Adhik Maas Purnima 2020 Date : जानिए अधिक मास पूर्णिमा व्रत की कथा, सिर्फ सुनने मात्र से बढ़ जाते हैं पुण्य फल

Adhik Maas Purnima 2020 Date : जानिए अधिक मास पूर्णिमा व्रत की कथा, सिर्फ सुनने मात्र से बढ़ जाते हैं पुण्य फल
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Adhik Maas Purnima 2020 Date : अधिक मास (Adhik Maas) में पड़ने वाली पूर्णिमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस पूर्णिमा पर पूजा और व्रत (Purnima Puja And Fast) करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है। लेकिन कोई भी व्रत कथा के बिना के पूर्ण नहीं होता। यदि आप भी अधिक मास की पूर्णिमा का व्रत रख रहे हैं तो आपको इसकी कथा अवश्य जान लेनी चाहिए।

Adhik Maas Purnima 2020 Date : अधिक मास पूर्णिमा 1 अक्टूबर 2020 (Adhik Maas Purnima 1 October 2020 ) को मनाई जाएगी। यह पूर्णिमा (Purnima) पुरुषोतम मास में पड़ती है। जिसकी वजह से इसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि अधिक मास की पूर्णिमा पर व्रत करने से भगवान सत्यनारायण का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन आपको इस दिन अधिक मास की कथा भी अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए। जिससे आपका व्रत सफल हो सके तो आइए जानते हैं अधिक मास पूर्णिमा व्रत कथा।

अधिक मास पूर्णिमा की कथा (Adhik Maas Purnima Vrat Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राहाण निवास करता था उसकी कोई संतान नही थी। वह ब्राह्मण दान मांगकर अपना गुजारा करता था। एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी नगर में दान मांगने के लिए गई। लेकिन उसे नगर में उस दिन किसी ने भी दान नहीं दिया क्योंकि वह नि:संतान थी। वहीं दान मांगने पर उस ब्राह्मण की पत्नी को एक व्यक्ति ने सलाह दी कि वो मां काली की आराधना करे। सके बाद ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया और सोलह दिनों तक मां काली की आराधना की।

जिसके बाद मां काली स्वंय प्रकट हुईं मां ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार तुम आटे की दीप हर पूर्णिमा को जलाना और हर पूर्णिमा को एक- एक दीपक बढ़ा देना। तुम्हें कर्क पूर्णिमा तक पूरे 22 दीए अवश्य ही जलाने हैं। देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को पूजा के लिए दे दिया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई। देवी के आर्शीवाद से उस ब्राह्मण के यहां एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम देवदास रखा गया।

जब वह बड़ा हुआ तो वह पढ़ने के लिए काशी गया ।देवदास के साथ उसका मामा भी गया। दोनों के साथ रास्ते में एक घटना घटी। जिसके बाद देवदास का प्रचंशवश विवाह हो गया। जबकि देवदास ने पहले से ही बता दिया था कि वह अल्पायु है । लेकिन फिर भी उसका विवाह जबरदस्ती कर दिया गया कुछ समय के बाद उसे मारने के लिए काल आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति के पूर्णिमा व्रत के कारण काल उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया।

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