Haryana Panchayat Election : सरपंचों की पॉवर पर कैंची चला सकती है सरकार! चुनाव से पहले ही उम्मीदवारों को संदेह

नगरपालिका व नगरपरिषद चेयरमैनों की वित्तीय शक्तियों में कटौती कर चुकी है हरियाणा सरकार, पंचायती चुनाव से पहले ही गांवों में चर्चाओं का माहौल गर्म।;

Update: 2022-09-23 13:35 GMT

रहमदीन : बराड़ा ( अंबाला )

हरियाणा में होने वाले पंचायती चुनावों की तैयारियों के ठीक बाद नगर परिषद व नगर पालिकाओं की वित्तीय शक्तियों को कम करने की अधिसूचना के आने के बाद सरपंच बनने का सपना देख रहे लोग डरे हुए हैं। गांवों के हर गली-नुकड़ पर इसी बात की चर्चाएं गर्म है कि कहीं अब नगरपालिका व नगर परिषदों से पैसे के लेन-देन की पॉवर छीनने के बाद कहीं ग्राम पंचायत की वित्तीय शक्तियों पर तो कैंची नहीं चल जाएगी।

ऐसे में पंचायती चुनावों में उतरने वाले उम्मीदर इसी बात को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे है। कि कहीं गांव की नई पंचायत बनने के बाद सरकार पंचायतों की वित्तीय शक्तियों को भी समाप्त तो नहीं कर देगी। अगर सच में ऐसा हो जाता है तो गांवों के विकास कार्य प्रभावित होने तय हैं। वैसे भी अगर देखा जाए तो पिछले लगभग दो सालों से गांव के विकास कार्य सरपंच नहीं बल्कि विभाग के अफसरों के माध्यम से ही हो रहे हैं। कहीं भविष्य में पैसा का लेन-देन व सभी प्रकार के विकास कार्य इन्हीं अफसरों के माध्यम से तो नहीं होगें। सरपंची का चुनाव लडऩे वाले लोगों को इन्हीं सब बातों का डर सता रहा है।

प्रधान की शक्तियों को किया कम

आपको बता दें कि पालिकाओं व परिषदों के वित्तीय शक्तियों पर सरकार के विभाग का नियंत्रण होने के बाद अब निकाय प्रधान अपनी मनमर्जी के प्रस्ताव पास नहीं कर सकेंगे। हरियाणा म्यूनिसिपल एक्ट 1973 के बिजनेस बाई लाज में निकाय चेयरमैनों की पावर में संशोधन के बाद गत 19 सितंबर को जारी अधिसूचना में परिषद व पालिका के प्रधानों की वित्तीय शक्तियां कम की गई है। बताया जा रहा है कि इस नए नियम के लागू हो जाने के बाद नगर परिषदों व पालिकाओं की तमाम शक्तियां जिला नगर आयुक्तों के पास होगी।

मेयर की तर्ज पर पालिका और परिषद के प्रधानों से डीडी पावर ( वित्तीय शक्तियां ) वापस लेने के खिलाफ प्रधान एकजूट हो चुके है और सता पक्ष पार्टी के विधायकों व मंत्रियों से मिलकर अपना विरोध भी जता चुके है। इस सबके बीच वहीं प्रदेश में पंचायती चुनावों का भी बिगुल बज चुका है। ऐसे में सरकार के इस नए निर्णय का खामियाजा पार्टी को पंचायती चुनावों में भी भुगतना पड़ सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार प्रधानों के विरोध के बाद अपना नर्णिय वापिस लेती है या नहीं या फिर परिषद या पालिकाओं के बाद कहीं अगला नंबर ग्राम पंचायतों की वित्तीय शक्तियां समाप्त करने का तो नहीं होगा।

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