Maa Mundeshwari Temple: यहां माता को भेंट की जाती हैं बिना रक्त बहाए बलि, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य और इतिहास

Maa Mundeshwari Temple: यहां माता को भेंट की जाती हैं बिना रक्त बहाए बलि, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य और इतिहास
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Maa Mundeshwari Temple: एक ऐसा मंदिर जहां बिना रक्त बहाए बलि दी जाती है। ऐसा मान्यता है कि अगर बकरे की बलि देते समय रक्त बह जाता है तो माता नाराज हो जाती हैं। तो आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में पूरी जानकारी।

Maa Mundeshwari Temple: कभी आपने ऐसा सुना है कि कहीं पर बलि दी जाए और वहां रक्त की एक बूंद भी न बहे। आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा कि आखिर ये कैसा सवाल है जहां बलि दी जाएगी तो लाजमी है कि वहां रक्त बहेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। आज इस खबर के माध्यम से आपको बताएंगे कि एक ऐसी जगह भी है। जहां माता को बलि तो दी जाती है। लेकिन वहां रक्त की एक बूंद भी नहीं गिरती है। ऐसा पौराणिक मान्यता है कि रक्त बहने से माता रूठ जाती है और क्रोधित हो जाती हैं। तो आइए जानते हैं हैरान करने वाली इस माता के मंदिर के बारे में जहां बिना रक्त बहाए बलि दी जाती है। इसके साथ ही किस जगह से संबंध रखता है ये मंदिर...

बिहार में स्थित है हैरान करने वाला माता का यह मंदिर

जिस मंदिर के बारे में हम बात कर रहे हैं वह मंदिर बिहार के कैमूर जिले में 608 फीट ऊंची एक पहाड़ की चोटी पर स्थित हैं। जिस पहाड़ की चोटी का नाम पवरा है। इस मंदिर का नाम मां मुंडेश्वरी है। मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर तकरीबन 19 सौ सालों से माता की पूजा-पाठ किया जा रहा है। यह मंदिर बिहार के साथ पूरे विश्व के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को लेकर अनेकों कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन उन्हीं कहानियों में से एक कहानी आज हम आपको इस खबर के माध्यम से बता रहे हैं।

माता मुंडेश्वरी की कहानी

ये कहानी है जब चंड और मुंड नाम के दो असुर मानव जीवन को तबाह करने में लगे थे, तब माता मुंडेश्वरी ने प्रकट होकर राक्षस का वध किया था। चण्ड का तो वध हो गया लेकिन मुंड राक्षस इसी पहाड़ी पर आकर छुप गया। मां मुंडेश्वरी मुंड को ढूंढते हुए इसी पहाडी पर आई और मुंड नाम का राक्षस का वध किया। इसलिए इस मंदिर का नाम मुंडेश्वरी माता मंदिर पड़ा था। यहां के स्थानीय निवासियों के अनुसार इस मंदिर में बकरे की बलि दी जाती है। लेकिन इस मंदिर में एक गजब तरीके से बलि चढ़ाई जाती है जिसमें रक्त के एक बूंद भी नहीं बहती है।

ऐसे शुरू हुई थी बलि देने की परंपरा

मान्यताओं के अनुसार, कहते हैं जब किसी व्यक्ति की मन्नत पूरी हो जाती है तो प्रसाद के रूप में माता की मूर्ति के सामने बकरे को लाता है। मंदिर के पुजारी माता के चरणों से अक्षत उठाकर बकरे के ऊपर डालते हैं। अक्षत डालते ही बकरा बेहोश हो जाता है। और थोड़ी देर बाद पुजारी फिर से बकरे के ऊपर अक्षत मारते हैं, जिसके बाद बकरा होश में आ जाता है। इस बलि परंपरा के जरिए यह संदेश दिया जाता है कि माता रक्त की प्यासी नहीं बल्कि जीवों पर दया करने वाली है।

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