क्या हैं सहवास के 5 प्रमुख प्राचीन नियम?, क्या जानते हैं इनके फायदों के बारे में

क्या हैं सहवास के 5 प्रमुख प्राचीन नियम?, क्या जानते हैं इनके फायदों के बारे में
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प्राचीन नियमों के अनुसार, सहवास से वंशवृद्धि, मैत्री लाभ, साहचर्य सुख, मानसिक रूप से परिपक्वता, दीर्घायु, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुख की प्राप्ति हासिल की जा सकती है।

प्राचीन से चलते आ रहे नियम को देखें तो कई नियम ऐसे है जो व्यक्ति के जीवन में कई तरह के अच्छे बदलाव ला सकते है । ऐसा ही एक नियम सहवास का है। इसमें कई तरह की विधियां बताई गई है, जिसके अनेकों लाभ इंसान के जीवन में हो सकता है। सहवास नियमों के अनुसार, देखे तो सहवास के नियमों का जो पालन करता है तब वह वंशवृद्धि, मैत्री लाभ, साहचर्य सुख, मानसिक रूप से परिपक्वता, दीर्घायु, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुख की प्राप्ति हासिल की जा सकती है। यदि व्यक्ति नियमों में बंधकर सहवास करता है, तो वह संस्कारी होकर आपदाओं से बचा रहता है।

1. पहले नियमानुसार हमारे शरीर में 5 प्रकार की वायु रहती है। व्यान, समान, अपान, उदान और प्राण। इन पांचों में से एक अपान वायु का काम शुक्र, आर्तव, मल, गर्भ और मूत्र को बाहर निकालना है। इसमें जो शुक्र है वही वीर्य है अर्थात यह वायु संभोग से संबंध रखती है। जब इस वायु की गति में बदलाव आता है या यह किसी भी प्रकार से दूषित हो जाती है तो मूत्राशय और गुदा संबंधी रोग शुरू होने लगता है। इससे संभोग की ऊर्जा पर भी असर पड़ने लगता है। अपान वायु माहवारी, प्रजनन और यहां तक कि संभोग को भी नियंत्रित करने का कारक है। अत: इस वायु को शुद्ध और गतिशील बनाए रखने के लिए आपको अपने पेट को सही रखना आवश्यक है।

2. दूसरे नियमानुसार कामसूत्र के रचयिताआचार्य वात्‍स्‍यायन के अनुसार स्त्रियों को कामशास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि इस ज्ञान का प्रयोग पुरुषों से अधिक स्त्रियों के लिए जरूरी है। तभी दोनों अच्छे सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। वात्‍स्‍याय का मानना है कि महिलाओं को बिस्तर पर गणिका की तरह व्यवहार करना चाहिए। इससे दांपत्य जीवन में स्थिरता बनी रहती है और पति किसी गौर स्त्रियों की ओर आकर्षित नहीं हो पाता तथा पत्नी के साथ उसके मधुर संबंध बने रहते हैं। इसलिए स्त्रियों को यौनक्रिया का जानकारी होना जरूरी है।

3. तीसरे नियमानुसार, ऐसा कहा जाता है कि कुछ ऐसे दिन होते हैं, जिसमें पति और पत्नी दोनों को शारीरिक संबंध नहीं करने चाहिए ।जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्थी, अष्टमी, रविवार, संक्रांति, संधिकाल, श्राद्ध पक्ष, नवरात्रि इत्यादि। इन नियमों का पालन करने से घर परिवार में सुख शांति बनी रहती है। अन्यथा घर में सुख और हानि की हानि के साथ ही व्यक्ति आकस्मिक घटनाओं को घटित होने लगती है।

4. चौथे नियमानुसार, रात्रि का पहला प्रहर रतिक्रिया के लिए उचित समय माना जाता है। इस प्रहर में की गई रतिक्रिया करने से संतान की प्राप्त होती है, जो कि आपके आचार-व्यवहार एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसी संतान की लंबी आयु एवं भाग्य शक्तिशाली होता है।

5. पांचवां नियमानुसार, यदि किसी व्यक्ति को संतान के रूप में पुत्रियों के बाद पुत्र चाहता है, तब उसे महर्षि वात्स्यायन के नियम अनुसार स्त्री को हमेशा अपने पति के बाईं ओर सोना चाहिए। कुछ देर बाईं करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से दायां स्वर चालू हो जाता है। ऐसा करने से दाईं ओर लेटने से पुरुष का बायां स्वर चलने लगेगा और बाईं ओर लेटी हुई स्त्री का बायां स्वर चलने लगता है। जब ऐसा होने लगे तब संभोग करना चाहिए। इस स्थिति में गर्भाधान हो जाता है।

डिस्क्लेमर: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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