Ahoi Ashtami Vrat 2020 Date : अहोई अष्टमी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त ,महत्व, पूजा विधि और कथा

Ahoi Ashtami Vrat 2020 Date : अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। जहां करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं तो वहीं अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और उन्हें सभी प्रकार की विपत्ति से बचाने के लिए रखती हैं तो आइए जानते हैं होई अष्टमी 2020 में कब है, अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त, अहोई अष्टमी का महत्व,अहोई अष्टमी की पूजा विधि और अहोई अष्टमी की कथा।
अहोई अष्टमी 2020 तिथि (Ahoi Ashtami 2020 Tithi)
8 नवंबर 2020
अहोई अष्टमी 2020 शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2020 Shubh Muhurat)
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त - शाम 5 बजकर 31 मिनट से शाम 6 बजकर 50 मिनट (8 नवंबर 2020)
तारों को देखने के लिये साँझ का समय - शाम 5 बजकर 56 मिनट (8 नवंबर 2020)
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - रात 11बजकर 56 मिनट (8 नवंबर 2020)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 7 बजकर 29 मिनट से (8 नवंबर 2020)
अष्टमी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक (8 नवंबर 2020)
अहोई अष्टमी का महत्व (Ahoi Ashtami Importance)
करवा चौथ के बाद एक सुहागन महिला के लिए अहोई अष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत संतान की लंबीं उम्र के साथ- सथ उसे हर परेशानी से बचाने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि जो भी महिला अहोई अष्टमी का व्रत रखती है उसके पुत्र को लंबी आयु की प्राप्ति होती है और साथ ही उसके जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। करवा चौथ के व्रत में महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं। वहीं अहोई अष्टमी के व्रत में तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं हुई है। वह अगर इस व्रत को रखती है तो उन्हें निश्चित ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा की जाती है और उनकी कथा सुनकर महिलाएं तारों की छांव में तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं और अहोई माता से अपनी संतान के सभी कष्टों को समाप्त करने के लिए प्रार्थना करती हैं।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)
1. अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर घर की पूरी साफ- सफाई करनी चाहिए और स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इस दिन महिलाओं को पूरा दिन व्रत रखना चाहिए और शाम के समय गेरू से अहोई माता का चित्र दीवार पर बनना चाहिए।
3.इसके बाद एक चावल की कटोरी में मूली और सिंघाड़े और पानी से भरा एक करवा या लोटा रखें। अगर यह करवा, करवा चौथ का हो तो ज्यादा अच्छा है।
4.यह सभी सामग्री रखने के बाद अहोई माता की कथा सुनें या पढ़ें। जिस समय महिलाएं कथा सुन रही हों उस समय उन्हें अपनी साड़ी के पल्लू से चावल बांध लेने चाहिए।
5. इसके बाद अहोई माता को चौदह पूड़ी और आठ पूओं का भोग लगाएं और तारों की छांव में अर्घ्य दें। अहोई माता के भोग को दूसरे दिन किसी गाय को खिला दें।
अहोई अष्टमी की कथा (Ahoi Ashtami Story)
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसके सात पुत्र और सात बहुंए थीं। इस अलावा साहुकार की एक पुत्री भी थी जो दिवाली के समय अपने ससुराल से पिहर आया करती थी। एक बार दिवाली पर घर को लिपने के लिए साहुकार की बहुएं जंगल से मिट्टी लेने के लिए गई उनके साथ उनकी नंद भी मिट्टी लेने के लिए चली गई। उस जंगल में ही स्याहु अपने बच्चों के साथ रहा करती थी।
जब सहुकार की पुत्री खुरपी से मिट्टी काट रही थी तो वह खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई। जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। स्याहु को इस बात से अत्याधिक क्रोध आया और उसने कहा की तेरी वजह से मेरे पुत्र की मृत्यु हुई है। इसलिए मैं तेरी कोख बांध दूंगी। स्याहु की बात सुनकर साहुकार की पुत्री ने अपनी सभी भाभियों से विनती की कि वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लें।
जब उसकी छह भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मना कर दिया तो उसकी सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद साहुकार की सबसे छोटी बहु के जो भी बच्ता होता था। वह सातवें दिन मर जाता था। जब साहुकार की छोटी बहु के सात पुत्र मर गए तो उसने इस समस्या के निदान के लिए एक पंडित को बुलाकर इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा।
उस पंडित ने साहुकार की बहु को सुरही गाय की सेवा करके उसका आर्शीवाद प्राप्त करने की सलाह दी। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय की बहुत सेवा करती है। सुरही गाय साहुकार की बहु से कहती है कि मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुं बताओं तुम क्या चाहती हो। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय को पूरी बात बताती है। सुरही गाय साहुकार की बहु को स्याहु के पास ले जाती है।
रास्ते में चलते- चलते दोनों अत्याधिक थक जाती हैं और एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगती है। आराम करते समय साहुकार की बहु की नजह एक एक गरूड़ पंखनी के बच्चे पर पड़ती है। जिसे एक सांप डंसने जा रहा होता है। साहुकार की बहु उस सांप को मार देती है। उसी समय गरूड़ पंखनी भी वहां पर आ जाती है और जब वह उस जगह पर खुन बिखरा देखती है तो उसे लगता है कि साहुकार की बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है।
वह उसे अपनी चोंच मारने स्याहु साहुकार की छोटी बहू की सेवा से खुश होकर उसे सात पुत्र और सात बहुओं का वरदान देती है। इस तरह स्याहु के वरदाने के कारण साहूकार की छोटी बहु के घर में सात पुत्र और सात बहुएं आ जाती है। तब ही से संतान के लिए अहोई माता का व्रत किया जाने लगा। अहोई का अर्थ होता है अनहोनी से बचानी वाली
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