Haribhoomi Explainer: सलाखों के पीछे होने के बाद भी जीता चुनाव, ऐसा था हरिशंकर तिवारी का रसूख

Haribhoomi Explainer: अखिल भारतीय लोकतांत्रिक पार्टी के संस्थापक व प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हरिशंकर तिवारी का निधन मंगलवार की शाम हो गया। आज उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। यूपी के राजनीति में हरिशंकर तिवारी का एक बड़ा नाम था। उनका रसूख इतना अधिक था कि जेल में रहते हुए भी उन्होंने चुनाव जीत लिया था। हरिभूमि एक्सप्लेनर में हम उनकी शिक्षा और सियासी सफर के बारे में बताने जा रहे हैं।;

Update: 2023-05-17 06:52 GMT

Haribhoom Explainer: उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं में शुमार पंडित हरिशंकर तिवारी का मंगलवार की शाम निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। बताया जा रहा है कि वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन की खबर पाकर उनके समर्थकों में भी शोक की लहर दौड़ पड़ी। उनका आज शाम करीब सात बजे गोरखपुर के बड़हलगंज स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा। उन्होंने छह बार विधानसभा चुनाव जीता और पांच बार कैबिनेट मंत्री रहे। बताया जाता है कि उनका रसूख ऐसा था कि चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार सत्ता में आई हो, लेकिन हरिशंकर तिवारी को कैबिनेट में जगह अवश्य मिल जाती थी। उनके परिवार में पूर्व सांसद भीष्म शंकर और पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी के अलावा एक बेटी हैं। हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको हरिशंकर तिवारी के जीवन से रूबरू कराएंगे, जिन्होंने सलाखों के पीछे रहते हुए भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी धूल चटाकर जीत हासिल कर ली थी।

जेल में होने के बावजूद जीता चुनाव

80 के दशक में गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट अचानक चर्चा का विषय बन गई थी। कारण था कि एक ऐसा शख्स चुनाव जीत गया, जो कि सलाखों के पीछे हैं। नाम था पंडित हरिशंकर तिवारी। उनके नाम का रसूख इतना अधिक था कि उन्होंने भारी मतों से जीत हासिल कर ली। संभवत: भारतीय राजनीति का ये पहला मामला था, जब किसी नेता ने जेल में रहते हुए चुनाव जीता है। इसी जीत के बाद भारतीय राजनीति में एक नया शब्द 'बाहुबली' जुड़ गया। आज भी हरिशंकर तिवारी को बाहुबली नेता कहा जाता है।

छात्र राजनीति से की शुरुआत

हरिशंकर तिवारी विधायक बनने के पहले ही छात्र राजनीति में सक्रिय थे। जेपी के क्रांति के समय हरिशंकर तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय में एक बड़े छात्र नेता की ख्याति प्राप्त कर चुके थे। उस वक्त गोरखपुर विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति केवल विश्वविद्यालय के कैंपस तक ही सीमित नहीं थी बल्कि कैंपस के बाहर भी फैल गई थी। उस समय हरिशंकर तिवारी के विरोध में एक बड़ा नाम बलवंत सिंह का था। दोनों गुटों में अक्सर विवाद होता रहता था। दरसल ये विवाद ब्रह्माण बनाम क्षत्रिय का हो गया था। धीरे-धीरे हरिशंकर तिवारी जनता के बीच में अपनी पकड़ मजबूत करने में लग गए और सफल भी हुए। उनकी एक छवि मददगार के रूप में भी थी, चाहे वो लोगों को आर्थिक मदद करनी हो या उनकी समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करना हो, वे हमेशा तत्पर रहा करते थे। वे गोरखपुर हाता में जनता दरबार भी लगाया करते थे। इन सबका का लाभ उन्हें राजनीति में भी मिला।

22 साल रहे विधायक

हरिशंकर तिवारी की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से वो 22 साल तक विधायक रहे। हरिशंकर तिवारी की ये भी खूबी थी कि उनकी लगभग सभी दलों से अच्छे संबंध थे। सरकार किसी भी पार्टी की बनती हो, लेकिन हरिशंकर तिवारी मंत्री बनते थे। सन् 2007 से हरिशंकर तिवारी का राजनीतिक प्रभाव कम होने लगा और वो चुनाव हार गए। 2012 में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने 2017 में अपने बेटे को बसपा से टिकट दिलाया और खुद भी जीत गए थे।

राजनीति में परिवार

हरिशंकर तिवारी के लड़के भीष्मशंकर तिवारी सन् 2007 में बसपा की टिकट से संतकबीरनगर से सांसद रहे, इनके दूसरे बेटे चिल्लूपार विधानसभा से 2017 से 2022 तक विधायक रहे। हरिशंकर के एक भतीजे गणेशशंकर पाण्डेय महराजगंज से विधायक रहे। हरिशंकर तिवारी के परिवार से लगभग लोग राजनीति से जुड़े हुए हैं। उनके निधन से उनके समर्थकों में शोक की लहर है। 

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