Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य ने कही ये बहुत अनमोल बात, क्या आप भी जानते हैं...

Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य जी अपनी नीति में बताते हैं कि दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान ये चारों बातें अभ्यास से नहीं आती हैं। ये चारों मनुष्य के स्वभाविक गुण हैं और ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता है वह ईश्वर द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा करता है और दुर्गुणों को अपनाकर वह घोर कष्ट भोगता है। जो व्यक्ति अपने वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है। जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पापकर्म उसे नष्ट कर देते हैं।
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चाणक्य जी कहते हैं कि हाथी मोटे शरीर वाला है, परन्तु वो अंकुश से वश में रहता है। क्या अंकुश हाथी के बराबर है? वहीं दीपक के जलने पर अंधकार नष्ट हो जाता है। तो क्या अंधकार दीपक के बराबर है? बज्र से बड़े-बड़े पर्वत शिखर टूटकर गिर जाते हैं। तो क्या बज्र पर्वतों के समान है?
जबकि सत्यता तो यह है कि, जिसका तेज चमकता रहता है, वहीं बलवान है। मोटेपन से बल का अहसास नहीं होता है।
वहीं चाणक्य जी कहते हैं कि घर-गृहस्थी में आसक्त व्यक्ति को विद्या नहीं आती है। मांस खाने वाले व्यक्ति को दया नहीं आती है। धन के लालची व्यक्ति को सच बोलना नहीं आता है और स्त्री में आसक्त व्यक्ति में पवित्रता नहीं होती।
जिस प्रकार नीम के वृक्ष की जड़ को दूध और घी से सींचने के बाद भी वो अपनी कड़वाहट छोड़कर मृदुल नहीं हो जाता, ठीक उसी के अनुरुप दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति पर सदोपदेशों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
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चाणक्य जी कहते हैं कि जिस प्रकार शराब वाला पात्र अग्नि में तपने के बाद भी शुद्ध नहीं होता है, उसी प्रकार जिस मनुष्य के हृदय में पाप और कुटिलता भरी हो, सैकड़ों तीर्थस्थानों पर स्नान करने के उपरांत भी वह व्यक्ति पवित्र नहीं हो सकता है।
जो ब्राह्मण दुनियादारी के कामों में लगा रहता है, पशुओं का पालन, व्यापार तथा खेती करता है, वह वैश्य अर्थात वणिक कहलाता है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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