Chhath Puja 2021: छठ पूजा की कथा और जानें इसका महत्व

Chhath Puja 2021: छठ पूजा की कथा और जानें इसका महत्व
X
Chhath Puja 2021: बिहार समेत कई राज्यों में दिवाली के बाद छठ का पर्व मनाने की धूम मच जाती है और वहीं छठ पूजा के दौरान व्रती लोग बहुत कठिन व्रत का पालन किया जाता है। छठ पूजा कई चरणों में संपन्न होती है, वहीं ऐसी मान्यता है कि, छठ पूजा से संतान सुख तो प्राप्त होता ही है और यह व्रत संतान के जीवन में आने वाले सभी संकटों से उनकी रक्षा भी करता है। तो आइए जानते हैं छठ पूजा की कथा और इसके चरण के बारे में...

Chhath Puja 2021: बिहार समेत कई राज्यों में दिवाली के बाद छठ का पर्व मनाने की धूम मच जाती है और वहीं छठ पूजा के दौरान व्रती लोग बहुत कठिन व्रत का पालन किया जाता है। छठ पूजा कई चरणों में संपन्न होती है, वहीं ऐसी मान्यता है कि, छठ पूजा से संतान सुख तो प्राप्त होता ही है और यह व्रत संतान के जीवन में आने वाले सभी संकटों से उनकी रक्षा भी करता है। तो आइए जानते हैं छठ पूजा की कथा और इसके चरण (महत्व) के बारे में...

ये भी पढ़ें: Chhath Puja 2021 : छठ लोकगीत 'कांच ही बांस के बहंगिया'...

छठ पूजा कथा

बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियब्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।

अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूं और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा की छह महान चरण हैं जोकि इस प्रकार है।

  1. यह माना जाता है कि त्यौहार पर उपवास और शरीर की साफ-सफाई तन और मन को विषले तत्वो से दूर करके लौकिक सूर्य ऊर्जा को स्वीकार करने के लिये किये जाते है।
  2. आधे शरीर को पानी में डुबोकर खडे होने से शरीर से ऊर्जा के निकास को कम करने के साथ ही सुषुम्ना को उन्नत करके प्राणों को सुगम करता है।
  3. तब लौकिक सूर्य ऊर्जा रेटिना और ऑप्टिक नसों द्वारा पीनियल, पीयूष और हाइपोथेलेमस ग्रंथियों (त्रिवेणी परिसर के रूप में जाना जाता है) में जगह लेती है।
  4. चौथे चरण में त्रिवेणी परिसर सक्रिय हो जाता है।
  5. त्रिवेणी परिसर की सक्रियता के बाद, रीढ़ की हड्डी का ध्रुवीकरण हो जाता है और भक्त का शरीर एक लौकिक बिजलीघर में बदल जाता है और कुंडलिनी शक्ति प्राप्त हो जाती है।
  6. इस अवस्था में भक्त पूरी तरह से मार्गदर्शन करने, पुनरावृत्ति करने और पूरे ब्रह्मांड में ऊर्जा पर पारित करने में सक्षम हो जाता है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

Tags

Next Story