Budh pradosh Vrat: बुध प्रदोष व्रत कथा, जिसे सुनने मात्र से पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं

Budh pradosh Vrat : बुध प्रदोष व्रत हिंदु तिथि के अनुसार तेरहवे दिन या त्रियोदशी के दिन मनाया जाता है और यह हर महीने दो बार आता है। एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में आता है। इस व्रत में महादेव की पूजा की जाती है और यह व्रत उपवासक को बंधनों से मुक्त करने वाला होता है। प्रदोष व्रत जब बुधवार को पड़ता है तो उसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। बुध प्रदोष व्रत सर्वकामना सिद्धि के लिए किया जाता है अर्थात बुध व्रत रखने से व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी होती है। इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। हरे वस्त्र पहने चाहिए और भगवान शंकर की आराधना धूप, बेल पत्र, आदि से करनी चाहिए।
बुध प्रदोष व्रत कथा (Budh pradosh Vrat Katha)
बहुत पुरानी बात है एक पुरुष का नया नया विवाह हुआ था वह गौने के बाद पत्नि को लेने अपने ससुराल पहुंचा और उसने सास से कहा कि वह बुधवार के दिन ही अपनी पत्नि को लेकर जाएगा। उस पुरुष के सास ससुर, साले सालियों ने समझाया कि बुधवार को पत्नि को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है। लेकिन वह पुरुष नहीं माना, विवश होकर सास ससुर ने अपने जमाई और पुत्री को भारी मन से विदा किया। पति पत्नि बैल गाड़ी में चले जा रहे थे।
एक नगर के बाहर निकलते ही पत्नि को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नि के लिए पानी लेने गए, जब वह पानी लेकर लौटा, तब उसने देखा की उसकी पत्नि पराये व्यक्ति द्वारा लाए लोटे से पानी पीकर हस हस कर बात कर रह थी। वह पराया पुरुष उस ही व्यक्ति की शक्ल सूरत वाला था। ऐसा देखकर वह व्यक्ति पराया व्यक्ति से आग बबूला होकर लड़ाई करने लगा। धीरे धीरे वहां कॉफी भीड़ एकत्रित हो गई और सिपाही भी आ गए।
सिपाही ने स्त्री से पूछा की सच सच बताओं की तुम्हारा पति इन दोनों में कौन है। लेकिन वह स्त्री चुप रही, क्योंकि दोनों ही व्यक्ति हमशक्ल थे। बीच रहा में अपनी पत्नि को लुटा देख कर वह व्यक्ति मन ही मन शंकर भगवान की प्रार्थना करने लगा।
हे भगवान मुझे और मेरी पत्नि को इस मुसिबत से बचा लो। मैने अपनी पत्नि को बुधवार के दिन विदा कराकर जो अपराध किया है उसके लिए मुझे क्षमा कर दो। भविष्य में मैं ऐसी गलती कभी नही करूंगा। भगवान शिव उसकी प्रार्थना से भ्रवित हो गए और दूसरा व्यक्ति उसी समय कई अंतर ध्यान हो गया। इसके बाद वह अपनी पत्नि के साथ वह सही सलामत अपने नगर पहुंच गया। इसके बाद से दोनों पति पत्नि नियमपूर्वक बुधवार के दिन प्रदोष व्रत को करने लेगे।
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