मोरनी में वन्य प्राणियों के संरक्षण को लेकर चलेगी खास मुहिम, विशेषज्ञ जुटे
मोरनी वन्य क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर पक्षियों की कई प्रजाति पाई जाती हैं। मोरनी हिल्स में हम कई वनस्पतियों को देख सकते हैं, साथ ही यहां जंगली जानवर भी पाए जाते हैं। आमतौर पर इन इलाकों में, बंदर, कोयल, सियार, लंगूर, खरगोश, लकड़बग्घा, नीलगाय, जंगली सूअर, भौंकने वाले हिरण, सांभर और यहां तक तेंदुआ भी कभी-कभी यहां देखने को मिल जाते हैं ।;
चंडीगढ़, योगेंद्र शर्मा : हरियाणा के वन क्षेत्र मोरनी और अन्य इलाकों में वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ाने को लेकर वन और संबंधित विभाग के अफसर विशेष नजर बनाए हुए हैं। इन क्षेत्रों में लगातार संख्या बढ़े और इन संवेदनशील इलाकों में शिकारियों की कोई गतिविधि नहीं हो, इस पर भी नजर रखी जा रही है। वन विभाग और वन्य प्राणियों को लेकर लंबे अर्से से काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे देश के वनों में पक्षियों की प्रजातियों की बात करें, तो लगभग 1200 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसी संदर्भ में हरियाणा पर गौर करें, तो यहां भी करीब 450 प्रजातियां हैं। सूबे के वन व वन्य प्राणियों वाले इलाके मोरनी, यमुनानगर क्षेत्र, अरावली जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर पक्षियों की कई प्रजाति पाई जाती हैं।
वन औऱ वन्य प्रणियों को लेकर लंबे समय से काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने में वन्य जीव जंतुओं की भी अहम भूमिका होती है। इस कड़ी में गिद्ध भी आते हैं। व्यापक रूप से पर्यावरण में संतुलन बनाए हैं, एक दौर में कीटनाशकों और कुछ अन्य कारणों से उनकी घटती संख्या ने पर्यावरणविदों की परेशानी बढ़ा दी थी। दूसरी तरफ, यह पर्यावरण संतुलन की दिशा में भी बेहद ही खतरनाक बात थी, क्योंकि गिद्ध तेजी से गंदगी को साफ करते हैं। ये मरे हुए पशुओं और अन्य मवेशियों के गिद्ध गंदगी को साफ करने वाला पक्षी है। एक भरे पूरे मृत मवेशी के शारीरिक अवशेषों को खाने में गिद्ध करीब आधा घंटा लगाते हैं।
वन विभाग से प्राप्त जानकारी अनुसार 1980 के दशक में देशभर में गिद्धों की संख्या करीब 4 करोड़ हुआ करती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में इनकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। इतना ही नहीं बाकी पक्षियों की संख्या भी कईं कारणों से गिरी थी, जो चिंता का विषय थी। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में फिलहाल करीब 2 लाख गिद्ध बचे हुए हैं, हमारे हरियाणा में इनकी संख्या 10 हजार से 12 हजार बताई जा रही है।
गिद्धों की विलुप्त हो रही प्रजाति के पीछे मुख्य रूप से एक ही कारण है, वो डाइक्लोफेनेक दवा। यह वैसे, तो दर्द निवारक दवा (पेन किलर) के तौर पर इस्तेमाल की जाती रही है। ये दवा पशुओं में दर्द और सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल में लाई थी और बाद में ये दवा गिद्ध के लुप्त होने के बड़े कारण के रूप में सामने आई है। पशुओं के मरने पर गिद्ध उनको खाने के बाद में बीमार पड़ते चले गए और उनकी किडनी फेल हो जाने के बाद में तेजी से मौत हो गई। एक्सपर्ट्स की रिसर्च में इसको लेकर व्यापक पैमाने पर कारण सामने आए और बाद में इस दवा को बंद करना पड़ा।
संरक्षण की दिशा में काम कर रहे अिधकारी
वन क्षेत्र को बढ़ाने के साथ-साथ में इन इलाकों में कोई अवैध गतिविधि नहीं हो, इस बात को ध्यान में रखकर खास कदम उठाए जा रहे हैं। वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में सरकार निरंतर कदम उठा रही है। गिद्धों के संरक्षण की मुहिम को लेकर भी हमारा विभाग और अफसर संजीदा हैं। इस दिशा में कई अहम कदम उठाए और उनके परिणाम भी बेहतर आ रहे हैं। - कंवरपाल, वन मंत्री, हरियाणा