों से मुक्ति, पूण्य की प्राप्ति करने के लिए भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। 

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चट्टान के पत्थर से देवी मां की बूढ़ी स्वरूप में हुई है उत्पत्ति

घने जंगलों के बीच में पर्वत के तट पर चट्टान पत्थर से देवी मां धुंधी दाई बूढ़ी (बुजुर्ग) स्वरूप में उत्पन्न हुई है। 5-7 फीट के करीब देवी मां के विशाल मूर्ति की उत्पति हुई है, लेकिन श्रद्धालुओं को 3 से साढ़े तीन फीट ही दर्शन कराया जाता है। देवी मां को छत पसंद नहीं है। इसलिए उनके गर्भगुढी में छत नहीं बन सका है और मंदिर के परिक्रम स्थल पर छत बना हुआ है। मंदिर प्रबंधन के लोगों का कहना है कि छत बनाने की कई बार कोशिश की गई है, लेकिन कोई ना कोई ऐसी वजह बन जा रही है, जिसके कारण छत का निर्माण नहीं हो सका है।

प्रदेशभर से लोग आते हैं दर्शन करने

वहीं मंदिर के मुख्य पुजारी अश्वनी तिवारी ने जानकारी देते हुए कहा कि मां धुंधी दाई भक्तों के लिए कुलमाता और आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती है। इनके शक्ति और महिमा का ही प्रभाव है कि प्रदेशभर से लोग यहां माथा टेकने और दर्शन करने पहुंचते हैं। हर दिन इनके दर्शन के लिए हजारों दर्शनार्थी आशीर्वाद लेने आते हैं। इसे रोकने के लिए असमाजिक तत्व के लोगों की ओर से मूर्ति को उखाड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन देवी मां हिल ही नहीं पाई और बदमाश नाकाम होकर फरार हो गए। मां धुंधी दाई महामाया देवी का दरबार आस्था, भक्ति और शान्ति का संगम है। ये तीर्थ धाम बिलासपुर जिले के कोटा से लोरमी मुख्य राज्यमार्ग पर ग्राम बांसाझाल स्थित है। कोटा से करीब 19 किलोमीटर और लोरमी से 16 किलोमीटर की दूरी पर है।

दो चट्टानों के सीने से उद्गम हुआ है धार्मिक ऐतिहासिक कुंड

मां धुंधी दाई की कृपा और उनके महिमा की अपार प्रमाणित उदाहरण आपको बांसाझाल दरबार में देखने को मिल जाएगा। मंदिर के पुजारी अश्वनी तिवारी ने बताया कि ऐसा ही एक प्रणाम ऊंचे पर्वत के बीच दो चट्टानों के सीने से उद्गम धार्मिक ऐतिहासिक कुंड है। देवी माता के दर्शन के बाद कुंड के दर्शन से पुन्य की प्राप्ति की मान्यता है। इस कुंड की खासियत ये है कि ग्राम बांसाझाल में 100 फीट नीचे तक वाटर लेबल डाउन रहता है, लेकिन पहाड़ के उपरी सतह पर कुंड आदिशक्ति के साक्षात होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है। कुंड की चौड़ाई दो फीट और करीब 10-12 फीट लम्बी है। इसकी गहराई भी ढाई से तीन फीट है, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इस कुंड में पानी कहां से आता है, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है और कुंड में बारहों महीने अविरल जल और अमृत की तरह रहता है। इसी कुंड से देवी मां के ज्योतिकलश के लिए जल लाया जाता है और उसी जल से देवी माता धुंधी दाई का आचमन किया जाता है।

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मन्नत पूरी होने पर देवी को भेंट करते हैं श्रृंगार

मान्यता ऐसी है कि देवी मां धुंधी दाई से मांगी हुई मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु माता को मन्नत (बंदना) की भेंट अर्पित करने अपने पूरे परिवार के साथ आते हैं। यहां माता को पूर्ण श्रृंगार-साडी, चांवल, श्रीफल-प्रसाद और बलि की भी मानता की जाती है। यहां सबकी मुरादें पूरी होती है और पूरे छत्तीसगढ़ से लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं और जिनके वरदान पूरे हो जाते हैं, वे अपने वचन को पूरा करने भी आते हैं। देवी मां के प्रसिद्धि की चर्चा अब लोगों में काफी प्रचलित होने लगी है और आस्था का केंद्र बिंदु है।

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