Chaiti Chhath 2023: जानें क्यों मनाया जाता है चैती छठ महापर्व, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

Chaiti Chhath 2023: छठ महापर्व के महत्व के बारे में कौन नहीं जानता है। ये महापर्व खास करके बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। वैसे छठ का पर्व देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है। लेकिन जिस तरह से बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग मनाते हैं, वैसे कोई नहीं मनाता है। छठ महापर्व आस्था और विश्वास का पर्व माना गया है। प्रत्येक वर्ष छठ महापर्व दो बार आता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, एक चैत्र महीने तो दूसरा कार्तिक मास में मनाया जाता है। इस साल चैत्र छठ महापर्व 25 मार्च 2023 को नहाय खाय से शुरू होकर 28 मार्च 2023 को प्रात:काल उगते सूर्य को अर्घ देकर पारण करने के साथ समाप्त हो जाएगा। ये त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है।
क्या है चैत्र छठ महापर्व का इतिहास
हिंदू सनातनियों के लिए छठ पर्व का अधिक महत्व होता है। इस दिन माता छठी के साथ सूर्य देव की पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद जो उपासक होते हैं वे अपने बाल-बच्चे की रक्षा के लिए छठी माता से प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि छठी माता संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ति करती है। ऐसा हम क्यों कह रहे हैं आप जरूर सोच रहे होंगे, लेकिन इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। तो आइए जानते हैं क्या हैं संतान प्राप्ति के पीछे की पौराणिक कहानी...
बहुत समय पहले की बात है। एक राजा और एक रानी अपने राजमहल में रहा करते थे। राजा-रानी की एक भी संतान नहीं थी, जिससे राजा हमेशा दुखी रहा करते थे। एक बार महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये। राजा ने महर्षि कश्यप की मन लगाकर सेवा-सत्कार किया। जिससे खुश होकर महर्षि ने राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया। कुछ महीनों बाद राजा को एक मृत संतान पैदा हुआ। मृत संतान को देखकर राजा-रानी बहुत दुखी हुए और उन दोनों ने नदी में कुदकर आत्महत्या करने का निर्णय लिया। राजा-रानी दुर के नदी में जाकर जैसे ही नदी में कूदने को तैयार हुए। उसी समय छठी माता ने उन दोनों को दर्शन दी, और उनको आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप दोनों मेरी पूजा करे। ऐसा करने से आपको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी। राजा-रानी दोनों छठी माता की विधिवत पूजा-अर्चना की। तब छठी माता उन्हें एक स्वस्थ संतान की भेंट की। तब से लेकर आज तक चैत्र माह के छठी तिथि को छठ का महापर्व मनाया जाता है। ये व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है।
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