Chhath Puja 2021: छठ पूजा का पवित्र स्नान करने के बाद व्रती चार दिनों के लिए अपने परिवार से हो जाता है अलग, जानें इस व्रत के ये प्रमुख रीति रिवाज

Chhath Puja 2021: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में दीपावली के बाद मनाया जाने वाला छठ पर्व का आरंभ हो चुका है। छठ के पवित्र व्रत में कई पौराणिक परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। इन रीति रिवाजों और परंपराओं के बिना यह पवित्र व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। तो आइए जानते हैं इस छठ पर्व से जुड़े रीति रिवाजों के बारे में...
ये भी पढ़ें: Chhath Puja 2021: छठ पूजा की कथा और जानें इसका महत्व
छठ पूजा की परंपरा और रीति-रिवाज
यह माना जाता है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। पूरी अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ फर्श पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा शुरु कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पड़ेगा और इसे तभी छोड़ा जा सकता है जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो।
भक्त छठ पर मिठाई, खीर, थेकुआ और फल सहित छोटी बांस की टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते है। प्रसाद शुद्धता बनाये रखने के लिये बिना नमक, प्याज और लहसुन के तैयार किया जाता है। यह 4 दिन का त्यौहार है जो शामिल करता है।
पहले दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते है और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घऱ भी लेकर आते है। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई होनी चाहिये। वे एक वक्त का खाना लेते है, जिसे कद्दू-भात के रुप में जाना जाता है जो केवल मिट्टी के स्टोव (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके ताँबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।
दूसरे दिन (छठ से एक दिन पहले) पंचमी को, भक्त पूरे दिन उपवास रखते है और शाम को पृथ्वी (धरती) की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते है। वे पूजा में खीर, पूरी, और फल अर्पित करते है। शाम को खाना खाने के बाद, वे बिना पानी पियें 36 घण्टे का उपवास रखते है।
तीसरे दिन (छठ वाले दिन) वे नदी के किनारे घाट पर संध्या अर्घ्य देते है। अर्घ्य देने के बाद वे पीले रंग की साडी पहनती है। परिवार के अन्य सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ की रात कोसी पर पाँच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। पाँच गन्ने पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को प्रर्दशित करते है जिससे मानव शरीर का निर्माण करते है।
चौथे दिन की सुबह (पारुन), भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्घ्य अर्पित करते है। भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोलते है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS