बृहस्पतिवार व्रत कथा पढ़ने और सुनने से देवगुरु बृहस्पति के संग होते हैं भगवान विष्णु भी प्रसन्न, एक क्लिक में जानें संपूर्ण Story

बृहस्पतिवार व्रत कथा पढ़ने और सुनने से देवगुरु बृहस्पति के संग होते हैं भगवान विष्णु भी प्रसन्न, एक क्लिक में जानें संपूर्ण Story
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बृहस्पतिवार का व्रत करने और बृहस्पतिवार की कथा सुनने और पढ़ने से भगवान विष्णु के साथ में देवगुरु बृहस्पति भी प्रसन्न होते हैं और बृहस्पतिवार के दिन पूजा करने वाले लोगों पर कृपा बरसाते हैं। तथा साथ ही भगवान श्रीहरि अपने भक्तों के दुखों का नाश करते हैं। तो आइए आज बृहस्पतिवार के दिन आप भी एक क्लिक करके पढ़ें बृहस्पतिवार व्रत की कथा और पाएं भगवान विष्णु के साथ में देवगुरु बृहस्पति का वरदान।

बृहस्पतिवार का व्रत करने और बृहस्पतिवार की कथा सुनने और पढ़ने से भगवान विष्णु के साथ में देवगुरु बृहस्पति भी प्रसन्न होते हैं और बृहस्पतिवार के दिन पूजा करने वाले लोगों पर कृपा बरसाते हैं। तथा साथ ही भगवान श्रीहरि अपने भक्तों के दुखों का नाश करते हैं। तो आइए आज बृहस्पतिवार के दिन आप भी एक क्लिक करके पढ़ें बृहस्पतिवार व्रत की कथा और पाएं भगवान विष्णु के साथ में देवगुरु बृहस्पति का वरदान।

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बृहस्पतिवार व्रत कथा

प्राचीन काल में किसी गांव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। उस ब्राह्मण के कोई सन्तान नहीं थी। उसकी पत्नी अच्छी प्रकार से स्वच्छ नहीं रहती थी। वह ना तो स्नान करती थी और ना ही किसी देवी-देवता का ही पूजन करती थी। अपनी पत्नी के इस कृत्य से ब्राह्मण बहुत दुःखी रहता था। ब्ररह्मण ने अनेक बार अपनी पत्नी को समझाया लेकिन उसका कुछ परिणाम नहीं निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण के घर एक कन्या पैदा हुई।

ब्राह्मण की कन्या बड़ी होने पर प्रतिदिन स्नान करके श्रीहरि विष्णु भगवान का स्मरण व बृहस्पतिवार का उपवास आदि करने लगी। वह प्रतिदिन पूजन-पाठ आदि करके ही विद्या अध्ययन करने के लिए विद्यालय जाती तो अपनी मुट्‌ठी में जौ भरके ले जाती और अपनी पाठशाला के रास्ते में डालती हुई चली जाती थी। और जब वह कन्या अपने घर को लौटती तो तब तक ये जौ स्वर्ण के जौ बन जाते थे। और वह उन स्वर्ण के जौ को लौटते समय बीन कर अपने घर ले आती।

एक दिन ब्राह्मण की कन्या सूप में उन सोने के जौ को साफ कर रही थी तभी ब्राह्मण ने उसे देख लिया और पूछा कि हे पुत्री! सोने के जौ साफ करने के लिए तो तुम्हारे पास सोने का सूप होना चाहिए। उसके अगले ही दिन बृहस्पतिवार का दिन था ब्राह्मण की कन्या ने इस दिन भी व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना की और कहा कि हे भगवन यदि मैंने सच्चे मन से आपकी पूजा-आराधना की है तो मेरे लिए एक सोने का सूप दे दो।

भगवान बृहस्पतिदेव ने उस कन्या की प्रार्थना सुन ली और प्रतिदिन की तरह ही जब वह कन्या रास्ते में जौ फैलाने के बाद पाठशाला से लौटकर रास्ते में सोने के जौ बीन रही थी तो भगवान बृहस्पतिदेव की कृपा से रास्ते में वहीं एक सोने का सूप मिल गया और ब्राह्मण की कन्या उस सूप को अपने घर ले आई और उस सोने के सूप में ही जौ साफ करने लगी। परन्तु इतने दिन व्यतीत होने के बाद भी उस ब्राह्मण की पत्नी का का वही ढंग रहा और वह बिलकुल भी नहीं बदली।

एक दिन जब ब्राह्मण की कन्या सोने के सूप में सोने के जौ साफ कर रही थी। तो उसी दौरान उस शहर के राजा का पुत्र उस रास्ते से निकला।और राजा का पुत्र ब्राह्मण की कन्या के रूप और कार्य को देखकर उस पर मोहित हो गया। और राजा का बेटा ने अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर दिया तथा उदास होकर बिस्तर पर लेट गया।

जब राजा को इस बात की जानकारी हुई तो राजा अपने प्रधानमंत्री के साथ अपने पुत्र के पास गया और बोला कि हे पुत्र तुम्हें किस बात का दुख है? तुम मुझे बताओ। अगर किसी व्यक्ति ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा और जो भी तुम्हारे दुख का कारण हो वह सब मुझे बताओ। तुम जो कहोगे मैं वहीं कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। राजा का पुत्र अपने पिता की बातें सुनकर वह बोला कि पिताजी आपकी कृपा से मुझे किसी प्रकार का कोई भी दुख नहीं है और ना ही किसी व्यक्ति ने मेरा किसी भी प्रकार से कोई अपमान ही किया है परन्तु मैं उस कन्या से शादी करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी।

अपने बेटे की बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ और राजा बोला कि हे पुत्र! इस तरह की कन्या का मुझे तो कुछ पता नहीं है। उस कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं उस कन्या के साथ तुम्हारा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजा के बे ने अपने पिता को उस कन्या के घर का पता बताया। तब राजा ने प्रधानमंत्री को उस कन्या के घर भेजा। प्रधानमंत्री ने ब्राह्मण को सारी बात बताई। ब्राह्मण राजा के पुत्र के साथ अपनी कन्या की शादी करने के लिए राजी हो गया और विधि र्ग्वक ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह राजा के बेटे के साथ कर दिया।

कन्या के घर से विदा होते ही ब्राह्मण के घर में गरीबी का निवास हो गया। और ब्राह्मण के घर में खाने के भी लाले पड़ गए। ब्राह्मण को पेट भरने के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। और एक दिन परेशान होकर ब्राह्मण अपनी बेटी के पास गया। जब बेटी ने पिता को दयनीय अवस्था में देखा और अपनी मां का हाल पूछा। तो ब्राह्मण ने सारा हाल अपनी बेटी को सुनाया। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को अपने घर से विदा किया।

इस प्रकार ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। और उसके कुछ दिन बाद ही ब्राह्मण का फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर से अपनी कन्या के यहां गया और सारी बात उसे बताई तो उसकी कन्या बोली- हे पिताजी! आप माताजी को मेरे यहां लेकर आओ। मैं उसे वह विधि बता दूंगी जिससे आपकी गरीबी दूर हो जाएगी।

ब्राह्मण बेटी के कहने पर अपनी पत्नी को लेकर वहां पहुंचे तो उसकी बेटी अपनी मां को समझाने लगी- हे मां तुम प्रतिदिन सबसे पहले स्नानादि करके श्रीहरि विष्णु भगवान का पूजन करो तो आपकी दरिद्रता दूर हो जाएगी। परन्तु उसकी मां ने बेटी की एक भी बात नहीं मानी और सुबह उठते ही अपनी पुत्री के बच्चों की जूठन को खा लिया। मां के ऐसा करते ही उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आ गया और उसने एक रात को कमरे से सभी सामान बाहर निकाल दिया और अपनी मां को उस कमरे में बंद कर दिया।

और अगले दिन उसने अपनी मां को कमरे से बाहर निकाल कर स्नानादि कराके पूजा-पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि भी ठीक हो गई और वह भी उस दिन से प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। उसके ऐसा करने से और इस व्रत के प्रभाव से उसके मां-बाप शीघ्र ही बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और दोनों ही भगवान बृहस्पतिजी के प्रभाव से इस लोक में सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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