Basant Panchami 2022 : बसंत पंचमी के दिन हुआ था ज्ञानदायिनी मां सरस्वती का जन्म, एक क्लिक में पढ़ें ये पौराणिक कथा

Basant Panchami 2022 : बसंत ऋतु में प्रकृति का कण-कण उल्लास से खिल उठता है। मानव, पशु-पक्षी और सभी जीव-जन्तु उल्लास से झूम जाते हैं। इस दौरान नित नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान करता है। वहीं पूरा माघ मास जन जीवन को उत्साह देने वाला होता है परंतु बसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनमानस को कई तरह से प्रभावित करता है। वहीं पौराणिक काल में बसंत पंचमी को ज्ञानदायिनी मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वहीं बसंत पंचमी का पर्व इस साल 05 फरवरी, दिन शनिवार को मनाया जाएगा। वहीं बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए विद्यार्थी उनकी आराधना करते हैं। तो आइए जानते हैं बसंत पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में...
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बसंत पंचमी और मां सरस्वती के जन्म की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान ब्रह्मा जी ने जीवों की रचना की और खासतौर पर मनुष्य की रचना की, लेकिन भगवान अपनी रचना से असंतुष्ट ही थे और उन्हें लगा कि सृष्टि में कुछ तो कमी रह गई है। जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमंडल से जल अपनी अंजलि में लेकर संकल्प स्वरुप उस जल को छिड़ककर भगवान श्रीहरि की स्तुति की।
ब्रह्मा जी की स्तुति करने के फलस्वरूप भगवान श्रीहरि विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुए। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। और कहा कि हे प्रभु मैंने सृष्टि की रचना तो की है लेकिन चारों तरफ मौन है। इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए।
ब्रह्मदेव की समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदि शक्ति मां दुर्गा का आवाह्न किया। और जिसके बाद मां दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गई। तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने उनसे इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रह्मा जी और विष्णु जी की बातों को सुनने के बाद आदि शक्ति मां दुर्गा के शरीर से श्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ। जोकि एक दिव्य नारी के रुप में परिवर्तित हो गया। और यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुन्दर स्त्री का था। जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वरमुद्रा थी। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी।
आदि शक्ति मों दुर्गा के शरीर से उत्पन्न होने के बाद ही उस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया। जिससे संसार के सभी जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। यानि कि सृष्टि के सभी जीव-जन्तुओं को आवाज प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। हवा के चलने से सरसराहट होने लगी। इसी तरह समस्त सृष्टि को ध्वनि प्राप्त हुई।
तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार करने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा। और तभी से मां को सरस्वती के नाम से जाना जाता है। उसके बाद आदि शक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न होने वाली ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी। जैसे लक्ष्मी श्रीविष्णु जी की शक्ति हैं और पार्वती महादेव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती जी आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कहकर आदि शक्ति मां जगदंबा अंर्तध्यान हो गईं।
इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। मां सरस्वती को वाघेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी, और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदान करने वाली देवी हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण ये संगीत की देवी भी मानी जाती हैं। जिस दिन ये मां दुर्गा के तेज से प्रकट हुईं उसी दिन को बसंत पंचमी के तौर पर मनाया जाता है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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