Ahoi Ashtami Kahani: संतान प्राप्ति के लिए रखते हैं अहोई अष्टमी का व्रत, जानें पौराणिक कहानी

Ahoi Ashtami Kahani: संतान प्राप्ति के लिए रखते हैं अहोई अष्टमी का व्रत, जानें पौराणिक कहानी
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Ahoi Ashtami Kahani: अहोई अष्टमी का व्रत इस साल 5 नवंबर को मनाया जा रहा है। संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं इस व्रत को रखती हैं। जानें इसके पीछे की कहानी...

Ahoi Ashtami Kahani: अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इस साल यह पर्व 5 नवंबर को मानया जाएगा। इस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है, कि इस व्रत को रखने से संतान पर आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। अहोई अष्टनी के दिन माता पार्वती के रूप अहोई माता की पूजा- अर्चना की जाती है। जानें इस पर्व की कथा...

अहोई अष्टमी व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है किसी नगर में एक साहूकार रहा करता था। उसके परिवार में सात पुत्र एक पुत्री और बहुएं थी। कार्तिक माह की अष्टमी के दिन साहूकार की बहुएं और बेटी घर की रंगाई- पुताई के लिए खदान से मिट्टी लेने गई थी। जब साहूकार की बेटी कुदाल से मिट्टी खोद रही थी तभी गलती से मिट्‌टी के अंदर मौजूद स्याहू के बच्चे मर जाते हैं। इस बात से गुस्सा होकर स्याहु माता साहूकार की बेटी से कहती है, कि मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी। यह बात सुनकर ननद ने अपनी भाभियों से बोला कि आप में से कोई अपनी कोख बंधवा लो, लेकिन सभी ने साफ इंकार कर दिया।

छोटी भाभी ने बंधवाई कोख

इसके बाद सबसे छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवाने की स्वीकृति दे दी। उसके बाद छोटी वाली भाभी के जो भी संतान होती वह सातवें दिन मर जाती थी। हर साल सभी जेठानियां अहोई अष्टमी का व्रत रखती और माता की पूजा करती। धीरे-धीरे समय बीतता गया। एक दिन छोटी बहू ने पंडित को बुलवा कर इस समस्या का समाधान पूछा गया तब पंडित ने उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। उसके बाद छोटी बहू नियमित रूप से गाय की सेवा करने लगी।

इस बात से प्रसन्न होकर गाय ने छोटी बहू से पूछा तुम्हें क्या चाहिए। तब उसने पूरी कहानी बताई और कोख खुलवाने की बात कही। इसके बाद सुरई गाय बहू को लेकर स्याहू माता के पास चल दी। रास्ते में थक कर दोनों पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगे तभी वहां एक सांप आया और वहां पर मौजूद गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने की कोशिश करने लगा।

गरुड़ पंखनी ने की मदद

यह देखकर साहूकार की बहू ने सांप को मारकर गरुड़ पंखनी के बच्चे को बचा लिया। कुछ देर बाद वहां गरुड़ पंखनी आई और उसने खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मार दी। तभी साहूकार की बहू बोली कि मैंने इन्हें सांप से बचाया है। इस बात से खुश होकर गरुड़ पंखनी उससे वरदान मांगने को कहती हैं। इस पर बहू ने कहा कि आप हमें सात समुदंर पार स्याहू के पास पहुंचा दो। उसके बाद गरुड़ पंखनी दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा देती है।

स्याहू माता सुरही गाय को देखकर बोलीं बहन तू इतने दिनों बाद आई है। मेरे सिर में जूं पड़ गई हैं वो साफ कर दे। सुरही के कहने पर साहूकार की बहू स्याहू माता के सिर से जूं साफ कर देती है। इसके बाद स्याहू माता छोटी बहू को खुश होकर आशीर्वाद देती है कि तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी। यह सुनकर साहूकार की बहू बोली कि मेरी कोख आपने बांध रखी है। इस बात को सुनकर स्याहू कहती है कैसे, तब वह पूरी कहानी बताती है। स्याहू माता ने बोला तू घर जाकर अहोई का उद्यापन करना और व्रत कर सात कढ़ाही बनाना। जब छोटी बहू घर पहुंची तब उसे घर पर सात बेटे और सात बहुएं मिलें। इसके बाद छोटी बहू ने अहोई माता का व्रत रखा। सात अहोई बनाकर सात उजमन किए और सात कढ़ाई की।

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