Chhath puja 2020: जानिए छठी मैया की कहानी, सबसे पहले किसने की पूजा

Chhath puja 2020: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले पर्व को वर्णन भविष्य पुराण में सूर्य षष्ठी के रूप में मिलता है। हालांकि लोक मान्यताओं के अनुसार सूर्य षष्ठी या छठ पर्व की शुरूआत रामायण काल से हुई थी। इस व्रत को सीता समेत द्वापर युग में द्रोपदी ने भी किया था। अधिकतर लोग इन दोनों कथाओं को तो जानते ही नहीं हैं। लेकिन आपको यह मालूम अवश्य होना चाहिए कि छठी मैया कौन है और इनकी पूजा किसने की थी। तो आइए आप भी जानें छठ पूजा की कहानी के बारें में।
भविष्य पुराण की कथा के अनुसार सबसे पहले छठ पूजा राजा मनु प्रियव्रत की पत्नी ने की थी। कहा जाता है कि राजा मनु प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी। संतान नहीं होने के कारण राजा प्रियव्रत बहुत चिंतित रहने लगे। एक दिन राजा प्रिय व्रत कश्यप ऋषि से संतान प्राप्ति का उपाय पूछने गए। और उन्होंने ऋषि को प्रणाम करने के बाद उनसे कहा कि ऋषिवर आप मुझे संतान प्राप्ति का कोई उपाय बताइए।
ऋषिवर ने राजा से कार्तिक मास में पुत्रेष्ठि यज्ञ करने को कहा। और राजा ने अगल दिन ही यज्ञ कराने का निश्चय किया। और महर्षि कश्यप ने अपने महात्माओं और अन्य ऋषियों के साथ राजा और उनकी पत्नी के साथ यज्ञ को संपन्न किया। यज्ञ कराने के कुछ दिन बाद राजा मनु प्रियव्रत की पत्नी मालिनी ने गर्भ धारण कर लिए और ठीक नौ महीने के बाद मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन मालिनी को यह पुत्र मृत पैदा हुआ। मृत शिशु को अपनी छाती से लगाकर राजा प्रिय व्रत और उनकी पत्नी विलाप करने लगे। और तभी एक आश्चर्य जनक घटना घटी। एक ज्योतियुक्त विमान पृथ्वी की ओर आता हुआ दिखाई दिया।
नजदीक आने पर वहां मौजूद लोगों ने देखा कि उस विमान में एक दिव्य नारी बैठी हुई थीं। उस देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले को संतान प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है। मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण करती हूं। और जैसे ही देवी ने उस मृत शिशु के शव को स्पर्श किया तो वह शिशु जीवित हो उठा।
यह देखकर राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी बहुत खुश हुए। और अनेक प्रकार से देवी की स्तुति करने लगे। यह चमत्कार देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। और षष्ठी देवी यानि छठ पूजा के प्रचार-प्रसार में लग गए। तथा राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूरे विधि विधान से पूजा की। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
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