बड़ी खबर : अप्रैल में नहीं होंगे हरियाणा निकाय चुनाव, सरकार ने वापस लिया फैसला

हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणा नगरपालिका चुनावों में पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी के लिए प्रधान पद को आरक्षित करने की नीति को बावल निवासी राम किशन द्वारा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।;

Update: 2022-03-09 11:40 GMT

हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों घोषणा की थी अप्रैल माह में 40 नगर परिषद व पालिकाओं के चुनाव होंगे लेकिन अब सरकार ने यह फैसला वापिस ले लिया है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में हरियाणा के एडीशनल एडवोकेट जनरल ने आश्वासन दिया कि अभी चुनाव का कोई कार्यक्रम तय नहीं है। हाई कोर्ट ने सरकार के इस आश्वासन को रिकार्ड में लेते हुए सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने का आदेश दिया है।

बुधवार को हाई कोर्ट में एक अर्जी दायर कर कोर्ट को बताया गया कि नगर परिषद व पालिकाओं में पिछड़ा वर्ग (  बीसी) श्रेणी के लिए प्रधान पद को आरक्षित करने के सरकार के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी हुई है। हाई कोर्ट इस मामले में सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर चुका है और मामला कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में सरकार ने चुनाव की घोषणा भी कर दी है, ऐसे में पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी के लिए प्रधान पद को आरक्षित करने के निर्णय पर तुरंत रोक लगनी चाहिये। इस पर कोर्ट ने जब सरकार से जवाब मांगा ताे एडिशनल एडवोकेट जनरल ने आश्वासन दिया कि अभी चुनाव का कोई कार्यक्रम तय नहीं है। जिस पर कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर लिखित जवाब देने का आदेश दिया।

हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणा नगरपालिका चुनावों में पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी के लिए प्रधान पद को आरक्षित करने की नीति को बावल निवासी राम किशन द्वारा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट को बताया गया कि सरकार नियमों के विपरीत मनमाने ढंग से पिछड़ा वर्ग (बीसी) श्रेणी के लिए प्रधान पद को आरक्षित कर रही है। यह सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है। कोर्ट से आग्रह किया किया गया कि कोर्ट हरियाणा नगरपालिका चुनाव (संशोधन) नियम, 2020 के नियम 70 ए को रद करने का आदेश दे। इसी नियम के तहत स्थानीय निकाय में बीसी श्रेणी के लिए प्रधान पद आरक्षित किया गया।

कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने बिना आधार बीसी श्रेणी के लिए प्रधान पद आरक्षित करने का निर्णय लिया है। आज से पहले कभी भी बीसी के लिए स्थानीय निकाय का प्रधान का पद आरक्षित नहीं किया गया था। सरकार का यह फैसला स्पष्ट रूप से अवैध, भेदभावपूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक है। कोर्ट को बताया गया कि सरकार के पास बीसी श्रेणी की जनसंख्या का आंकड़ा नहीं है।2011 की अखिल भारतीय जनगणना में भारत के लोगों की आयु, लिंग, साक्षरता आदि जानकारी एकत्रित की गई थी। फिर सरकार किस आधार पर बीसी श्रेणी के लिए प्रधान पद आरक्षित कर रहीं है। कोर्ट को बताया गया कि पहले स्थानीय निकाय में निर्वाचित सदस्यों में से प्रधान व उपप्रधान का चुनाव किया जाता था।लेकिन सरकार ने अब संशोधन कर प्रधान का सीधा चुनाव करवाने का निर्णय लिया और इसी के तहत बीसी के लिए प्रधान पद की सीट आरक्षित कर दी।

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