Chaiti Chhath Puja 2021 : चैती छठ पूजा कब शुरू होगी और कब समाप्त होगी, एक क्लिक में जानें व्रत-उपवास के नियम

- जानें, नहाय-खाय की तिथि क्या होगी, लोहंडा या खरना की डेट क्या रहेगी।
- जानें, संध्या काल का अर्घ्य कब होगा और सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा।
Chaiti Chhath Puja 2021 : चार दिन के इस छठमहापर्व की शुरूआत नहाय-खाय के दिन से होती है। आस्था का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह में और कार्तिक माह में मनाया जाता है। चार दिन के इस त्योहार में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है। इस त्योहार में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती है। इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन होते हैं कि इसी वजह से इसे महापर्व और महाव्रत के नाम से संबोधित किया जाता है।
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चैती छठ 2021 शुभ मुहूर्त कैलेंडर
नहाय-खाय | 16 अप्रैल 2021 | शुक्रवार | चतुर्थी |
लोहंडा या खरना | 17 अप्रैल 2021 | शनिवार | पंचमी |
सांयकाल अर्घ्य | 18 अप्रैल 2021 | रविवार | षष्ठी |
सुबह का अर्घ्य | 19 अप्रैल 2021 | सोमवार | सप्तमी |
मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अव्यवों में सूर्य और जल की महत्ता को मानते हुए उन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना व किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनार यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
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इस महापर्व कि शुरूआत नहाय-खाय से होती है तथा उसके अगले दिन खरना मनाया जाता है और षष्ठी को संध्या अर्घ्य दिया जाता है तथा सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व का समापन किया जाता है। नहाय खाय के दिन व्रती खाने में लौकी की सब्जी, अरबा चावल और चने की दाल खाते हैं।
चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना होता है या खरना नहाय-खाय के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन व्रती दिन भर उपवास करते हैं। संध्याकाल में स्नान के बाद छठी मैया का ध्यान करते हुए उनकी पूजा की जाती है।
छठी मैया को प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल से बनी खीर, गेंहू के आटे और गुड़ से बने टेकुआ और पूरी भेंट की जाती है। एक बार संध्या पूजन समाप्त होने के बाद सबसे पहले व्रती प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इसके बाद परिवार के सभी लोग पूजाघर में ही प्रसाद प्राप्त करते हैं।
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य होता है। यह आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन संध्या काल में अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती इस दिन निर्जला व्रत करते हैं। सूर्यदेव को अर्घ्य में फल, फूल, पकवान, ईख आदि प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है। कई लोग जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य भी देते हैं।
चैत माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रात:काल में सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन अर्घ्य देने के पश्चात छठ पूजा का समापन हो जाता है। इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व उठते हैं और स्नान करके सबसे पहले डाले को संजाते हैं, फिर घाट पर जाकर सूर्यदेव की उपासना की जाती है।
व्रती नदी, तालाब या सरोवर में खड़े होकर सूर्यदेव का ध्यान करते हैं। जब सूर्योदय होता है तो व्रती एक-एक कर सभी डालों को अर्घ्य देते हैं। इस अवसर पर दूध और जल का भी अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करते हैं।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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