Bhishma Ashtami 2022: गंगापुत्र देवव्रत का नाम भीष्म क्यों पड़ा, जानें महाभारत काल की ये पौराणिक कथा

Bhishma Ashtami 2022: गंगापुत्र देवव्रत का नाम भीष्म क्यों पड़ा, जानें महाभारत काल की ये पौराणिक कथा
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Bhishma Ashtami 2022: भीष्म अष्टमी 08 फरवरी, दिन मंगलवार को है। इस दिन पितामह भीष्म के निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि करने का विधान है। भीष्म पितामह के जीवन की कथा बड़ी ही रोचक है। वे महान योद्धा और बाल ब्रह्मचारी थे, उनके बचपन का नाम देवव्रत था और वे गंगा और हस्तिनापुर नरेश महाराज शान्तनु के ज्येष्ठ पुत्र थे। तथा कौरवों और पांडवों के पितामह थे। तो आइए भीष्म अष्टमी के अवसर पर जानते हैं कि उनका नाम भीष्म क्यों पड़ा।

Bhishma Ashtami 2022: भीष्म अष्टमी 08 फरवरी, दिन मंगलवार को है। इस दिन पितामह भीष्म के निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि करने का विधान है। भीष्म पितामह के जीवन की कथा बड़ी ही रोचक है। वे महान योद्धा और बाल ब्रह्मचारी थे, उनके बचपन का नाम देवव्रत था और वे गंगा और हस्तिनापुर नरेश महाराज शान्तनु के ज्येष्ठ पुत्र थे। तथा कौरवों और पांडवों के पितामह थे। तो आइए भीष्म अष्टमी के अवसर पर जानते हैं कि उनका नाम भीष्म क्यों पड़ा।

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भीष्म अष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था। वह हस्तिनापुर के राजा शांतनु की पत्नी और मां गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते- खेलते गंगा तट पर पहुंच गए। वहां से लौटते समय उनकी भेंट हरिदास केवट की पुत्री मतस्यगंधा से हुई। जिनकी सुंदरता पर वो मोहित हो गए राजा शांतनु ने मतस्यगंधा के पिता से उनका हाथ मांगा। लेकिन मतस्यगंधा के पिता ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि आपका जयेष्ठ पुत्र देवव्रत है।

जो आपके राज्य का उत्तराधिकारी है यदि आप मेरी पुत्री के पुत्र को राज्य का उत्तराअधिकारी बनाने की घोषणा करते हैं तो ही मैं अपको अपनी पुत्री का हाथ देने को तैयार हूं। राजा शांतनु इस बात को मानने से मना कर देते हैं इस बात को लेकर कुछ समय बीत जाता है पर वो मतस्यगंधा को नहीं भूल पाते और व्याकुल रहने लगते हैं। यह सब देखकर उनके पुत्र देवव्रत ने उनकी व्याकुलता का कारण पूछा और सब बात जानने के बाद वो केवट हरिदास के पास जाते हैं।

जिसके बाद उनकी जिज्ञासा को शांत करने और पिता के लिए उन्होंने हाथ में गंगाजल लेकर ये प्रण लिया कि मैं आजीवन अविवाहित ही रहूंगा। ऐसी कठिन प्रतिज्ञा के लिए ही उनका नाम भीष्म पड़ा उनके पिता ने प्रसन्न होकर उनको इच्छामृत्यु का वरदान दिया महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होने अपना शरीर त्यागा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति तिल के जल के साथ तर्पण करता है उसे संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती ही है इसके साथ ही उसके सभी पापों का नाश भी हो जाता है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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