Chhath Puja 2020 : जानिए कार्तिक छठ पूजा की तिथि और समय

Chhath Puja 2020 : जानिए कार्तिक छठ पूजा की तिथि और समय
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Chhath Puja 2020 : दीपावली के छह दिन बाद छठ का पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान सूर्यदेव की उपासना की जाती है। छठ पर्व सबसे अधिक उत्तर भारत में विशेष रूप से बिहार में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्यदेवता की बहन माना जाता है। छठ पूजा से घर-परिवार में सुख, शांति और संपन्नता आती है। वैसे तो साल में दो बड़े अवसरों पर सूर्यदेव की आराधना और पूजा -पाठ करने का विधान होता है। पहला चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और दूसरा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का विधान बताया गया है।

Chhath Puja 2020 : दीपावली के छह दिन बाद छठ का पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान सूर्यदेव की उपासना की जाती है। छठ पर्व सबसे अधिक उत्तर भारत में विशेष रूप से बिहार में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्यदेवता की बहन माना जाता है। छठ पूजा से घर-परिवार में सुख, शांति और संपन्नता आती है। वैसे तो साल में दो बड़े अवसरों पर सूर्यदेव की आराधना और पूजा -पाठ करने का विधान होता है। पहला चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और दूसरा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का विधान बताया गया है। छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। छठ पूजा में व्रती महिलाएं अपने लिए छठी मैया से सूरज जैसा प्रतापी और यश को प्राप्त करने वाली संतान की प्रार्थना करती हैं। छठ पूजा बिहार में सबसे अधिक प्रचलित है। और छठ पर्व बिहार का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। छठ मुख्य रूप से बिहार के लोगों का पर्व है।

कार्तिक छठ पूजा 2020

छठ पूजा का पहला दिन

नहाय-खाय- 18 नवंबर 2020, दिन बुधवार

खरना/लोहंडा-19 नवंबर 2020, दिन गुरुवार

छठ पूजा का तीसरा दिन

सांयकाल अर्घ्य-20 नवंबर 2020, दिन शुक्रवार

छठ पूजा का चौथा दिन

प्रात:कालीन अर्घ्य/पारण- 21 नवंबर 2020, दिन शनिवार

ऐसी मान्यता है कि इस पर्व की शुरूआत अंगराज कर्ण से मानी जाती है। अंग प्रदेश वर्तमान में भागलपुर में है तो वर्तमान में बिहार राज्य में स्थित है। अंगराज कर्ण के विषय में कथा है कि ये पांडवों की माता कुन्ती और सूर्यदेव की संतान थे। कर्ण अपना आराध्यदेव सूर्यदेव को मानते थे। अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंग देश के लोगों ने सूर्यदेव की पूजा-उपासना शुरू कर दी। और धीरे-धीरे इस सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र में हो गया।

नहाय-खाय

छठ पूजा चार दिवसीय त्योहार है और छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय होता है। तथा छठ पूजा की शुरूआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ होती है। नहाय -खाय के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान करके और नए वस्त्र पहनकर शुद्ध शाकाहारी भोजन जिसमें चावल और चने की दाल और लौकी की सब्जी खाते हैं।

खरना

छठ पूजा का दूसरा दिन खरना होता है। खरना पंचमी तिथि को होता है। इस दिन पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में चावल और गुड़ से खीर बनाकर प्रसाद के रूप में सूर्यदेव को अर्पित की जाती है। और उसके बाद व्रती महिला खुद भी खाती है। और फिर बाकी लोगों को प्रसाद के रूप में बांट दी जाती है।

सूर्य षष्ठी

छठ पर्व का तीसरा दिन सूर्य षष्ठी के रूप में मनाया जाता है। सूर्य षष्ठी पर सूर्यदेव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन बांस की टोकरी में प्रसाद और फल सजाए जाते हैं। इस टोकरी को सभी व्रती सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते हुए सूर्य की आराधना करते हैं।

प्रात: काल का अर्घ्य

छठ पर्व चौथा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है। और इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। और ठीक उसी प्रकार से टोकरी में प्रसाद और फल ले जाकर के उगते हुए सूर्य को ठीक वहीं पर जहां पर आपने संध्या अर्घ्य दिया था। और सूर्यदेवता की पूजा करते हैं। धूप-दीप जलाते हैं। और छठ का मुख्य प्रसाद ठेकुआ को घाट पर लोगों के बीच में बांटा जाता है। इस तरह से छठ पर्व की पूजा का समापन होता है।

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