Anant Chaturdashi 2020 Mein Kab Hai: अनंत चतुर्दशी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व,पूजा विधि और कथा

Anant Chaturdashi 2020 Mein Kab Hai: अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu),यमुना नदी और शेषनाग जी की पूजा की जाती है। इस दिन अनंत धागे को कलाई पर बांधना बहुत ही शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति इस धागे को अपनी कलाई पर बांधता है। उसके जीवन में कभी भी कोई परेशानी नहीं आती और उसके जीवन में सुख, धन और धान्य हमेशा ही बना रहता है।
अनंत चतुर्दशी 2020 तिथि (Anant Chaturdashi 2020 Tithi)
1 सितंबर 2020
अनंत चतुर्दशी 2020 शुभ मुहूर्त (Anant Chaturdashi 2020 Shubh Muhurat)
अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 59 मिनट से सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक (1 सितंबर 2020)
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - सुबह 08 बजकर 48 मिनट से (31 अगस्त 2020)
चतुर्दशी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 09 बजकर 38 मिनट तक (1 सितम्बर 2020)
अनंत चतुर्दशी का महत्व (Anant Chaturdashi Ka Mahatva)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और शेषनाग की पूजा की जाती है। इस दिन सूत या रेशम के धागे को भगवान विष्णु का रूप मानकर रक्षासूत्र के रूप में बांधा जाता है। लेकिन इस धागे को कलाई पर बांधने से पहले इस धागे में चौदह गांठ लगाई जाती है और कुमकुम लगाकर इसकी पूजा की जाती है। कलाई पर बांधे जाने वाले इस धागे को अनंत कहा जाता है।
माना जाता है कि यह अनंत चतुर्दशी के दिन बांधा गया यह रक्षासूत्र व्यक्ति की सभी प्रकार से रक्षा करता है और उसके जीवन की सभी परेशानियों का भी अंत करता है। उसके जीवन में धन और धान्य का कभी भी आभाव नहीं होता।यह दिन हिंदू धर्म के लोगो के साथ ही जैन धर्म के लोगो के लिए भी विशेष माना जाता है। इस दिन जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का समापन होता है। जिसमें भगवान की शोभायात्रा निकाली जाती है और उनका जलाभिषेक किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि (Anant Chaturdashi Puja Vidhi)
1. अनंत चतुर्दशी की पूजा करने वाले व्यक्ति को इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना और शेषनाग जी की पूजा की जाती है। इसके बाद एक चौकी पर रेशम या सूत के धागे में चौदह गांठ लगाकर रखें।
3. माता यमुना के स्थान पर कलश और शेषनाग जी के स्थान पर दूर्वा रखें और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद कुश घास से अनंत की स्थापना करके रोली,मौली,नैवेद्य, चंदन,धूप व दीप से अनंत धागे की पूजा करें।
4.इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और उस धागे को भगवान विष्णु के चरणों में रखकर ॐ अनंताय नमः मंत्र का जाप करें और अनंत चतुर्दशी की कथा पढ़ें।
5.अंत में उस धागे को उठाकर अपने माथे से लगाएं और दहिने हाथ की कलाई पर रक्षासूत्र रूप मानकर बांध लें।
अनंत चतुर्दशी की कथा (Anant Chaturdashi Ki Katha)
एक कथा के अनुसार किसी नगर में सुंमत नाम के ऋषि और उनकी पत्नी दीक्षा के यहां एक बहुत ही सुंदर कन्या का जन्म हुआ। उस कन्या का नाम सुशीला रखा गया। लेकिन सुशीला के जन्म के समय ही दीक्षा की मृत्यु हो गई। दीक्षा की मृत्यु के बाद सुंमत ऋषि को सुशीला के पालन पोषण कि चिंता होने लगी। इसलिए उन्होंने दूसरे विवाह का फैसला किया। सुंमत ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया। उनकी दूसरी पत्नी का नाम कर्कशा था। जो काफी कठोर स्वाभाव की थी। सुशीला धीर- धीरे बड़ी होने लगी। अब सुमंत ऋषि को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।
सुशीला का विवाह कौण्डिन्य ऋषि से हो गया। लेकिन सुशीला को अपने ससुराल में दरिद्रता का सामना करना पड रहा था। वह जंगलों में भटक कर अपना गुजारा कर रही थी। एक बार सुशीला ने लोगों को अनंत भगवान की पूजा करते हुए देखा जो एक-दूसरे की कलाई पर रक्षासूत्र बांध रहे थे। सुशीला ने लोगों से अनंत भगवान की पूजा विधि के बारे में जाना और स्वंय भी रक्षासूत्र अपनी कलाई पर बंधवाया। कुछ समय बाद ही सुशीला के यहां धन का आगमन हो गया और उसके दिन बदलने लगे।
धन के आने से कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार भी आ गया। उन्हें लगने लगा कि यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित किया है। एक साल के बाद जब दूबारा से अंनत चतुदर्शी आई तो उसने फिर से अनंत भगवान की पूजा आराधना की और अनंत धागा अपनी कलाई पर बांधकर आई। जब कौण्डिन्य ने उसके हाथ में अनंत का धागा देखा तो उन्होंने उससे इसके बारे में पूछा। सुशीला ने बड़ी ही प्रसन्नता के साथ अपने पति को सब बात बता दी। यह सुनकर कौण्डिन्य ऋषि अत्यंत ही क्रोधित हो गए और स्वंय का अपमान समझने लगे कि उनकी मेहनत का क्षेय उनकी पत्नी किसी और दे रही है।
उन्होंने सुशीला से वह रक्षासूत्र उतरवा दिया। जिससे भगवान कौण्डिन्य ऋषि से रुष्ट हो गए और उनकी स्थिति फिर से धीरे- धीरे पहले जैसी ही हो गई। जिसके बाद कौण्डिन्य ऋषि को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने चौदह वर्षों तक अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा। जिससे भगवान विष्णु उन पर प्रसन्न हो गए। जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें सभी प्रकार के सुख प्रदान किए।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS