नारनौल : बीरबल का छत्ता व मिर्जा अली जां की बावड़ी का होगा जीर्णोद्धार बजट मंजूर, दोनों स्मारकों पर सरकार खर्च करेगी 3-3 करोड़ रुपये
यह दावा प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव ने किया है। राज्यमंत्री के मुताबिक इन दोनों स्मारकों पर तीन-तीन करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।;
हरिभूमि न्यूज:नारनौल
जिला महेंद्रगढ़ ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। नारनौल शहर में 14 प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें से तीन स्मारक सेंट्रल पुरातत्व विभाग और 11 स्मारक हरियाणा राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले एतिहासिक स्मारक बीरबल छत्ता व मिर्जा अली जां की बावड़ी के जीर्णोद्धार के लिए बजट मंजूर किया गया है। यह दावा प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव ने किया है। राज्यमंत्री के मुताबिक इन दोनों स्मारकों पर तीन-तीन करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव शुक्रवार शाम शहर के शोभा सागर तालाब का निरीक्षण करने पहुंचे थे। राज्यमंत्री ने बताया कि नारनौल शहर के प्राचीन अस्तित्व को देश के मानचित्र पर अंकित करने के लिए बीरबल के छत्ते के जीर्णोंद्धार के लिए तीन करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। बीरबल की नगरी नारनौल के ऐतिहासिक शहर के अस्तित्व को बरकरार रखा जाएगा। नारनौल शहर को पर्यटन के रूप में उभारे जाने का काम प्रदेश सरकार कर रही है। इसी कड़ी में छोटा-बड़ा तालाब के पास स्थित मिर्जा अली जां की बावड़ी के जीणार्ेद्धार के लिए भी तीन करोड़ की राशि मनोहर सरकार ने मंजूर की है। जल्द ही इन दोनों धरोहरों का जीर्णोद्धार होगा।
बीरबल का छत्ता : शहर की सघन आबादी के बीच स्थित इस ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण शाहजहां के शासन काल में नारनौल के दिवान राय मुकन्द दास ने करवाया था। यह स्मारक नारनौल के मुगलकालीन ऐतिहासिक स्मारकों में सबसे बड़ा है। भवन के भीतर से पानी की निकासी, फव्वारों की व्यवस्था तथा भूमिगत मंजिल में प्रकाश व पानी की निकासी व्यवस्था देखने योग्य है।
पांच मंजिला भवन : इस पांच मंजिल के भवन का आकार चौकोर है, जिसके बीच में बड़ा चौक है। भवन के विशाल शिलाओं वाले स्तम्भ, दरबार हाल तथा विशाल बरामदे और सीढ़ियां व छत्तरियां भवन निर्माण कला का अनूठा नमूना है। यद्यपि इस समय अधिकांश छत्ता छतिग्रस्त हो चुका है और स्मारक जीर्णावस्था में है। बताया जाता है कि यह स्मारक सुरंग मार्ग से दिल्ली, जयपुर, महेंद्रगढ़ तथा ढ़ोसी से जुड़ा हुआ है। आम चर्चा है कि बहुत समय पहले एक बारात सुरंग देखने के लिए अंदर घुसी थी परन्तु वह लौटकर नही आई। अकबर के शासनकाल में यहा बीरबल का आना जाना था।
मिर्जा अली जां की बावड़ी : शहर को बावडि़यों व तालाबों का शहर कहा जाता हैं। यद्यपि शहर की बहुत प्राचीन बावडि़यों का अस्तित्व अब नही रहा हैं परन्तु मिर्जा अली जां की बावड़ी आज भी विद्यमान है। यह शहर के पश्चिम में आबादी से बाहर स्थित है। इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मिर्जा अली जां ने करवाया था। इसके निर्माण के समय की सही जानाकारी नही मिलती। इस बावड़ी पर संगमरमर का एक बड़ा तखत रखा है, जिसके कारण इसे तख्तवाली बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। बावड़ी के पास ही एक कुआं है। बावड़ी में फव्वारा तथा नालियों द्वारा पानी पहंुचाने की प्राचीन व्यवस्था देखने योग्य हैं।