Chhath Puja 2020 Date : छठ पूजा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त , महत्व, पूजा विधि और कथा

Chhath Puja 2020 Date : छठ पूजा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त , महत्व, पूजा विधि और कथा
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Chhath Puja 2020 Date : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व को चार दिनों तक मनाया जाता है और छठी मैय्या से संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है तो चलिए जानते हैं छठ पूजा 2020 में कब है (Chhath Puja 2020 Mein Kab Hai),छठ पूजा का शुभ मुहूर्त (Chhath Puja Ka Shubh Muhurat),छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Importance),छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)और छठ पूजा की कथा (Chhath Puja Story)

Chhath Puja 2020 Date : छठ पूजा का महापर्व (Chhath Puja Festival) चार दिनों तक मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्यत: बिहार और झारंखड में मनाया जाता है। छठ पूजा में विशेष रूप से सूर्यदेव की पूजा (Surya Dev Ki Puja) की जाती है। जिसमें उगते सूर्य के साथ ही डूबते सूर्य को भी जल दिया जाता है। छठ पूजा ही एक मात्र ऐसा पर्व माना जाता है। जिसमें डूबते सूरज को जल दिया जाता है तो आइए जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी सभी विशेष बातें


छठ पूजा 2020 तिथि (Chhath Puja 2020 Tithi)

20 नवंबर 2020

छठ पूजा 2020 शुभ मुहूर्त (Chhath Puja 2020 Shubh Muhurat)

षष्ठी तिथि प्रारम्भ - रात 11 बजकर 29 मिनट से (19 नवम्बर 2020)

षष्ठी तिथि समाप्त - अगले दिन रात 10 बजकर 59 मिनट तक (20 नवम्बर 2020)

सूर्योदय समय छठ पूजा के दिन - सुबह 6 बजकर 18 मिनट से

सूर्यास्त समय छठ पूजा के दिन - शाम 5 बजकर 59 मिनट तक


छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Ka Mahatva)

छठ पूजा का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पूजा चार दिनों तक की जाती है। छठ पूजा को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन स्नान और दान को भी अधिक महत्व दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी।वह सूर्य देव के पुत्र और उनके सबसे बड़े भक्त माने जाते थे।

कर्ण कई घंटो तक पानी में रहकर भगवान सूर्य की आराधना करते थे। छठ पूजा में खाए नहाए को विशेष महत्व दिया जाता है। जो चार दिनों तक किया जाता है। जिसमें परहले दिन खाए और नहाए किया जाता है। दूसरे दिन खरना,तीसरे दिन शाम के सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन सूर्य को सुबह के समय में अर्घ्य दिया जाता है। सिर्फ छठ पूजा ही एक ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है।


छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)

1.छठ पूजा की शुरुआत खाए नहाय से की जाती है। यह छठ पूजा का पहला दिन होता है। इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है। जिसमें घर की साफ- सफाई करके उसे शुद्ध किया जाता है और शाकाहारी भोजन बनाकर खाया जाता है।

2.इसके दूसरे दिन खरना किया जाता है। जिसमें पूरे दिन का उपवास किया जाता है। छठ के दूसरे दिन शाम के समय गन्ने का रस या फिर गुड़ में चावल बनाकर खीर का प्रसाद बनाकर खाया जाता है।

3.छठ के तीसरे दिन भी व्रत रखा जाता है और शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन शाम के समय पूजा की सभी सामग्री को लकड़ी एक डलिया में रखा जाता है और उसे घाट पर ले जाया जाता है और पूजा के बाद सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।इसके बाद घर आकर सभी पूजा का सभी समान पहले की तरह ही रख दिया जाता है और रात के समय छठी मैय्या के गीत गाए जाते हैं और व्रत की कथा भी सुनी जाती है।

4. इसके बाद अगले दिन छठ पूजा का चौथा और अंतिम होता है। जिसमें सूर्योदय से पहले ही घाट पर पहुंचकर सूर्य की पहली किरण को जल दिया जाता है और छठी माता को ध्यान करके संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है और घर आने के बाद प्रसाद बांटा जाता है।


छठ पूजा की कथा (Chhath Puja Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक राज्य में प्रियव्रत नाम का राजा राज करता था। उसकी पत्नी का नाम मालिनी था। संतान न होने के कारण दोनों बहुत दुखी रहते थे। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।जिसके फल से रानी ने गर्भ धारण कर लिया पूरे नौ महीने बाद उसे जब उसकी संतान उत्पन्न होने वाली थी तो वह उसने मरे हुए पुत्र को जन्म दिया।

इस बात का पता जब राजा को चला तो वह बहुत ज्यादा दुखी हुआ और उसने आत्म हत्या का मन बना लिया। जैसे ही राजा आत्म हत्या के लिए चला। उसी समय एक सुंदर देवी वहां प्रकट हो गई। देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी।

देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा और रानी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि -विधान से पूजा और व्रत रखा। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उसी समय से छठ का पर्व मनाया जाता है।

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