अखंड दीप बुझने और कलश पर रखे गए नारियल को टूटने पर क्या करें, आप भी जानें

जब हम कोई पूजा पाठ करते हैं तो तीन प्रकार से दीप जलाते हैं, पहला दीप जो हाेता है उसे अखंड दीप माना जाता है। अखंड दीप जब तक के लिए आपने भगवान की स्थापना की है तब तक वह दीप जलाया जाता है। इसे अखंड दीप कहते हैं। इस दीपक को बुझने नहीं दिया जाता है ताकि यह दीपक अनवरत रूप से जलता रहे। प्रज्वलित होता रहे।
कर्मसाक्षी दीप
कर्मसाक्षी का जो दीपक होता है वह जब तक पूजा होती है, तब तक जलाया जाता है। अर्थात जब आप कोई पूजा आदि करते हैं तो उस पूजा आदि के पूर्ण होने तक ही यह दीप जलाया जाता है। यानि जब से पूजा आरंभ होती है तब से पूजा समाप्त होने तक ही कर्म साक्षी दीपक को जलाने का विधान धर्म शास्त्रों में बताया गया है। इस दीपक में घी अथवा तेल डालकरे छोड़ दिया जाता है। जब तक वह घी अथवा तेल समाप्त नहीं होता तब तक वह दीपक जलता रहता है।
आरती दीप
आरती दीप केवल आरती होने तक ही जलाया जाता है। आरती के बाद घी अथवा तेल समाप्त होने पर यह दीप बुझ जाता है। इसमें दोबारा तेल या घी नहीं डाला जाता है।
कभी-कभी ऐसा होता है कि अखंड दीप पूजा के बीच में ही बुझ जाता है। और कर्म साक्षी दीप भी कई बार पूजा के बीच में ही बूझ गया। तो ऐसी स्थिति में हम क्या करें।
इस प्रकार के दीप के बूझने का कोई दोष नहीं माना जाता है। क्योंकि दीप प्राकृतिक आपदा के कारण कई बार बूझ जाता है। कई बार दीप हवा अधिक होने और कई बार हवा ना मिल पाने के कारण भी बूझ जाता है। कई बार हम लोग ढक्कन वाला दीप जलाते हैं, और उस दीप के जलाने के समय में उस ढक्कन में जब कालिख जम जाती है, और अगर उस पर हमारा ध्यान ना जाए या हम लोग उसे समय रहते साफ ना करें तो उस स्थिति में दीपक को कम या अधिक हवा के प्रवाह के कारण भी दीप बूझ जाता है। ऐसी स्थिति में दीपक के बूझने का दोष आपका यानि पूजन करने या कराने वाले का नहीं माना जाता है।
कभी-कभी हम लोग अखंड दीप या कर्म साक्षी दीप में तेल डालना भूल जाते हैं, या बत्ती को ठीक से संभालना भूल जाते हैं तो ऐसी स्थिति में भी दीप बूझ जाता है। ऐसी स्थिति में यह व्यक्तिगत दोष माना जाता है। इसमें कही ना कही आप लोगों की त्रुटि हो जाती है। यह बहुत गलत बात मानी जाती है। ऐसी स्थिति में हमारा दीपक बूझ जाए तो हमें क्या करना चाहिए ? अथवा हम कलश में नारियल का स्थापन करते हैं, उत्तर भारत के बहुत अधिक क्षेत्रों में सूखा नारियल प्राप्त होता है इसलिए वहां कलश पर सूखा नारियल रखने का विधान है। परन्तु कई जगह पानी वाला गीला नारियल प्राप्त होता है। वह नारियल कलश पर रखने के दो-चार दिन बाद वह नारियल टूट जाता है तो उस समय हमें क्या करना चाहिए।
नारियल को इस प्रकार पूजा आदि के बीच में टूट जाना हमारी ही गलतियों का द्योतक है, ऐसा माना जाता है कि हमारे द्वारा शायद किसी प्रकार से इस पूजा में कोई कमी रह गई है, अथवा किसी प्रकार की हमसे कोई गलती आदि पूजा के दौरान हो गई है। हालांकि कई लोग यह भी मानते हैं कि पर्यावरण के हिसाब से भी कई बार नारियल टूट जाता है। क्योंकि नारियल के अंदर नमी अधिक होती है, उसमें पानी होने के कारण उसमें ठंडक अधिक होती है। और बाहर से अगर गरमी का वातावरण अगर नारियल को प्राप्त हो जाए तो कई बार नारियल स्वयं भी फूट जाता है। परन्तु आध्यात्मिक रूप से यदि हमारे मन में इस प्रकार का भाव आया है कि यह हमारी गलती के कारण हो गया है तो हमें उस स्थिति में उस दोष की निवृति के लिए क्या करना चाहिए।
दीपक को बूझने के बाद सबसे पहले तो दीपक को जला देना चाहिए। और उसके बाद दीपक की विशेष व्यवस्था करनी चाहिए। और भली प्रकार से दीपक की देखरेख करनी चाहिए। और नारियल के फूट जाने पर नारियल को पूजा से अलग नहीं करना चाहिए। जिस स्थान या पात्र में नारियल रखा हुआ है, उस नारियल को वैसे ही यथावत रहने देना चाहिए, और आपका जब अनुष्ठान संपन्न हो जाए तब उस नारियल का विसर्जन कर देना चाहिए। परन्तु जब इस प्रकार से गलती हो जाती है या स्वयं से कोई अपराध हो जाता है, तो क्षमा याचना के लिए शास्त्रों में कुछ निर्देश दिए गए हैं। ऐसी स्थिति आने पर शास्त्रानुकूल निर्देशों का पालन करना चाहिए।
1. ऐसी स्थिति में गऊ ग्रास निकालना चाहिए। जिस दिन आपको दीपक बूझने या नारियल टूटने का पता चलता है आपको उस दिन भी गऊ ग्रास निकाल सकते हैं अथवा अनुष्ठान पूर्ण होने पर आपको गऊ ग्रास अवश्य निकालना चाहिए।
2. आपको इस दोष से बचने के लिए चींटियों के लिए गुड अथवा शक्कर, आटा आदि खाने के लिए डालना चाहिए। किसी देव वृक्ष के नीचे आपको इस प्रकार की व्यवस्था चींटियों के लिए आपको अवश्य कर देनी चाहिए।
3. (काक) अर्थात कौआ के लिए भी आप रोटी इत्यादि निकाल करके अपने घर की छत पर रख दें। रोटी के अलावा आप दूध, भात आदि भी कौआ के लिए रख सकते हैं। वह भी कौआ अत्यंत प्रेम से खाते हैं।
4. इस दोष से बचने के लिए आप ब्राह्मण को 'सीधा' अर्थात अन्न आदि दान कर सकते हैं। उनके निमित सभी प्रकार की भोजन सामग्री दान करें।
इस प्रकार के कार्य करने से आपके मन के छोटे-बड़े सभी प्रकार के ज्ञात-अज्ञात कर्मों के कारण जो दोष उत्पन्न हो जाते हैं वह दोष समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इन सबके लिए प्रतिदिन दैव यज्ञ करने का विधान भी बताया गया है। दैव यज्ञ में भी इसी प्रकार के कार्य करने के विधान आता है, दैव यज्ञ के अनुसार ब्राह्मण के अलावा अतिथि को भोजन कराने का भी विधान शास्त्रों में बताया गया है।
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