Amla Navami 2020: जानिए अक्षय नवमी की व्रत कथा

Amla Navami 2020: आंवला नवमी की कहानी व्रत के समय कही और सुनी जाती है। किसी भी व्रत को रखने के दौरान हमें उस व्रत की कहानी और उसके महत्व का ज्ञान होना जरुरी होता है। तो आइए आज आप भी जानें अक्षय नवमी की व्रत कथा के बारे में।
आंवला नवमी व्रत कथा
एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया।
एक दिन उसक बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा।
इसलिए बेटे ने राजा से कहा कि उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दु:ख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए।
राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं।
जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका मान नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा।
इसलिए भगवान ने जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए।
सुबह राजा-रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
राजा रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए।
आओ नहा धोकर आंवले दान करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू बेटे के बुरे दिन आ गए।
राज्य दुश्मनों ने छीन लिया। दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे।
उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया।
बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते हैं। सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहू ने सास क बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा।
कि ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने यह सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा।
आज वे लोग न जाने कहां होंगे?
यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरन्त ही पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है?
उसने बताया कि आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था। इसलिए वे घर छोड़कर कही चले गए।
तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना बताया। अपने बहू-बेटे को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है।
बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे।
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हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
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